इमाम मेहदी अ० ने किस तरह ग़ैबत पायी और उनकी विलादत को क्यों छुपाया गया ?

12वे इमाम मोहम्मद मैहदी आख़ेरुज़्ज़मा अलैहिस्सलाम
शियो के 12वे इमाम और पैगंबर के आख़री वसी रोज़े जुमा, सुबह के वक़्त 255 या 256 हिजरी को मक़ामे सामरा मे पैदा हुए।
आपके मशहूर तरीन अलक़ाब "मैहदी,क़ायम, हुज्जत और बक़ीयतुल्लाह है। आपकी मादरे गिरामी जनाबे नरजिस ख़ातून हैं। जब जनाबे नरजिस रोम मे थी तो एक दिन जनाबे नरजिस ने ख़्वअाब मे देखा कि पैग़ंबरे अकरम अ० और हज़रत ईसा ने इमामे हसन असकरी अ० से इनका अक़्द (शादी) कर दिया है।
आप ख़्वाब ही मे जनाबेे फातेमा ज़ैहरा स० की दावत पर मुसलमान हुईं लेकिन आपने दीन छुपाए रखा। आख़िरकार आपको ख़्वाब मे हुक्म मिला कि कनीज़ो और क़ैसर के ख़िदमत गुज़ारो के दरमियान छुपकर उस लश्कर के साथ जो मुसलमानो से जंग के लिए सरहद की तरफ जा रहे थे, चली जाएं। आपने ऐसा ही किया सरहद पार चंद दूसरे अफराद के साथ लश्करे इस्लाम की असीरी मे आ गईं।
आप बग़दाद ले जाइ गई। यह वाक़िया 248 हिजरी मे हुआ 10वे इमाम का सामरा मे क़याम का 13वा साल था और इमाम हसन असकरी अ० उस वक़्त 16 साल के थे।
10वे इमाम अलैहिस्सलाम के का़सिद ने जनाबे नरजिस को एक ख़त बगदाद मे दिया जो रोमी ज़बान मे लिखा था जो कुछ जनाबे नरजिस ने ख़्वाब मे देखा था, इमाम अलैहिस्सलाम ने बयान कर दिया और बशारत दी कि वह 11वे इमाम अ० की बीवी और ऐसे बेटे की मां बनेंगी जो सारी दुनियां पर हुकूमत करेगा अदलो इंसाफ क़ायम करेगा।  उसके बाद आपको इमाम अलैहिस्सलाम ने जनाबे हकीमा (आपकी बहन) के हवाले कर दिया ताकि वह उनको इस्लामी अहकाम और आदाब सिखा दें। इसके कुछ दिन बाद जनाबे नरजिस इमामे हसन असकरी अलैहिस्सलाम की ज़ोजा बन गईं। हकीमा कहती है कि जब भी मै इमामे हसन असकरी अ० की ख़िदमत मे पहुंचती तो दुआ फरमाती कि ख़ुदा आपको फरज़ंद अता करे और एक रोज़ आदत के मुताबिक़, इमाम अ० के दीदार के लिए मै गई और मैने फिर वही दुआ की, इमाम अ० ने फरमाया, जो बेटा आप मेरे लिए ख़ुदा से मांग रही हैं वह आज की रात पैदा होने वाला है।
मैंने अर्ज़ किया मेरे सरदार वह बच्चा कैसे पैदा होगा? तो आपने फ़रमाया नरजिस से, मै उठी और मैंने नरजिस को जुस्तजू की निगाह से देखा कि हामिला (मां बनने की) की कोई अलामत नही है। इमाम अ० ने फरमाया,इसलिए की वह मादरे मूसा की तरह हैं, जिन का हमल ज़ाहिर नही होगा और विलादत के वक़्त तक किसी को इस बात की ख़बर नही थी। इसलिए कि फिरौन, 12वे इमाम अ० की तलाश मे औरतों के शिकम (पेट) को चाक कर देता था। जनाबे हकीमा नक़्ल फरमाती है कि मै सहरी तक नरजिस की निगरानी करती रही और वह बहुत आराम से मेरे पास सोइ हुइ थी और तुलुए फज्र के वक़्त घबरा कर उठीं, मैने उनको अपनी आग़ोश मे संभाला। इमाम अ० ने दूसरे कमरे से आवाज़ दी कि उनके ऊपर "सुरए इन्ना अनज़लना" दम किजिए। मैने ऐसा करने के बाद उनकि हालत को देखा। मै इसी तरह सूरए क़द्र पढ़ने मे मशग़ूल थी तभी बच्चे न शिकमेे मादर से तिलावत करना शुरू की और मुझे सलाम किया। मै डर गई, इमाम हसन असकरी अ० ने आवाज़ दी, ताज्जुब ना करें, ख़ुदा वंदे आलम हमे बचपन मे ही बोलने की ताक़त अता कर देता है और बड़े होने के बाद ज़मीन पर हुज्जत क़रार देता है। अभी इमाम अ० की बात ख़त्म भी ना होने पाइ थी कि नरजिस सामने से ग़ायब हो गईं, जैसे उनके और हमारे दरमियान परदा आ गया हो। मै आवाज़ देती हुइ इमाम अ० के पास गइ,इमाम अ० ने फरमाया: आप वहीं तशरीफ ले जाइए, उनको अपनी जगह पर पाएंगी, मै वहां पलट आइ तो परदा हट गया था और मैने उनको एक नूर मे ग़क्र देखा,मेरी आँखों मे उनको देखने की ताक़त ना थी और तभी मैने एक बच्चे को सज्दे के आलम मे देखा कि जिसकी उंगली ऊपर थी और कह रहा "अश्हदो अन लाइलाहा इललल्लाह" इसके बाद अपने, एक इमाम होने की गवाही दी और फरमाया "ख़ुदाया मेरे वादे को पूरा कर और मेरे काम को आख़िर तक पहुंचा, मेरे क़दमो को साबित रख और मेरे ज़रिए ज़मीन को अदलो इंसाफ से भर दे।"
इमामे हसन असकरी अलैहिस्सलाम के ज़माने मे बनी अब्बास के हाकिम बहुत फिक्रमंद थे क्योंकि उन्होने हदीसो मे सुना और पढ़ा था कि इमाम अ० के एक बेटा पैदा होगा जो ताज और तख़्त को उल्टा देगा,दुनिया को अदलो इंसाफ से भर देगा। इसलिए इमाम के दुश्मन यह कोशिश कर रहे थे कि बच्चे को पैदा होने से रोक दें। यही वजह थी कि हज़रत मैहदी अलैहिस्सलाम की विलादत लोगो से छुपकर हुई। विलादत के बाद कुछ खास असहाब और दोस्तो के अलावा किसी ने भी 12वे इमाम अलैहिस्सलाम को नही देखा था। इमामे हसन असकरी अलैहिस्सलाम की रविश यह थी की अपने फर्ज़ंद को लोगो की नज़रो से मक़फी रखने के बावजूद सही मौके पर क़ाबिले इत्मिनान लोगो को हज़रत मैहदी अ० के वजूद से आगाह फरमाते रहते थे और उनको उनके सामने हाज़िर होने का फैज़ पहुंचाते ताकि इस तरह वह उनकी पैदाइश का यक़ीन दिला दे और सही मौक़े पर शियो को इत्तला कर दे। कि इमाम हसन असकरी अ० के बाद लोग गुमराही मे ना पड़ जाएं।
इसी वजह से इमाम मैहदी अलैहिस्सलाम की विलादत से इमामे हसन असकरी अ० की शहादत तक,6 साल से 15 साल की मुद्दत तक आपके बहुत से क़रीबी शागिर्द और असहाब ने 12वे इमाम अ० की ज़ियारत की।
इमामे ज़माना अ० ने अपनी वालिदाए गिरामी की शहादत के बाद 260 हिजरी मे इमामत की ज़िम्मेदारी संभाली।
इमामे हसन असकरी अ० की बिमारी के ज़माने में मोतमिद को आपके बेटे की तलाश से कोई फायदा नही हुआ तो आप अ० की शहदत के बाद उसने अबू मूसा मुतावक्किल को भेजा कि वह इमाम अ० के जनाज़े पर नमाज़ पढ़े। उसने भी बनी हाशिम और बाकी लोगो को इमाम अलैहिस्सलाम का चेहरा दिखाया ताकि सब पर यह ज़ाहिर कर दे कि इमाम रुख़सत हो चुके हैं। उसने आपके जनाज़े पर नंमाज़ पढ़ी ओर हुक्म दिया कि जनाज़ा उठाया जाए। इस से पहले ही इमाम अ० के घर मे बग़ैर किसी दिखावे के कुछ ख़ास लोगो की शिरकत मे नमाज़ पढ़ाइ जा चुकी थी।
इस का वाक़िया यह है कि जाफर इब्ने अली जो इस ज़माने तक सियासत के मैदान मे नही आए थे और जिन्होने अपना हक़ीक़ी चेहरा ज़ाहिर नही किया था,सिर्फ  यह देखकर कि इमामे हसन
असकरी अ० का कोई वारिस नही है, इससे फायदा उठाते हुए अपनी इमामत की मुबारक बाद देते हुए,लोगो को ताज़ियत पेश करते हुए दरवाज़े पर खड़े हो गए। नमाज़ के लिए जनाज़ा तैयार होते ही जाफर आगेे बढ़े ताकि अपने भाई के जनाज़े पर नमाज़ पढ़ें और लोगो के सामने नई हैसियत बना ले। इत्तेफाक़न एक बच्चा जा़हिर हुआ उसने जाफर की अबा खींची और कहा:- "चचाजान आप पीछे खड़े हों, मै अपने बाबा की नमाज़ पढ़ाउंगा।" जाफर बिना कुछ कहे पीछे हट गए उन के चेहरे का रंग उड़ गया।
इमाम अ० आगे खड़े हो गए और नमाज़ पढ़ाई और अपनी इमामत लोगो के सामने साबित की और लोगो की नज़रो से ग़ायब हो गए।
बनी अब्बास के ख़लीफा जब इस बात से आगाह हुए कि इतनी पाबंदी के बावजूद इमाम अ० का वारिस पैदा हो गया तो उन्होने पूरा ज़ोर लगाया कि इमामे ज़माना अ० को गिरफ्तार कर लें।
इसलिए आप के घर पर भी हमला करवाया मगर कामयाब ना हो सका। इमाम अ० की ग़ैबत (ग़ायब) का मसला ख़ुदा की तरफ से था क्यूंकि आपको बहुत ख़तरा था। अगर लोग अदले इलाही को क़ुबूल कर लेते और अपने रहबरो की हिमायत कर लेते तो इमाम अ० ग़ैबत मे ना जाते और क़ानूने इलाही को जारी करने में मशग़ूल हो जाते जैसे ग़ैबत का ज़माना ख़त्म होने के बाद बहुत से लोग अपने को तैयार कर लेंगे तो इमाम अ० ज़ाहिर होंगेे।
12वे इमाम अ० की ग़ैबत के 2 मरहले हैं एक कम मुद्दत का जिसे ग़ैबते सुग़रा कहा जाता है और दूसरा लम्बी मुद्दत का जो ग़ैबते कुबरा है।
ग़ैबते सुग़रा ज़माने के ऐतबार से भी महदूद थी और लोगो के राब्ते के ऐतबार से भी। ज़माने के ऐतबार से 70 साल से ज़्यादा नही थी। ग़ैबते सुग़रा के ज़माने मे लोगो से इमाम अ० का राब्ता बहुत कम था,कुछ लोग थे। जो आपको जानते थे और उनको 11वे इमाम अ० के नवाबे ख़ास के नाम से जाना जाता था। शियों मे से हर एक उनके नवाब के ज़रिए पहुंच जाते थे ग़ैबते सुग़रा का ज़माना गुज़र जाने के बाद ग़ैबते कुबरा का आग़ाज़ हुआ,जो अब तक जारी है। ग़ैबते सुग़रा के ज़माने में इमाम अ० की तरफ से उनके ख़ास नायबीन के ज़रिए बहुत से मोजज़ात ज़ाहिर हुए। जो अापके शियों के ईमाव के सबब (वजह) थे।
ईसा इब्ने अस्र नक़ल करते हैं: अली इब्ने ज़्याद ने इमाम अ० के लिए ख़त लिखा और आप से कफन की दरख़्वास्त की तो जवाब आया, "तुमको 80 साल मे उसकी ज़रूरत पड़ेगी।" और उन्होने उसी साल इन्तेक़ाल फरमाया (जैसा इमाम अ० ने फरमाया था) उनके इन्तेक़ाल से पहले ही इमाम अ० ने कफन भेजा।
ग़ैबते सुग़रा या ग़ैबते कुबरा, किसी दौर मे भी इमाम अ० का राब्ता लोगो से ख़त्म नही हुआ था बल्कि नवाब के ज़रिए शियों से आपका राब्ता था।
जिस तरह ग़ैबत के 2 हिस्से हैं उसी तरह आपकी नियाबत के भी 2 हिससे हैं। ग़ैबते सुग़रा मे नियाबते ख़ासा और ग़ैबते कुबरा मे नियाबते आमा।
नियाबते ख़ासा यह है कि इमाम अ० खास लोगो को अपना नायाब बनाते और नियाबते आमा यह है कि ज़ाब्ता हमारे हाथो मे दे देते हैं कि हम हर ज़माने मे एक या कई अफराद जिन पर हुज्जत से वह ज़ाब्ता सादिक़ आता है, नायबे इमाम अ० की हैसियत से पहचाना जाता है।
आप अ० के ख़ास नायबीन 4 हैं:-
1- उस्मान इब्ने सईद:-
अबू अमरू उस्मान इब्ने सईद,इमाम मैहदी अ० के पहले ख़ास नायाब थे।
2- मोहम्मद इब्ने उस्मान:-
260 हिजरी मे अपने इन्तेक़ाल से पहले उस्मान इब्ने सईद ने अपने बेटे मोहम्मद को इमाम अ० के हुक्म से अपने जां-नशीन और नायाब की हैसियत से पहचनवाया। अबू जाफर मोहम्मद इब्ने उस्मान भी अपने वालिद की तरह इमाम हसन असकरी अ० और 12वे इमाम अ० के लिए क़ाबिले इत्मिनान थे।
3- हसीन इब्ने रूह:-
यह इमाम अ० के तीसरे सफीर अबुल क़ासिम हसीन इब्ने रूह,मख़सूस अज़मत के हामिल थे और तक़वा व फज़ीलत मे मशहूर थे।
इन्होने तक़रीबन 21 साल तक नियात की ज़िम्मेदारी संभाली और अपनी वफात से पहले उन्होने इमाम अ० के हुक्म से नियाबत अली इब्ने मोहम्मद समूरी के हवाले कर दी और 326 हिजरी मे इन्तेक़ाल कर गए।
4- अली इब्ने मोहम्मद समूरी
चौथे और आख़री सफीर अली इब्ने मोहम्मद 329 हिजरी मे इन्तेक़ाल फरमा गए। उनकी वफात से पहले शियों का एक गिरोह इनके पास आया और सवाल किया,आपका जां-नशीन कौन है? आपने फरमाया मुझे इसके बारे मे कोई वसीयत नही की गई है।इसके बाद उन्होंने इस मौक़े मुबारक के बारे मे बताया जो इमाम इमामे ज़माना अलैहिस्सलाम की तरफ से सादर हुआ था:-
"बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम- अली इब्ने मोहम्मद, ख़ुदा तुम्हारे ग़म मे तुम्हारे भाइयों को जज़ााए अजीम अता करे। तुम 6 रोज़ के बाद मर जाओगे लिहाज़ा किसी के बारे मे कोई वसीयत ना करना कि वह तुम्हारे बाद जां-नशीन हो, अब ग़ैबते कुबरा का ज़माना आ गया है और उस वक़्त तक ज़हूर नही होगा जब तक खुदा वंदे आलम इजाज़त ना दे",और छठे दिन जनाबे समूरी इस दुनिया से रुख़सत हो गए।
इमाम अलैहिस्सलाम के आख़िरी नायाब अली इब्ने समूरी के इंतक़ाल के बाद ग़ैबते कुबरा का ज़माना शुरू हुआ। इमामे मैहदी अलैहिस्सलाम की तरफ से कोई ख़ास नायाब नही चुना गया था। लेकिन आपकी और बाकी इमाम अलैहिस्सलाम की तरफ से एक सिलसिला मौजूद है की जिससेे लोग आगही हासिल करें।
मरहूम शेख तूसी इशाक इब्ने याक़ूब से नकल फरमाते है। कि हज़रत मैहदी अलैहिस्सलाम ने ग़ैबत के ज़माने मे शियों के फरायज़ के बारे मे फरमाया:- "आने वाले हादसो के बारे मे हमारी हदीसे बयान करने वालो की तरफ रुजू करो। इसलिए कि वह लोग तुम्हारे ऊपर हुज्जत और उनके ऊपर खुदा की हुज्जत है।"
इमामे हसन असकरी अलैहिस्सलाम फरमाते हैं:- "फिक़हा मे से जो अपने नफ्स को पहचानने वाला,अपने दीन का निगेहबान, अपनी हवाओ हवस का मुख़ालिफ, अपने मौला अलैहिस्सलाम के फरमान का मुती (मानने वाला) हो, तो लोगो पर लाजि़म है उसकी तक़लीद करे। इस तरह इस्लामी मुआशरे कि रहबरी और मुसलमानो के उमूरे हाल और उनका फैसला ग़ैबते कुबरा के ज़माने मे वलि-ए-फिक़ के हाथो मे आया।
ग़ैबते सुग़रा के ज़माने मे इन 4 मख़सूस नायाबीन के अलावा जो इमाम अलैहिस्सलाम की ख़िदमत मे पहुंचते रहते थे,कुछ दूसरे अफराद भी थे। शिया बुज़ुर्ग उलमा ने बहुत से अफराद का नाम बयान फरमाया है। जिन्होंने ग़ैबते सुग़रा के ज़माने मे इमाम अलैहिस्सलाम को देखा और उनके मौजज़ात को दर्क किया है। उलमा ने उन मुलाक़ात करने वालो मे से हर एक के वाक़ियात का ज़िक्र किया है।
इस तरह उन बुज़ुर्गों से बाज़ अफराद ने उन लोगो की दास्तान को अपनी किताब मे बयान किया है जो ग़ैबते कुबरा के ज़माने मे आप की खिदमत मे पहुंचे आपके मौजज़ात को बेदारी (होश मे) या ख़्वाब के आलम मे देखा।
आख़री जमाने मे एक मसला ज़हूर का,पुराने ज़माने से लोगो का बुनियादी अक़ीदा रहा है। सिर्फ शिया नही बल्कि अहले तसन्नुन,यहां तक कि दूसरे दीन के मानने वाले जैसे यहूदी,नुसारा और हिंदू भी इस मसले पर आपका  ऐतेक़ाद (यक़ीन) रखते है और इसके इंतज़ार मे है। हिंदुओं ने अपनी किताबे मुकद्दस "वईद"मे लिखा है कि, दुनिया की ख़राबी के बाद आख़री ज़माने मे एक बादशाह पैदा होगा,जिसका नाम मंसूर होगा। वह सारी दुनिया को क़ब्ज़े मे कर के अपने दीन पर ले आएगा और मोमिन और काफ़िर मे से हर एक को पहचानता होगा। वह जो कुछ ख़ुदा से मांगेगा उसको मिल जाएगा। तोरैत मे नस्ले इस्माइल से पैदा होने वाले 12वे इमाम अलैहिस्सलाम के बारे मे गुफ्तगू मौजूद है और ख़ासकर इस्माइल के बारे मे मैंने तेरी दुआ कु़बूल कि अब इस बात को बरकत देकर बराबर करूंगा और उसको बहुत ज़्यादा कर लूंगा और इसी से 12 सरदार पैदा होंगे और एक अज़ीम उम्मत इससे पैदा करूंगा।
दाऊद कि ज़ुबूर मे भी लिखा है, ईसाइयो की किताब मे भी आपका ज़िक्र (इमामे ज़माना अ०) लिखा है।
ज़हूर का अक़ीदा
ज़हूर का अक़ीदा इस्लाम का एक बुनियादी और इसकी हयात का मसला शुमार किया जाता है। इस्लामी मज़हब मे से किसी ख़ास मज़हब यहां तक कि शिया मज़हब पर मुनहिसर नही है बल्कि मुसलमानो के तमाम फिरक़ो ने मोतबर रिवायत से इसको नक़ल किया है। इस सिलसिले मे एक या दो रिवायत नही बल्की बहुत से अक़वाल और रिवायते मौजूद हैं।
उस्ताद अली मोहम्मद अली ने अपनी किताब मे अहले सुन्नत के बुजु़र्ग उलमा की 206 किताबो का नाम लिखा है जिनमे से 30 अफराद ने हजरत मैहदी अलैहिस्सलाम के बारे मे मुस्तक़िल किताब लिखी है और 32 अफराद की किताब जिनमे एक फस्ल जो इमाम मैहदी अलैहिस्सलाम के बारे मे पाई जाती है। शीयों से इमामे ज़माना अलैहिस्सलाम के सिलसिले मे जो रिवायते मौजूद है। वह इस क़दर ज़्यादा है कि मसाइले इस्लामी से कम मौज़ुआत इस पाए को पहुंचेंगे और शिया उलमा मे से बहुत ही कम लोग ऐसे मिलेंगे जिन्होंने आपके बारे मे किताब ना लिखी हो या कोई बात ना कही हो।
किताब-इमामे ज़माना अलैहिस्सलाम के मोअल्लिफ तहरीर फरमाते हैं:- हज़रत मैहदी अलैहिस्सलाम के बारे मे जो रिवायते शिया-सुन्नी तारीख़ो से पहुंची है। वह 6000 से ज़्यादा हैं।
बनी अब्बास के ख़लीफा मंसूर ने अपने बेटे का नाम मैहदी रखा ताकि लोगो के इंतजार से फायदा उठा सकें।
इमामे ज़माना अलैहिस्सलाम के बारे मे अहले सुन्नत और शियों के तरीके से वारिद होने वाली रिवायत के मजमून से आशना होने के लिए नमूने के तौर पर चंद आहदीस का ज़िक्र किया जा रहा है:-
पैग़ंबरे इस्लाम ने फरमाया अगर दुनिया की उम्र का एक ही दिन बचेगा तो भी ख़ुदा हम मे से एक शख़्स को भेजेगा तो दुनिया को अदलो इंसाफ से उसी तरह से भर देगा जिस तरह वह ज़ुल्मों-सितम से भरी होगी।
उम्मे सलमा नक़ल फरमाती है:- रसूले अकरम अलैहिस्सलाम इमामे ज़माना अलैहिस्सलाम को याद फरमाते। और फरमाते है कि हां वह हक़ है वह बनी फातिमा मे से होगा।
इमामे रिज़ा अलैहिस्सलाम ने फरमाया खुल्फ सुलेह, फर्ज़ंदे हसन इब्ने अली,साहिबज़्ज़मां और वही मैहदी मौऊद है।"
इमाम जाफर सादिक अलैहिस्सलाम ने फरमाया:- "क़ायम अलैहिस्सलाम की 2 ग़ैबते हैं। अव्वल मे ख़ास शिया के अलावा कोई और उनकी क़ायमगाह को नही जान सकेगा और दूसरी ग़ैबत मे सिवाए उनके ख़ास दोस्तों के कोई उनकी जगह की मालूमात नही रखता होगा।
उम्मीद और इंतेज़ार और इसके मुख़तलिफ आसार इंसान की फर्दी और इज्तेमाई ज़िन्दगी मे नाक़ाबिल इनकार है। कोई भी इंसान अपनी फितरत के तक़ाज़े के मुताबिक़ उम्मीद और इंतेज़ार से खाली और बेनियाज़ नही है।  इसलिए कि इनहेराफ से दूरी मुश्किलात के मुक़्बले मुक़ावेमात पैदा करने और कमाल की तरफ बढ़ने के लिए उम्मीद और इंतेज़ार से बेहतर और कोई कारसाज़ वसीला नही है।
तमाम दीन इस बात पर यक़ीन रखते है। तमाम दीन और मकातिबे इस्लाम ख़ुसूसन मकतबे तशय्यो मे मसलए इंतेज़ार और उम्मीद को ख़ास अहमियत दी गई है।
इमामे मुसा काज़िम अ० 1 रिवायत मे अली इब्ने यक़तीन से फरमाते हैं:- "2 सदियों से शिया उम्मीद और आरज़ू के साए मे रुश्द और परवरिश पा रहे हैं।"
इस लफ्ज़ पर तवज्जो देने से पता चलता है कि मसलए इंतेजार फरज इमामे ज़माना अ० के नज़रो से ग़ायब होने के बाद शुरू नही हुआ बल्कि इसका सिलसिला सदरे इस्लाम और नबिये करीम के ज़माने तक पहुंचता है। चंद नमूने इंतेज़ारे फरज के बारे मे मुलाहेज़ा फरमाएं:-
1- अमीरुल मोमिनीन अलैहिस्सलाम ने पैग़ंबरे अकरम अलैहिस्सलाम से फरमाया है:- "इंतजारे फरज (मेहंदी अलैहिस्सलाम) तमाम इबादतो से अफज़ल है।
2- इमामे अली अलैहिस्सलाम फरमाते है। तुम मुंतज़िरे फरज रहो और रहमते खु़दा से मायूस ना होना बेशक खु़दा के नज़दीक महबूब तरीन अामाल इंतजारे फरज है।
3- इमाम जै़नुल आबेदीन अलैहिस्सलाम ने फरमाया:- " मुंतज़िरे फरज रहना बुज़ुर्ग तरीन कशाइश है।
4- इमाम जाफर सादिक़ अलैहिस्सलाम ने फरमाया हमारे क़ायम के चाहने वाले खुश नसीब मे जो इनकी ग़ैबत के ज़माने मे उनके ज़हूर के लिए चश्मेबरूह ,और जब वह ज़ाहिर होंगे तो उनका हुक्म मानेगें। वह लोग खु़दा के औलिया है और किसी क़ि़स्म का खोफो हरस उनको नहीं है।
इंतजारे फरज क़ायम अाले मोहम्मद अलैहिस्सलाम ने उनके पैरो को इस क़दर जुस्तजू से और कोशिश मे डाला कि अक्सर ऐसा भी हुआ है कि आईम्माए अतहर अलैहिस्सलाम के शिया पूछ लिया करते थे, क्या क़ायमे आले मोहम्मद अलैहिस्सलाम और मैहदी अलैहिस्सलाम मुंतज़िर आप ही हैं? और वह हज़रत भी हालात की मुनासिब से इमामे क़ायम अलैहिस्सलाम का तार्रुफ कराते थे।
इमामे ज़माना अलैहिस्सलाम के चौथे नायब की वफ़ात के बाद ग़ैबते कुबरा का ज़माना शुरू हुआ और अब तक ग़ैबते कुबरा का दौर चल रहा है। आपका ज़हूर और क़याम इस दौर के ख़त्म होने के बाद होगा। आपके ज़हूर का वक़्त सिर्फ खु़दा को मालूम है और अगर कोई इसका वक़्त मोअय्यन (डिसाइड) करे तो वह झूठे है।
फुज़ैल ने इमामे बाक़िर अलैहिस्सलाम से पूछा:- क्या इस अम्र के लिए कोई वक़्त मोअय्यन नही किया जा सकता है?
आप अलैहिस्सलाम ने फरमाया:- "वक्त मोअय्यन करने वाले झूठे हैं।"
इसहाक़ इब्ने याक़ूब ने मोहम्मद इब्ने उस्मान उमरी के ज़रिए एक ख़त इमामे अस्र अलैहिस्सलाम को भेजा और उनसे चंद सवालात दरियाफ्त किए। इमाम अलैहिस्सलाम ने इस सवाल के जवाब मे जो ज़हूर से मुताल्लिक़ पूछा गया था फरमाया:- "ज़हूरे फरज खु़दा वंदे आलम के हुक्म से वाबस्ता है और वक़्त मोअय्यन करने वाले झूठे हैं।"
इन रिवायतो से मालूम होता है कि ज़हुर का वक़्त सिर्फ खुदा ने मोअय्यन किया है, इमाम अलैहिस्सलाम ने भी नहीं। लेकिन कुछ अलामते बयान फरमाई है।  जिससे ज़हूूर की खु़शख़बरी मिलती है ज़हुर से पहले की कुछ अलामतो का ज़िक्र किया जा रहा है:-
बहुत सी रिवायाते बताती है। कि आपका क़याम उस वक़्त होगा जब जुल्मों-जोर दुनिया को अपनी लपेट मे ले लेगा।
बाज़ रिवायतो मे यह भी बयान हुआ है कि हज़रत क़ायम अ० के ज़हूर से पहले इस्लामी मुआशरे मे फिस्क़ो फुजूर, मुख़्तलिफ क़िस्म के गुनाह और बुराइयां मुकम्मल तौर पर फैली हुई होंगी जैसे शराबखोरी, सूदखोरी, ज़िना, मुंशीयात की खरीद-फरोख्त।
इस्लामी इंकलाब के अज़ीन रहबर हज़रत ख़ुमैनी की रहबरी मे मिल्लते ईरान का इस्लामी इंकलाब इंशाल्लाह इमामे अस्र के आलम मे इंकलाब का मुक़दमा होगा। ख़ुदा का शुक्र है कि बहुत सी बुराइयां और ख़राबी की जड़ इस्लामी मुल्क ईरान मे ख़त्म हो गई और इस बात की उम्मीद है की एक दिन सारी दुनिया अदलो इंसाफ से भर जाएगी।
कुछ रिवायतो की बुनियाद पर उमवी और उत्बा इब्ने अबी सुफियान की नस्ल से होगा उसका नाम उस्मान होगा वह खानदान ए रिसालत और शियों से दुश्मनी रखता होगा। वह सुर्ख चेहरा,कारंजी आंखों वाला चेहरे पर चेचक के दाग़,करीहुल मंज़र जालीम खयानतकार और शाम मे क़याम करेगा और बड़ी तेज़ी से 5 शहरों पर कब्ज़ा कर लेगा और एक बड़े लश्कर के साथ कूफे की तरफ बढ़ेगा इराक़ के शहरो मे खु़सूसन नजफ और कूफे मे बड़े-बड़े जुर्मकरेगा और मदीने की तरफ लश्कर रवाना करेगा। इसके सिपाही मदीने मे क़त्लो ग़ारत मचाएंगे,वहां से मक्के की तरफ जाएंगे लेकिन मक्का और मदीने के दरमियान ख़ुदा के हुक्म से ज़मीन मे धंस जाएंगे और फिर यह मक्के से मदीने की तरफ और मदीने से कूफे की तरफ रवाना होने के बाद इराक़ से दमिश्क की तरफ फरार करेगा और इमाम एक लश्कर का पीछा करेंगे और फिर बैतूल मुक़द्दस मे इमाम अलैहिस्सलाम के सिपाहियो के हाथो हलाक हो जायेंगे।
सय्यद हसनी मोजूदा रिवायत की बिना पर बुज़ुर्गाने शिया से हैं, इरान मे क़याम करेगें और लोगो को इस्लाम की ओर आइम्मा की रवीश की तरफ बुलाएंगे बहुत से इनके साथ होंगे और बहुत बड़े इलाक़े को अपनी जगह से कूफा तक ज़ुल्मो-जौर से पाक कर देगें और कूफे मे ख़बर फैल जाएगी इमामे क़याम अ० ने ज़हूर किया है। और अपने असहाब के साथ कूफे की तरफ आ रहे हैं। सय्यद हसनी इस्तक़बाल के लिए जाएगें फिर सय्यद हसनी अपने साथियो के साथ इमाम अ० की बैयत करेगें।
ज़हूर की अलामतो मे से 1 निदाए आसमानी है जो हज़रत अली अलैहिस्सलाम और उनके  हक़्क़ानियत को साबित करने के लिए आएगी और कुछ अलामते है। जो कुछ ज़हूर से पहले और कुछ जहूर के साथ होंगी।
इमामे अस्र अ० इज़्ने परवरदिगार (ख़ुदा के हुक्म से) के बाद काबे मे रुकेंगे और मकामे मबीन मे ज़ाहिर होंगे। इस हालत मे की परचम आपके हाथ मे होगा शमशीर, अमामा और पैगंबर अलैहिस्सलाम का पैराहन आपके साथ होगा हक़ का मनादी आपके ज़हूर की बशारत को सारी दुनिया के लोगो के कानों तक पहुंचाएगा और नाम और अलामात के साथ आपकी पहचान कराएगा और लोगो से कहेगा कि इनकी बैयत करो।
इमाम अलैहिस्सलाम के खास दोस्त जिनकी तादाद 313 है आसमानी आवाज़ पर लब्बैक कहकर दावत के बाहर फोरेन मक्के मे आपकी बैयत करेंगे।
इसके बाद इमाम अलैहिस्सलाम अपनी उमुमी दावत शुरू करेंगे और फरिश्तो के ज़रिए आपकी मदद की जाएगी और सितम रसीदा अफराद आपकी बैयत करेंगे। इनके मददगार जंगजू, फिदाकार ,दिन के शेर और रात के राही होंगे। इन के दिल लोहे के टुकड़े की तरह मज़बूत होंगे और इनमे से हर आदमी 40 आदमियो की ताक़त रखता होगा वह लोग इमाम अलैहिस्सलाम की इताअत करने मे अनथक कोशिश करने वाले होंगे। और जिधर जाएंगे कामयाब होंगे। इमाम अलैहिस्सलाम कुछ दिन मक्के मे रहेंगे और फिर मदीने की तरफ रुजू करेंगे और मदीने मे जंग के बाद अपने सिपाहियो के साथ कूफा आएंगे और उसको अपनी हुकूमत का मरकज़ क़रार देंगे।
इमाम अस्र अलैहिस्सलाम अल्लाह की वसीयत से थोड़े दिनो मे आलमे मश्रिक और मग़रिब को फतेह करेंगे और इस्लाम को पूरी दुनिया मे फैलाएंगे इस्लाम के पैकर को बिदअतो से दूर कर देंगे और किताबे ख़ुदा और सुन्नते पैगंबर अलैहिस्सलाम के मुताबिक़ हुकूमत करेंगे।
हजरत ईसा मसीह आसमान से तशरीफ लाएंगे और नमाज़ मे आपकी इक़तेदा करेंगे। हज़रत मैहदी अलैहिस्सलाम की हुकूमत मे ज़मीन के खज़ाने और इसकी बरकते ज़ाहिर हो जाएंगी। सरवतो नेमत इतनी बढ़ जाएगी की फक़ीरी ख़त्म हो जाएगी,सदक़ा ज़कात देने के लिए कोई फक़ीर नहीं मिलेगा,अदलो इंसाफ,अमनो चैन हर जगह होगा। इस तरह कि अगर कोई बूढ़ी औरत अपने सर पर सोने और जवाहरात का तश्त रखकर एक जगह से दूसरी जगह जा रही होगी तो कोई आदमी उसके लिए रुकावट नही बनेगा। इमाम अलैहिस्सलाम के साथ तमाम सितम रसीदा अफराद की वीरानियां आबाद हो जाएंगी आप अलैहिस्सलाम के असहाब की आंखों और उनके कानो को खुदा वंदे आलम इतनी ताक़त अता करेगा कि वह लोग आपकी बाते सुनगें और आपको देखेंगे, अपनी जगह पर ही रहेंगे।
इमाम अलैहिस्सलाम की हुकूमत मे ख़ुदा वंदे आलम अपना लुत्फ अपने बंदों के सर पर रखेगा। उनकी अक़्ल को मुस्तहकम (मज़बूत) और फिक्रो को तरक़्की अता करेगा।
इस ज़माने मे हर शख़्स और हर चीज़ अपने कमाल और ज़ेबाई तक, इंसानियत की तमाम तमन्नाएं और आरजू़ऐं ख़ुदा के वलिए-आज़म की हुकूमत के ज़ेरे साए पूरी होंगी ओर ख़ुदा वंदे आलम ने यह वादा फरमाया है कि हम वादा करते हैं कि मुस्ताज़ेफीन पर हम रहम करेंगे और उनको ज़मीन का वारिस बनाएंगे।
ज़हूरे हज़रत मैहदी अलैहिस्सलाम और हुकूमत मे दुनिया और इंसान का क्या हाल होगा यह इसका मुख़्तसिर सा बयान था ।

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