(हमारे दसवे इमाम) इमाम अली नक़ी अ० की ज़िन्दगी से जुडी कुछ बाते।

शियो के दसवे इमाम की विलादत ज़िलहिज मे 212 हिजरी को मदीने मे हुई। आपका नामे मुबारक अली और सबसे मशहूर लक़ब नक़ी और हादी है और आपकी कुनियत अबुलहसन है।
इमाम अ० के वालिदे ग्रामी इमामे जव्वाद अ० जो हमारे नवे इमाम है और आपकी वालिदा सामाना एक बाफज़ीलत और बा तक़वा ख़ातून थी।
इमाम अ० ने अपनी उम्र के 7 साल कुछ दिन अपने वालिद के साथ उनकी तरबीयत और ख़ास निगरानी मे गुज़री।
आप जिस माहोल मे परवान चढ़े वो माहोल तक़वा और अख़लाक़ वग़ैरा से भरा हुआ माहोल था।
इल्मो मारफत, तक़वा, इबादत में अपने ज़माने के सारे लौगो से बलन्द थे। इसलिए उनके वालिद के बाद इमामत और रहबरी का बलन्द मरतबा आप ही को मिला।
उम्मैया इब्ने अली क़ैसी नक़्ल करते है। कि मैने अबु जाफर अ० से अर्ज़ किया के आपका जानशीन कौन होगा? तो आपने फ़रमाया मैरे फ़रज़न्द अली अ०।
सक़रा बिन दुल्फ़ कहते है कि मैने अबु जाफर इमामे जव्वाद अ० से सुना आप फरमाते थे कि मैरे बाद पेशवा मैरे बेटे अली है। उनका फरमान मेरा फरमान,उनकी गुफ़्तार मेरी गुफ़्तार और उनकी पैरवी मेरी पैरवी है। और उनके बाद उनके बेटे इमाम है। इमाम अ० ने अपने अख़लाक़ और फ़ज़ाइले इन्सानी का मुज्जस्समा थे।
इब्ने सबाह मलिक अपनी किताब मे आपके अख़लाक़ की खुसूसियत को बयान करते हुए फरमाते है। के आपकी फज़ीलत हर जगह फैली हुई थी। हर क़बीले तारीफ़ खसलत जब बयान मे आती है तो उसको बलन्द तरीन और मुकम्मल हिस्सा आपही से मुताल्लिक़ होता है आपका अख़लाक़ शीरीन है। आपकी सीरत आदिलाना और आपका वक़ार, सुकून सब्र,इफ़्फ़त तहारत मे बिल्कुल नबियो की तरह थे। मुतावक्किल की मोइएन किये हुए शख़्स छानबीन के लिए अचानक कई बार आपके घर घुस आते थे। और सिर्फ इमाम अ० खुरदुरा लिबास पहने और चटाई पर नमाज़ पर पढ़ते हुए देखते थे।
एक कितना मे आपके बारे मे इस तरह से लिखा गया है - इबादत परवरदिगार से शदीद मोहब्बत की वजह से आप अ० रातो को आराम नही करते थे और थोडी देर के अलावा आप सोते नही थे। आधी रात को कंकरो पर बैठ कर इस्तेग़फ़ार और तिलावत मे रात बसर करते थे।
इमाम अ० के दोस्तो मे से चन्द अफ़राद जैसे अबु अमरू, उसमान इब्ने साद, अहमद इब्ने इस्हाक़ अशरी और अली इब्ने जाफर हमदानी आपकी ख़िदमत मे पहुँचे। अहमद इब्ने इस्हाक़ ने अपने भारी क़र्ज़ की इमाम अ० से शिकायत की, इमाम अ० ने अपने वक़ील अबु अमरू से फ़रमाया 30 हज़ार दीनार अहमद को और 30 हज़ार दीनार अली इब्ने जाफर को देदो और अपने लिए 30 हज़ार दीनार उठालो।
अबु हाशिम जाफरी नक़्ल करते है। मै बहुत ज़्यादा मोहताज हो गया था।मै इमाम अ० की ख़िदमत मे पहुँचा। जब मै बैठ गया तो आप अ० ने फ़रमाया अबु हाशिम ख़ुदा ने जो नेमते तुम्हे दी है। उनमे से किसी एक नेमत का शुक्र अदा कर सकते हो। मै चुप रहा और ये ना समझ सका के क्या कहा।
इमाम अ० ने फ़रमाया ख़ुदा ने तुमको इमान दिया है उसके ज़रिये उसने तुम्हारे जिस्म को दोज़ख़ की आग से बचा लिया है, ख़ुदा ने तुमको सेहत दी है और आओनी इबादत के लिए तुम्हारी मदद की है। ऐ अबु हाशिम मैने ये बाते इसलिए शुरू की के मैने गुनाह किया के तुम इसके बारे मे मुझसे शिकायत करना चाहते हो। जिसने ये तमाम नेमते तुमको दी है मैने हुक़्म दे दिया के 100 दीनार तुमको दिए जाये तुम इनको लेलो।
मोहम्मद इब्ने हसन अश्तर अल्वी नक़्ल करते है के मै अपने वालिद के साथ मुतावक्किल के घर गया था और आले अबुतालिब और आले अब्बास और आले जाफर की भी एक जमात वहा मौजूद थी। कि इमाम हादी अ० तशरीफ़ लाये वो तमाम लोग जो वहा खड़े थे। ईमाम अ० के अहतराम मे सवारियो से उतर पड़े। इमाम अ० घर मे दाख़िल हुए। लौगो मे से कुछ ने एक दूसरे से कहा हम इनके लिए क्यो अपनी सवारी से उतरे? वो ना तो हमसे ज़्यादा साहिबे शरफ़ है और ना हमसे उम्र मे बड़े है।
अबु हाशिम ने कहा जब तुम उनको देखोगे तो खुद ही उतार जाओगे। अभी थोड़ी देर ना गुज़री थी के इमाम अ० आये जब लौगो की नज़र आप अ० पर पड़ी तो बे इख़्तियार सवारियो से उतर पड़े। अबु हाशिम ने कहा क्या तुमने नही कहा था के हम नही उतरेंगे लौगो ने कहा ख़ुदा की क़सम हम अपने को रोक नही पाये और बेइख़्तियार उतर पड़े।
इमाम अ० 220 हिजरी मे अपने वालिद की शहादत के बाद 8 साल की उम्र मे इमामत के मनसब पर फायज़ हुए। आपकी इमामत की मुद्दत 33 साल कुछ दिन थी। इस मुद्दत मे बनी अब्बास के 6 ख़लीफा थे।
दसवे इमाम अ० की इमामत का ज़माना परेशानी और इंकेलाब का ज़माना था। उस ज़माने मे इमाम अली अ० के खानदान और और दोस्तो के साथ सख़्त और बुरा सलूक किया जाता था। ख़िलाफत ऐसे लोगो के हाथो मे थी के जो इसको एक गन्ध की तरह समझते थे और जिधर चाहते उधर फेक देते थे। और मतामिद ने भी खुद इस बात का ऐतेक़ाफ़ किया है। इस ज़माने मे रज़ाये आले मोहम्मद और हुक़ूमत के ज़ुल्मो सितम के ख़िलाफ बहुत सी तहरीके उठी।
तहरीक़ के लीडर ये देख रहे थे कि इनके मासूम इमाम अ० सामरा मे क़ैद है और उनकी सख़्त निगरानी की जा रही है। इसलिए वो लौगो को पूरी तरह से रज़ाये आले मोहम्मद की तरफ दवात देते थे।
मारेक़ीन ने 18 तहरिक़ो के नाम बयान किये है जिसमे से कुछ के बारे मे हम आपको बता रहे है।
1- मोहम्मद इब्ने क़ासिम अल्वी की तहरीक़ ये है कि आलिम और ज़ाहिद आदमी थे। और इन्होंने मुतसिम के ज़माने मे क़याम किया था और अब्दुल्लाह इब्ने ताहिर के साथ एक झगडे के बाद 219 हिजरी मे अब्दुल्लाह के हाथो गिरफ़्तार होकर मुतसिम के पास लाये गए।
2- याहिया इब्ने उमर अल्वी :- याहिया भी एक आलिम, ज़ाहिद और मुत्तक़ी आदमी थे। उन्होंने 250 हिजरी मे कूफ़ा मे क़याम किया और बहुत से लौगो को अपने इर्द गिर्द जमा कर लिया। और बैतुलमाल पर हमला करके अपने क़ब्ज़े मे कर लिया और ज़िन्दान के दरवाज़े खोल कर कैदियों को आज़ाद कर दिया। सेहर के हक़ीमो को सेहरा स्व बाहर निकाल दिया। लेकिन आख़िर मे शिकस्त खा कर हुसैन इब्ने इस्माइल के हाथो क़त्ल हुए।
3- हुसैन इब्ने ज़ैद :- इन्होंने 250 हिजरी को तब्रिस्तान मे क़याम किया सरज़मीन पर क़ब्ज़ा कर लिया। और 270 हिजरी मे इंतेक़ाल फ़रमाया।
इमाम अ० के ज़माने मे बनी अब्बास के 6 ख़लीफा आपके हमसर थे। लेकिन मुतावक्किल और मुताज़्ज़िर ने आपको दूसरे ख़लीफा को आपके मुक़ाबले ज़्यादा अज़ीयत पहुँचायी। मुतावक्किल सबसे बड़ा ज़ालिम और बदभक्त बादशाह था। इसकी  हुक़ूमत 14 साल कुछ दिन थी। 232 हिजरी से 247 हिजरी तक का ज़माना इमाम अ० और उनके चाहने वालो के लिए बहुत सख़्त था। मुतावक्किल इमाम अली अ० और उनके खानदान से बुग़ज़ रखता था।
वो इस बात की कोशिश मे था के इस खानदान को बेदारी से ख़त्म कर दिया जाये। इसलिए उसने अलवियो के एक गिरोह को क़त्ल किया और दूसरे गिरोह को निस्तो नाबूत कर दिया। और 236 हिजरी को उसने हुक़्म दिया सय्यदुश शोहदा इमामे हुसैन अ० की क़ब्र को वीरान कर दिया जाये। और वहा खेती की जाये ताकि कोई उनकी ज़ियारत ना कर सके। लेकिन शिया इमाम हुसैन अ० की ज़ियारत से बाज़ नही आये। और इस काम ने शियो  को और ज़्यादा मज़बूत कर दिया और उन्होंने बग़दाद की मस्जिद और शहरो की दीवारो पर नारो की शक़्ल मे लिख कर अपने गुस्से को ज़ाहिर किया।
आइम्मा अहलेबैत अ० की मोहब्बत के जुर्म मे मुतावक्किल लौगो पर सख़्ती करता और उनको सज़ा देता था।
इब्ने सुकैत एक शिया अदीब और  शायर थे। और मुतवक्किल के बेटो के मोअल्लिम थे एक मुतावक्किल ने अपने दोनो बेटो की तरफ इशारा करते हुए पूँछा के तेरे नज़दीक मेरे दोनो बेटे महबूब है या इमाम हसने मुजतबा अ० और इमामे हुसैन अ० ?
इब्ने सुकैत ने बेझिजक जवाब दिया अमीरुल मोमेनीन के बेटे।
मुतावक्किल को हरगिज़ ऐसे जवाब की उम्मीद ना थी। वो बहुत ज़्यादा गुस्से मे आ गया और उसने उनकी ज़बान काटने का हुक़्म दिया और इस दर्दनाक तारीक़ मे इब्ने सुकैत शहीद हो गए। 232 हिजरी मे जब मुतावक्किल ने चाहा इमाम अ० को मदीने से सामरा बुलाकर उनके चाहने वालो को उनसे दूर करदे। यानी आपको क़त्ल करदे तो हरमैन के इमामे जमात और वालिये मदीना ने मुतावक्किल को और ज़्यादा उकसाया इस वजह से 234 हिजरी मे इमाम अ० के लिए याहिया के ज़रिये एक ख़त भेजा गया और हुक़्म दिया के इमाम अ० को लाया जाये।
इमाम अ० उसकी बुरी नियत से वाक़ीफ़ थे लेकिन फिर इमाम अ० उसके भेजे हुए आदमियो के साथ इमामे हसन अस्करी अ० के साथ सामरा की तरफ चल पड़े। मुतावक्किल ने आपकी शख़्सियत को नुकसान पहुचाने के लिए एक नामुनासिब जगह एक ऐसे घर मे रखा। आख़िरी उम्र तक आप इस घर मे रहे। सामरा मे 20 साल तक इमाम अ० ने बहुत दुख सहे और पैसे और हथियार के बहाने आपके घर की तलाशी भी होती रही।
मताज़िर मुतावक्किल का बेटा जो उससे कम ना था। अलवियो के साथ उसका सलूक बहुत बुरा था।  इसकी हुक़ूमत के ज़माने मे बहुत से अलवियो को ज़हर दिया गया। इमाम अ० भी इसकी हुक़ूमत के ज़माने मे शहीद हुए।
अपने वालिद बुज़ुर्गवार की शहादत के बाद अपनी इमामत के ज़माने मे तक़रीबन 13 साल आपने बहुत ही घुटन के माहोल मे मदीने मे ज़िन्दगी बसर की।
आपने आवामी मरकज़ तशकील दीन मे तमाम कोशिश सर्फ़ की। ये कोशिश इतनी असरअन्दाज़ और दरबारे ख़िलाफत के लिए ऐसी ख़तरनाक थी। के हरमैन के इमामे जमात ने मुतावक्किल को लिखा अगर तुमको मक्का और मदीना की जरूरत है तो इमाम अ० को यहाँ से निकाल दो और लौगो को अपनी तरफ करलो। बनी अब्बास के तरफदारो और वालिये मदीना ने भी मुतावक्किल को यही लिखा। इसी वजह से मुतावक्किल ने इमाम अ० को सामरा मे अपनी निगरानी मे रखा
याहिया बताते है के जब मदीने वालो को मालूम हुआ के इमाम अ० को मदीने से ले जाया जा रहा गई तो फरियादो बुक़ा और गिरियाओ ज़ारी शुरू हो गया। मैने आज तक ऐसी गिरियाओ ज़ारी नही देखी थी। जब मैने क़सम खाकर कहा के इमाम अ० के साथ कोई बुरा सलूक नही करूँगा तब लौग चुप हुए।
मुतावक्किल ने एक बज़्म मुनाक़ीद की और उसने हुक़्म दिया के इमाम अ० को भी बुलाया जाये। जब इमाम अ० वह आये। मुतावक्किल शराब पीने मे मशगूल था। इसने इमाम अ० को अपने पहलु मे बैठाया और इमाम अ० से भी शराब पीने को कहा। इमाम अ० ने फ़रमाया मेरा गोश्त और मेरा ख़ून हरगिज़ शराब से आलूदा नही हुआ है । फिर इसने आपसे कुछ अशआर पढ़ने की ख़्वाहिश की इमाम अ० ने फरमाया मै बहुत काम शेर पढ़ता हूँ। मुतावक्किल ने कहा इसके अलावा कोई चारा नही है। इमाम अ० ने अशआर पढे और शराब समेटने का हुक़्म दिया और इमाम अ० को 4 हज़ार दीनार देकर एहतराम से वापस भेज दिया।।तमाम परेशानियो के बावजूद इमाम अ० बनी अब्बास के ज़लिमो से मामूली समझोते पर भी राज़ी नही थे। आपका ख़लीफा के साथ मनाफ़ि रवैय्या इन लौगो के ख़िलाफ का सबब  था। इसी वजह से आप पर ज़ुल्मो सितम और यहाँ तक कि क़ैद मे डाल देने के बद भी ये लौग ख़ौफ़ से महफूज़ ना थे। इनके पास कोई रास्ता भी ना था के वो नारे ख़ुदा को खामोश करदे।
तीसरी रजब 254 हिजरी मे 42 साल की उम्र मताज़ीर की ख़िलाफत के ज़माने मे आपको ज़हर दिया गया और सामरा मे आप अपने ही घर मे सुपुर्दे लहद हुए।
इमाम अ० की यादगार मे से बाक़ी रह जाने वाली एक चीज़ ज़ियारते जामिया है। मूसा इब्ने अब्दुल्लाह नामी एक शिया की दरख्वास्त पर आपने उनको ये ज़ियारत तालीम की थी।

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