(हमारे ग्यारवे इमाम) इमाम हसन अस्करी अ० की ज़िन्दगी से जुडी कुछ बाते।

हमारे ग्यारवे इमाम की विलादत 10 राबीउस्सानी 232 हिजरी मे मदीने मे हुई। आपका हसन और कुनियत अबु मोहम्मद और सबसे ज़्यादा मशहूर लक़ब अस्करी था। आपके वालिद बुज़ुर्गवार इमाम अली नक़ी अ० और आपकी मादरे ग्रामी जनाबे हदीसा थी।
अबु हाशिम जाफरी इमाम अली नक़ी अ० के बारे मे बताते है आपने फ़रमाया मैरे जानशीन मेरे बेटे हसन है। और फ़रमाया क्या तुम जानते हो मेरे जानशीन के साथ कैसे रहोगे? मैने फ़रमाया मै आप पर निसार हो जाऊ बताइये कैसे रहे आपके जानशीन के साथ ?
आपने फ़रमाया जब कोई शख़्स उनको ना देखे तो उसके लिए मुनासिब नही के उसका नाम ले।(अगर कोई शख़्स इमाम अ० को देखना चाहता है और इमाम अ० उसको नज़र नही आते तो उस शख़्स के लिए मुनासिब नही है के वो इमाम का नाम ले इमाम को पुकारे।)
मैने इमाम अ० से पूछा फिर उनको कैसे पुकारेंगे आपने फ़रमाया तुम कहना अल्हुज्जतो मिन आले मोहम्मद।
याहिया बिन यासार बयान करते है के इमाम अली नक़ी अ० ने अपनी रहलत से 4 महीने पहले अपने बेटे इमाम हसन अ० से वसीयत की और उनकी इमामत और ख़िलाफत की तरफ इशारा फ़रमाया मुझको और कुछ दोस्तो को उस बात का गवाह बनाया।
इमाम हसन अस्करी अ० ने अपनी उम्र के 22 साल अपने वालीदे ग्रामी अ० के दामन मे तरबियत गुज़ारी और 2 साल की उम्र मे अपने वालिद के साथ सामरा मे तशरीफ़ ले गए आप वहा 20 साल की मुद्दत तक रहे जब बनी अब्बास के ख़लीफा की निगरानी खास कर जब मुतावक्किल आपके वालिदे ग्रामी पर ज़ुल्मो सितम ढाता था।
इस तमाम मुद्दत मे आप अपने वालिद के मददग़ार थे।
इमाम हसन अस्करी अ० मानवी फज़लो कमालात मे पैग़म्बर स० और तमाम आइम्मा अ० की सीरत थे और हर दोस्त और हर दुश्मन भी आपकी अख़लाक़ी अज़मत का एतराफ़ करता था।
हसन इब्ने मोहम्मद अशरी, मोहम्मद बिन याहिया और कुछ दूसरे लोगो ने बयान किया के एक दिन अहमद इब्ने अब्दुल्लाह अलवियो के अक़ीदे का तज़किरा कर रहा था। अहमद इब्ने अब्दुल्लाह जो अहलेबैत अ० का सख़्त दुश्मन था और वो नसबिया मे से था। उसने कहा क़िरदार, विक़ार, इफ़्फ़त, फज़ीलत और  अज़मत मे मैने अपने ख़ानदान और बनी हाशिम मे हसन इब्ने अली अ० के जैसा किसी को नही देखा।
इसके बाद वो अपनी बाब से इमाम हसन अ० से मुलाक़ात का वाक़या बयान करता हुआ कहता है। के मैरे बाप ने इमाम हसन अ० के बारे मे मुझसे कहा अगर ख़िलाफत बनी अब्बास के हाथ से निकल जाये तो ख़िलाफत को बचाने के लिये बनी हाशिम मे से उनसे ज़्यादा कोई मुनासिबत नही रखता और ये बात उनकी फज़ीलत, इफ़्फ़त, इबादत और नेक अख़लाक़ की वजह से है। अगर तुमने उनको और उनके वालिद को देखा तो तुमको एक बुज़ुर्ग  बाफज़ीलत इन्सान की ज़ियारत का शरफ़ हासिल होगा।
कुछ लोगो ने कामिल इब्राहिम मदनी को चन्द मसले पूछने के लिए इमाम अ० की ख़िदमत मे भेजा । उसका बयान है कि जब मै इमाम अ० की ख़िदमत मे पहुँचा तो मेने देखा कि सफ़ेद और लतीफ़ लिबास जिस्म पर है। मैने अपने दिल मे सोचा के वाली और हुज्जते ख़ुदा नरम और लतीफ़ लिबास पहनते है। और हमको दूसरे भाइयो के साथ हमदर्दी का हुक़्म देते है और ऐसा लिबास पहनने से रोकते है।
इमाम अ० मुस्कुराये फिर अपनी आस्तीन चढ़ाई और मैने देखा के खुरदुरा और काला लिबास इसके निचे पहने हुए है फिर आपने फ़रमाया खुरदुरा लिबास ख़ुदा के लिए और सफ़ेद लिबास तुम्हारे लिए है।
अपने वालिदे ग्रामी के बाद इमाम हसन अ० ने 254 हिजरी मे मनसबे हुक़ूमत सम्भाला। आप अपनी इमामत के छोटे से दौर मे 6 साल मे बनी अब्बास के 3 ख़लीफा (मोताज़िर) एक साल और (मोहतदी) एक साल और (मोतामीद) के 4 साल के हमअस्र थे
आपके ज़माने के तीनो ख़लीफा की वही गन्दी सियासत थी पहले ख़लीफा आपके बुज़ुर्गो के साथ चल चुके थे। सियासत मामून के ज़माने के बाद और भी ज़्यादा शदीद और तक़लीफदय हो गयी थी। इमाम हसन अस्करी अ० और नवे इमाम अ० और दसवे इमाम अ० की बनिस्बत ज़्यादा और सख़्त निगरानी मे थे। इसकी वजह ये थी के इमाम हसन अस्करी अ० के ज़माने मे अहलेबैत के एक अज़ीम और क़ाबिले तवज्जो की सीरत मे उभर कर सामने आये थे मताज़ीर के ज़माने मे अलवियो और ख़ानदाने जाफ़रे तय्यार मे से 70 से ज़्यादा ऐसे लौगो को क़ैद करके सामरा लाया गया जिन्होंने हिजाज़ मे क़याम किया था। उन लौगो के ये बात अच्छे से पता थी के जो बातिल की बुनियाद को ख़त्म कर देंगे वो इमाम हसन अस्करी अ० थे। इमाम अ० के बारे मे ख़लीफा ने क़त्ल का इरादा किया और सईद को हुक़्म दिया के इमाम अ० को कूफ़ा ले जाये लौगो की नज़रो से दूर रास्ते मे क़त्ल करदे। लेकिन 3 दिन बाद जिन लौगो ने मताज़ीर को औने ख़िलाफ़ देखा। उसपर हमला करके ख़िलाफत से हटाकर एक तहख़ाने मे क़ैद कर दिया और वो वही मर गया।
मताज़ीर के बाद 255 हिजरी मे मोहतदी ने हुक़ूमत सम्भाली। इसने लौगो के फरयाद के लिए लर मुश्किलो को हल करने के लिए एक ख़ेमा नसब किया और वहा लौगो की मुश्किलात को हल करता था। शराब को हराम क़रार दिया और गाने से परहेज़ किया।
लेकिन ये ज़ाहिरे मुनाफ़िक़ाना बाते थी। इसका रवैय्या इमाम अ० के साथ बहुत सख़्त था। इसने इमाम अ० को मुद्दत तक क़ैद रखा। यहाँ तक के आपके क़त्ल का इरादा भी कर लिया। लेकिन इसको अजल ने मौका ना दिया और वो हलाक़ हो गया। इसकी ख़िलाफत 11 महीने से ज़्यादा न चल सकी और इसकी जगह मतामीद ख़लीफा बना।
मतामीद को सितमगरी और अय्याशी के अलावा कोई काम ना था। वो अपना ज़्यादातर वक़्त अय्याशी मे गुज़रता था। यहाँ तक के धीरे धीरे इसके भाई माफ़िक़ ने सारे काम अपने हाथो मे ले लिया।
और इसकी हुक़ूमत के दौर मे अलवियो का एक गिरोह बहुत ही बेदर्दी से शहीद कर दिया गया। इनकी ख़िलाफत के ज़माने मे जंग और फसाद बहुत था। इतना ख़ून ख़राबा के मुसलमान के जानी नुकसान की तादाद 15 लाख लिखी है।
मतामीद ने इमाम अ० को क़ैदखाने मे डाल दिया और आपके बारे मे निगरानी करने वालो से हर रोज़ रिपोर्ट माँगा करता था। और हर रोज़ यही रिपोर्ट उसको मिलती थी के आप हमेशा दिन मे रोज़ा रखते है रातो को नमाज़ और इबादत मे गुज़ारते है।
अलवियो और ग़ैर अलवियो की साज़िशे इमाम हसन अ० के इमामत के ज़माने मे भी जारी थी
इब्राहिम बिन मोहम्मद अल्वी की तहरीक़ जो सूफी के नाम से मशहूर थी उन्होंने 256 हिजरी मे मिस्र मे क़याम किया और शहरे असना पर क़ब्ज़ा कर लिया अहमद के सिपाहियो को शिकस्त देदी। लेकिन दूसरी बार इसके लश्कर से शिकस्त खा गए और बहुत नुकसान उठाया और फिर वहा से भाग गए 259 हिजरी को दोबारा क़याम किया और लौगो को अपनी तरफ जमा किया मक्का पहुँचे और उस सेहरा के हाकिम ने इन्हें गिरफ्तार कर लिया और क़ैद कर दिए गए। ज़िन्दान से रिहाई के बाद मदीने लौटे और इंतेक़ाल कर गए।
साहिबे जंज की साज़िश 255 हिजरी मे इसने क़याम किया और उसमे हज़ारो आदमी मारे गए। लौगो की इज़्ज़त और नामुस पर इसने हमला किया। सेहरा मे आग लगा दी अली इब्ने मोहम्मद और अलवियो ने बताया वो अपना सिलसिलाये नसब अली इब्ने हुसैन तक पहुचता था जबकि वो जनता था बल्कि उसका सिलसिलाए नसब तो क़ैस तक पहुँचता था। और उसकी माँ बनी असद इब्ने हुज़ैमा से थी।
साहिबे ज़ंज का नारा ग़ुलामो और मज़दूरो की हिमायत का नारा था।इसीलिए इसे साहिबे ज़ंज कहते है।
अगरचे इमाम अ० ने अपनी पूरी ज़िन्दगी जा ज़माना हुक़ूमत की नज़रबन्दी मे गुज़ारी लेकिन इसके बावजूद इल्मी और सख़ाफती पहलुओ और बलन्द और बेश क़ीमत क़दम उठाने मे कामयाब रहे।
अबु हमज़ा बयान करते है मैने इमाम अ० को बारह ज़बान, फारस और दूसरे मुख़्तलिफ़ नस्लो ज़बान के ग़ुलामो से उनकी ज़बान मे बाते करते देखा है। मुझे ताज्जुब हुआ और मैने अपने दिल मे कहा के इमाम अ० तो मदीने मे पैदा हुए और इनसे आपका राबता भी नही तो फिर ये ज़बाने आपने कहा से सीखी?
इमाम अ० ने इस बात की कोशिश की के इस तरह से तारीक़ से इमामत के हालात को ग़ुलामो के लिए ज़ाहिर कर दे।और उनको ये समझा दे के इमाम को भी पैग़म्बर की तरह अपनी तरफ रुजुह करने वालो की ज़बान से वाक़ीफ़ होना चाहिए वरना वो इमाम नही है। और इस दलील के साथ ख़ुदा ने अपनी हुज्जत इमाम अ० को तमाम मख़लूक़ात से ज़्यादा बनाया है इल्मो मारफत अता की है।
मोताज़िर के क़त्ल से 20 दिन पहले इमाम अ० ने अपने एक चाहने वाले को लिखा के अपने घर के अन्दर बैठे रहो हरगिज़ बाहर ना निकलना यहां तक कोई हादसा पेश आ जाये तब भी बाहर मत निकलना।
मोहम्मद इब्ने अली आपके सहाबी और आप फ़र्ज़न्द के चोथे नायाब थे। इमाम अ० ने उनको लिखा के एक फ़ितना जो तुम्हारे ऊपर  साया डाल रहा है। इस बिना पर ज़रूरी तैयारी किये रहो।
अबु ताहिर ने सफ़रे हज मे अली इब्ने जाफर को देखा के बहुत ज़्यादा बक्शीशो अता कर रहे है। वापसी पर एक ख़त मे आपने इमाम अ० को लिखा। इमाम अ० ने जवाब दिया मै तहरीर फ़रमाया हमने खुद उनको इस काम के लिए 1 दीनार दिया है और जब हमने चाहा एक लाख दीनार और दे तो उन्होंने क़ुबूल नही किया।
इमाम हसन अस्करी अ० की जो सबसे मुश्किल ज़िम्मेदारी थी वो ये थी के मुसलमानो को आगाह करदे के आपके फ़र्ज़न्द क़यामे आले मोहम्मद है।
और ऐसे हालात और ऐसे माहोल मे ऐसी फ़िक्र लौगो के ज़हन मे डालना बहुत मुश्किल काम था इसी वजह से इमाम अ० ने अपनी तमाम कोशिशो को सर्फ कर दिया ताकि लौगो का ईमान ना डगमगाए और उनका ज़हन इस बात को क़ुबूल करने के लिए आमादा हो जाये के ग़ैबत पर ऐतक़ाद रखना ज़रूरी है।
खलिफ़ाये बनी अब्बास और मतामीद इस बात को जानते थे के पैग़म्बर के जानशीन 12 अफ़राद है उनमे से बारवा ग़ैबत के बाद ज़हूर करेंगे और दुनिया को अदलो इंसाफ से भर देगा इसी वजह से मतमीद ने एक तबीब को जासूस बना कर इमाम अ० के घर मे रख दिया था ताकि वो आपकी ज़िन्दगी का नज़दीक से जयज़ा ले और उनके फ़र्ज़न्द के बारे जुस्तुजू करे। आख़िरकार जब मतामीद ने देखा के लौगो की तवज्जो दिन-बा-दिन इमाम अ० की तरफ बढ़ती जा रही है। निगरानी और क़ैदी बनाने का उल्टा असर हो रहा है। तो उसने आपको क़त्ल करने का इरादा किया और ख़लीफा तौर पर आपको ज़हर दे दिया। इमाम अ०   8 रोज़ के बाद साहिबे फराश हो गए। 8 रबिउलव्वल 260 हिजरी मे आलमे जावेदांनी से कूच कर गए। और अपने वालिदे बुज़ुर्गवार की क़ब्र के पास सामरा मे सुपुर्दे ख़ाक किया गए।

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