इमाम रज़ा अ० की उम्र 45 साल से ज़्यादा हो चुकी थी। लेकिन अभी तक आप के कोई औलाद नही थी।
आख़िरकार इंतज़ार की घड़िया ख़तम हुई और दसवी माहे रजब 195 हिजरी को आसमानी विलायत का सितारा तुलू हुआ। आपका नाम मोहम्मद और कुनियत अबु जाफर और सबसे मशहूर लक़ब जव्वाद और तक़ी है। आपकी वालीदे ग्रामी का नाम सबीका था इमामे रज़ा अ० उनका नाम खिज़रान रखा।
आप रसूले ख़ुदा की ज़ोजा जनाबे मारिया के खानदान से थी।
इन ख़ातून की अज़मत और बुज़ुर्गी के लिए इतना ही काफी है के इमामे मूसा इब्ने जाफर अ० ने आपके बाज़ खुसूसियत को बयान फ़रमाया और अपने एक सहाबी इब्ने सलीत से कहा के अगर इनसे मुलाक़ात मुमकिन हो तो उन तक मेरा सलाम पहुँचाना।
अबु याहिया नक़्ल करते है के इमामे रिज़ा अ० की ख़िदमत मे हाज़िर था के लौग इमामे जव्वाद अ० को जो उस वक़्त कमसिन थे ले आये हज़रत अ० ने फ़रमाया ये बच्चा वो मुबारक बच्चा है के हमारे शिया के लिए इससे ज़्यादा मुबारक बच्चा पैदा नही हुआ।
खैरानी अपने वालिद से नक़्ल करते है उन्होंने कहा के मै ख़ुरासान मे इमाम रज़ा अ० के पास था। किसी ने आपसे दरयाफ़्त किया, अगर आपके साथ कोई हादसा पेश आ जाये तो किस से रुजू किया जाये। आपने फ़रमाया, "मैरे बेटे अबु जाफर गोया।
सवाल करने वाले ने इमाम जव्वाद अ० की उम्र को काफी नही समझा इसीलिए इमाम अ० ने इज़ाफ़ा फ़रमाया ख़ुदावन्दे आलम ने हज़रत इसा अ० को नबूवत और रिसालत के लिए चुना हलाकि उनकी उम्र अबु जाफर से भी काम थी।
इमाम जव्वाद अ० ने अपनी उम्र के तक़रीबन 6 साल अपने वालिद बुज़ुर्गवार के साथ गुज़ारे जिस साल इमामे रिज़ा अ० को ख़ुरासान भेजा गया तो आप अपने वालिद के साथ मक्का तशरीफ़ ले गए। हालाते तवाफ़ मे आपने बहुत ही ग़ौर से अपने पिदरे बुज़ुर्गवार के आमाल और एक-एक बात का जायज़ा लिया और ये महसूस किया आप ख़ानाये ख़ुदा विदा कर रहे है और फिर दूसरी बार लौट कर नही आयंगे। इस वजह से आप के चेहरे पर ग़म के आसार थे हुजरे इस्माइल के अन्दर बैठे थे इमाम रिज़ा अ० के ख़ादिम ने आपको वहाँ से उठाना चाहा तो आपने फ़रमाया मै यही रहूंगा यहाँ से नही हिलूंगा। जब तक ख़ुदा का हुक़्म ना होगा। ख़ादिम ने ये माजरा इमाम रज़ा अ० से बयान किया। इमाम अ० अपने बेटे के पास पहुँचे और आपने फ़रमाया मेरे लाल उठो तो हम चले आपने अर्ज़ किया बबजान हम कैसे चले। जबकि हम देख रहे है कि आप ख़ानाये ख़ुदा को इस तरह से विदा कर रहे है जैसे फिर कभी वापस ना आयंगे।
एक मासूम बच्चे की 6 साल की उम्र मे इस कमाल का इज़हार हो रहा है। नबूवत की तरह इमामत भी एक तोहफ़ा है। जो ख़ुदावन्दे आलम सिर्फ अपने चुने हुए बन्दो को ही अता करता है और इसका सिन और साल का कोई दखल नही है। हमारे इमाम को 8 या 9 साल की उम्र मे इमामत मिली।
मुल्ला इब्ने मोहम्मद नक़्ल करते है कि इमाम रज़ा अ० की रहलत के बाद मे इमाम जव्वाद अ० से मिला और इनकी क़द्रो क़ीमत को देखा ताकि शियो के सामने इनकी तारीफो-तौसीफ़ कर सकूँ। इस आसना मे आप बैठ गए और फ़रमाया ऐ मुल्ला ख़ुदा ने इमामत मे भी नबूवत की तरह एहतेजाज किया है और फ़रमाया हमने याहिया को बचपन मे नबूवत दी।
इमामे मोहम्मद तक़ी अ० के अख़लाक़ो-फ़ज़ायल को बयान करने से पहले अहले सुन्नत के ओलेमा का इनके बारे मे क्या नज़रिया है ये जानते है।
सिब्ते इब्ने जोज़ी फरमाते है:- मोहम्मद जव्वाद अ० इल्म, तक़वा, परहेज़गार और सख़ावत मे अपने वालिदे बुज़ुर्गवार के रास्ते पर थे।
इब्ने तमीमा का बयान है:- कि मोहम्मद इब्ने अली जिनका लक़ब जव्वाद था बनी हाशिम के बुज़ुर्गो और मुमताज शख़्सियतो मे से थे। वो सख़ावत और बुज़ुर्गी मे मुकम्मल शौहरत रखते थे। इसी वजह से जव्वाद नाम पड़ा।
इमाम जव्वाद अ० बक्शीश अता और करामात का मुकम्मल मिसदाक़ थे।
अली इब्ने इब्राहिम अपने वालिद से नक़्ल करते है कि मै इमामे जव्वाद अ० की ख़िदमत मे था। के सुआलेह इब्ने मोहम्मद क़ूम के मुतावल्ली वहाँ आये और अर्ज़ किया "मैरे आक़ा मेरी आमदनी मे से दस हज़ार हलाल कर दीजिए। इसलिए के हमने इसको अपने खानदान के लिए खर्च कर दिया है। इमाम अ० ने फ़रमाया मैने हलाल किया।।मोहम्मद इब्ने सहल नक़्ल करते है। के मै मदीने गया और इमामे जव्वाद अ० के पास पहुँचा और मैने चाहा के उनसे एक लिबास मांग लू। लेकिन मै मांग ना सका। मैने अपने दिल मे कहा के अपनी खुवाहिश लिख कर दूँ। फिर मैनेे लिख दिया लेकिन मेरे दिल मे ये बात आयी के ख़त को ना भेजु। मैने ख़त फाड़ दिया और मक्के की तरफ चल पड़ा। तभी मैने एक शख़्स को देखा के इसके हाथ मे एक रुमाल है और वो क़ाफिले मे मुझको ढूंढ रहा है। वो मुझ तक पहुँचा और उसने कहा मैरे आक़ा ने तेरे लिए ये लिबास भेजा है।
इमाम अ० के सात साला ज़माने मे आपके मामून और मतासिम नामी दो ख़लीफा थे। उनकी हुक़ूमत के ज़माने मे आपका मक़सद इमाम रज़ा अ० के मक़सद को बाक़ी रखना था। और इमाम रज़ा अ० के इस मक़सद से दुश्मन भी वाक़ीफ़ हो चुके थे। इसीलिए वो इमाम अ० की हैसियत को लौगो की नज़रो मे कमज़ोर करने के लिए मुख़्तलिफ़ बहाने ढूंढते थे। एक मर्तबा मामून ने इमाम अ० को नमाज़े ईद से भी रोकना चाहा। क्योंकि वो इस बात से डरता था के कही इमाम अ० एक नमाज़ पढ़ा कर ख़िलाफत के लिए ज़मीन हमवार ना करले। मामून ने बहुत कोशिश की के इमाम रज़ा अ० को ज़हर दिया जाए। बहुत ही ख़ुफ़िया तौर पर लेकिन कामयाब ना हो सका और आख़िरकार इन्तेक़ाम पर उतर आया।
इसने बहुत चालाकी से काम लिया और इमाम रज़ा अ० से दोस्ती की, इज़हार किया ज़्यादा फायदा हासिल करने के लिए। इसने ये इरादा किया के अपनी बेटी उम्मुलफ़ज़ल की शादी इमाम अ० से करादे। और इसने कोशिश की इमाम अ० ख़िलाफत दे कर जो फायदा हो वो इसी को हो। बनी अब्बास को मामून के इस इरादे से खौफ महसूस हुआ। और मामून के पास आये और कहने लगे। हम आपको ख़ुदा की क़सम देते है हमे और ग़मगीन ना करे और बेटी की शादी बनी अब्बास मे से किसी शख़्स से करादे जो इस लायक़ हो। मामून ने कहा मै इस शख़्स को तुम से ज़्यादा जनता हूँ। ये ऐसे ख़ानदान से है जिसके पास ख़ुदा का दिया हुआ इल्म है इस दोस्ती के मुज़ाहरे और शादी से मामून का मक़सद सिर्फ फ़ायदा हासिल करना था। और इसके अलावा कुछ नही जो मक़सद मामून हासिल करना चाहता था उसके कुछ ज़िक्र इस तरह है।
आप रसूले ख़ुदा की ज़ोजा जनाबे मारिया के खानदान से थी।
इन ख़ातून की अज़मत और बुज़ुर्गी के लिए इतना ही काफी है के इमामे मूसा इब्ने जाफर अ० ने आपके बाज़ खुसूसियत को बयान फ़रमाया और अपने एक सहाबी इब्ने सलीत से कहा के अगर इनसे मुलाक़ात मुमकिन हो तो उन तक मेरा सलाम पहुँचाना।
अबु याहिया नक़्ल करते है के इमामे रिज़ा अ० की ख़िदमत मे हाज़िर था के लौग इमामे जव्वाद अ० को जो उस वक़्त कमसिन थे ले आये हज़रत अ० ने फ़रमाया ये बच्चा वो मुबारक बच्चा है के हमारे शिया के लिए इससे ज़्यादा मुबारक बच्चा पैदा नही हुआ।
खैरानी अपने वालिद से नक़्ल करते है उन्होंने कहा के मै ख़ुरासान मे इमाम रज़ा अ० के पास था। किसी ने आपसे दरयाफ़्त किया, अगर आपके साथ कोई हादसा पेश आ जाये तो किस से रुजू किया जाये। आपने फ़रमाया, "मैरे बेटे अबु जाफर गोया।
सवाल करने वाले ने इमाम जव्वाद अ० की उम्र को काफी नही समझा इसीलिए इमाम अ० ने इज़ाफ़ा फ़रमाया ख़ुदावन्दे आलम ने हज़रत इसा अ० को नबूवत और रिसालत के लिए चुना हलाकि उनकी उम्र अबु जाफर से भी काम थी।
इमाम जव्वाद अ० ने अपनी उम्र के तक़रीबन 6 साल अपने वालिद बुज़ुर्गवार के साथ गुज़ारे जिस साल इमामे रिज़ा अ० को ख़ुरासान भेजा गया तो आप अपने वालिद के साथ मक्का तशरीफ़ ले गए। हालाते तवाफ़ मे आपने बहुत ही ग़ौर से अपने पिदरे बुज़ुर्गवार के आमाल और एक-एक बात का जायज़ा लिया और ये महसूस किया आप ख़ानाये ख़ुदा विदा कर रहे है और फिर दूसरी बार लौट कर नही आयंगे। इस वजह से आप के चेहरे पर ग़म के आसार थे हुजरे इस्माइल के अन्दर बैठे थे इमाम रिज़ा अ० के ख़ादिम ने आपको वहाँ से उठाना चाहा तो आपने फ़रमाया मै यही रहूंगा यहाँ से नही हिलूंगा। जब तक ख़ुदा का हुक़्म ना होगा। ख़ादिम ने ये माजरा इमाम रज़ा अ० से बयान किया। इमाम अ० अपने बेटे के पास पहुँचे और आपने फ़रमाया मेरे लाल उठो तो हम चले आपने अर्ज़ किया बबजान हम कैसे चले। जबकि हम देख रहे है कि आप ख़ानाये ख़ुदा को इस तरह से विदा कर रहे है जैसे फिर कभी वापस ना आयंगे।
एक मासूम बच्चे की 6 साल की उम्र मे इस कमाल का इज़हार हो रहा है। नबूवत की तरह इमामत भी एक तोहफ़ा है। जो ख़ुदावन्दे आलम सिर्फ अपने चुने हुए बन्दो को ही अता करता है और इसका सिन और साल का कोई दखल नही है। हमारे इमाम को 8 या 9 साल की उम्र मे इमामत मिली।
मुल्ला इब्ने मोहम्मद नक़्ल करते है कि इमाम रज़ा अ० की रहलत के बाद मे इमाम जव्वाद अ० से मिला और इनकी क़द्रो क़ीमत को देखा ताकि शियो के सामने इनकी तारीफो-तौसीफ़ कर सकूँ। इस आसना मे आप बैठ गए और फ़रमाया ऐ मुल्ला ख़ुदा ने इमामत मे भी नबूवत की तरह एहतेजाज किया है और फ़रमाया हमने याहिया को बचपन मे नबूवत दी।
इमामे मोहम्मद तक़ी अ० के अख़लाक़ो-फ़ज़ायल को बयान करने से पहले अहले सुन्नत के ओलेमा का इनके बारे मे क्या नज़रिया है ये जानते है।
सिब्ते इब्ने जोज़ी फरमाते है:- मोहम्मद जव्वाद अ० इल्म, तक़वा, परहेज़गार और सख़ावत मे अपने वालिदे बुज़ुर्गवार के रास्ते पर थे।
इब्ने तमीमा का बयान है:- कि मोहम्मद इब्ने अली जिनका लक़ब जव्वाद था बनी हाशिम के बुज़ुर्गो और मुमताज शख़्सियतो मे से थे। वो सख़ावत और बुज़ुर्गी मे मुकम्मल शौहरत रखते थे। इसी वजह से जव्वाद नाम पड़ा।
इमाम जव्वाद अ० बक्शीश अता और करामात का मुकम्मल मिसदाक़ थे।
अली इब्ने इब्राहिम अपने वालिद से नक़्ल करते है कि मै इमामे जव्वाद अ० की ख़िदमत मे था। के सुआलेह इब्ने मोहम्मद क़ूम के मुतावल्ली वहाँ आये और अर्ज़ किया "मैरे आक़ा मेरी आमदनी मे से दस हज़ार हलाल कर दीजिए। इसलिए के हमने इसको अपने खानदान के लिए खर्च कर दिया है। इमाम अ० ने फ़रमाया मैने हलाल किया।।मोहम्मद इब्ने सहल नक़्ल करते है। के मै मदीने गया और इमामे जव्वाद अ० के पास पहुँचा और मैने चाहा के उनसे एक लिबास मांग लू। लेकिन मै मांग ना सका। मैने अपने दिल मे कहा के अपनी खुवाहिश लिख कर दूँ। फिर मैनेे लिख दिया लेकिन मेरे दिल मे ये बात आयी के ख़त को ना भेजु। मैने ख़त फाड़ दिया और मक्के की तरफ चल पड़ा। तभी मैने एक शख़्स को देखा के इसके हाथ मे एक रुमाल है और वो क़ाफिले मे मुझको ढूंढ रहा है। वो मुझ तक पहुँचा और उसने कहा मैरे आक़ा ने तेरे लिए ये लिबास भेजा है।
इमाम अ० के सात साला ज़माने मे आपके मामून और मतासिम नामी दो ख़लीफा थे। उनकी हुक़ूमत के ज़माने मे आपका मक़सद इमाम रज़ा अ० के मक़सद को बाक़ी रखना था। और इमाम रज़ा अ० के इस मक़सद से दुश्मन भी वाक़ीफ़ हो चुके थे। इसीलिए वो इमाम अ० की हैसियत को लौगो की नज़रो मे कमज़ोर करने के लिए मुख़्तलिफ़ बहाने ढूंढते थे। एक मर्तबा मामून ने इमाम अ० को नमाज़े ईद से भी रोकना चाहा। क्योंकि वो इस बात से डरता था के कही इमाम अ० एक नमाज़ पढ़ा कर ख़िलाफत के लिए ज़मीन हमवार ना करले। मामून ने बहुत कोशिश की के इमाम रज़ा अ० को ज़हर दिया जाए। बहुत ही ख़ुफ़िया तौर पर लेकिन कामयाब ना हो सका और आख़िरकार इन्तेक़ाम पर उतर आया।
इसने बहुत चालाकी से काम लिया और इमाम रज़ा अ० से दोस्ती की, इज़हार किया ज़्यादा फायदा हासिल करने के लिए। इसने ये इरादा किया के अपनी बेटी उम्मुलफ़ज़ल की शादी इमाम अ० से करादे। और इसने कोशिश की इमाम अ० ख़िलाफत दे कर जो फायदा हो वो इसी को हो। बनी अब्बास को मामून के इस इरादे से खौफ महसूस हुआ। और मामून के पास आये और कहने लगे। हम आपको ख़ुदा की क़सम देते है हमे और ग़मगीन ना करे और बेटी की शादी बनी अब्बास मे से किसी शख़्स से करादे जो इस लायक़ हो। मामून ने कहा मै इस शख़्स को तुम से ज़्यादा जनता हूँ। ये ऐसे ख़ानदान से है जिसके पास ख़ुदा का दिया हुआ इल्म है इस दोस्ती के मुज़ाहरे और शादी से मामून का मक़सद सिर्फ फ़ायदा हासिल करना था। और इसके अलावा कुछ नही जो मक़सद मामून हासिल करना चाहता था उसके कुछ ज़िक्र इस तरह है।
1- इसका इरादा ये था कि इस रिश्ते से वो इमाम रज़ा अ० के क़त्ल के दाग को अपने दामन से हटा ले। और अलवियो ने इसके ख़िलाफ़ जो क़याम किया है उसको रोकदे और अहलेबैत के दोस्तो मे अपनी पहचान बनाले।
2- अपनी बेटी इमाम अ० के घर भेज कर उनकी निगरानी करवाये।
3- मामून का खामो-ख़याल था इमाम अ० को ऐशो इशरत वाली ज़िन्दगी गुज़ारे पर मजबूर करके उनको लौगो की नज़रो मे हक़ीर बनादे।
मोहम्मद इब्ने रियाज़ नक़्ल करते है के मामून ने बहुत कोशिश की मगर क़ामयाब ना हो सका। उसने अपनी बेटी की शादी के जशन मे 100 कनीज़े जिनके हाथ मे जवाहरात से भरे हुए जाम थे। उनसे कहा जब इमाम अ० आये तो उनके इस्तक़बाल के लिए आगे बढ़ना जब इमाम अ० आये तो वो इस्तक़बाल के लिए बढ़ी लेकिन इमाम अ० ने बग़ैर किसी तवज्जो के बढ़ते गए और ये बता दिया के हम इन कामो से बेज़ार है।
इमाम जव्वाद अ० के इल्मी कामो मे से एक काम ऐसा मुमताज अफराद की तरबियत थी। के जिनकी शख़्सियत इस्लाम मे एक मिसाल बन कर बाक़ी है। मरहूम इमामे जव्वाद अ० के शागिर्दों, रावियो और असहाब की तादाद तक़रीबन 110 अफ़राद बताई जाती है। जिससे ये साफ पता चलता है कि इमाम अ० का उस ज़माने मे लौगो से मिलना कितना मुश्किल था।
मामून की मौत के बाद 215 हिजरी मे इसका भाई इसकी जगह पर बैठ गया। इसने बिलकुल मामून की सियासत इख्तेयार की और जब मदीने मे इमाम अ० के कामो को देखता तो ख़ौफ़ज़दा हुआ और ज़बरदस्ती इसने 220 हिजरी मे इमाम अ० को मदीने से बग़दाद ले आया ताकी इमाम अ० की निगरानी कर सके।
इसकी हुक़ूमत मे एक शख़्स ने चोरी का इक़रार किया मतासिम ने तमाम फ़िक़ीयो को जलसे मे बुलाया और इमाम अ० को भी पहले इसने सवाल किया के चोर का हाथ कहा स काटना चाहिए। इब्ने अबी दाऊद ने कहा के कलाई से, एक गिरोह ने कहा हा कलाई से लेकिन दूसरे गिरोह ने मना किया और कहा कोहनियो से मुतासिम ने इमाम अ० की तरफ रुख़ किया इर् पूछा इस मसले मे आपका क्या नज़रिया है। इनाम अ० ने फ़रमाया ये लोग अपना नज़रिया पेश कर चुके और फ़रमाया अब मुझे माफ़ कर, लेकिन मुतसिम ने इसरार किया और इमाम अ० को क़सम दे कर कहा आप अपना नज़रिया बयान करे। इमाम अ० ने कहा तुमने क़सम दी है इसीलिए मै अपना नज़रिया बयान करता हूँ। दोनो गिरोह ने ग़लत फ़ैसला किया है क्योंकि चोर की सिर्फ उंगलिया काटी जायेगी।
इसलिए रसूले ख़ुदा ने फरमाया के सजदा सात अज़ा से हटा है चेहरा,पेशानी, दोनो हाथो की हथेली, दोनो घुटने और दोनो पैरो के अंगुठे।
फिर इमाम अ० ने फ़रमाया:-
अगर चोर का हाथ कोहनियो से काटा जायेगा तो इसके हाथ नही बचेगा के वो सजदा करे।
मतासिम को इमाम अ० का नज़रिया बहुत पसंद आया और इसने हुक़्म दिया के चोर की ऊँगली काट दी जाये। इब्ने अबी दाऊद जो इस वाक़ीये से खुश नही था। उसने इस पल्से मे मौत की तम्मान्ना की 3 दिन बाद मतासिम के पास गया और कहा उस जलसे मे जो तुमने फैसला किया वो तुम्हारी हुकुमत की भलाई के लिये नही था। क्योंकि तुमने उस दिन इमाम जव्वाद अ० की बात को तरजीह दी। आधे मुस्लमान तो पहले से ही उनको अपना ख़लीफा मानते थे और कुछ लोगो ने उस दिन तुमसे ज़्यादा उनको मुनासिब समझा ख़िलाफत के लिए।
2- अपनी बेटी इमाम अ० के घर भेज कर उनकी निगरानी करवाये।
3- मामून का खामो-ख़याल था इमाम अ० को ऐशो इशरत वाली ज़िन्दगी गुज़ारे पर मजबूर करके उनको लौगो की नज़रो मे हक़ीर बनादे।
मोहम्मद इब्ने रियाज़ नक़्ल करते है के मामून ने बहुत कोशिश की मगर क़ामयाब ना हो सका। उसने अपनी बेटी की शादी के जशन मे 100 कनीज़े जिनके हाथ मे जवाहरात से भरे हुए जाम थे। उनसे कहा जब इमाम अ० आये तो उनके इस्तक़बाल के लिए आगे बढ़ना जब इमाम अ० आये तो वो इस्तक़बाल के लिए बढ़ी लेकिन इमाम अ० ने बग़ैर किसी तवज्जो के बढ़ते गए और ये बता दिया के हम इन कामो से बेज़ार है।
इमाम जव्वाद अ० के इल्मी कामो मे से एक काम ऐसा मुमताज अफराद की तरबियत थी। के जिनकी शख़्सियत इस्लाम मे एक मिसाल बन कर बाक़ी है। मरहूम इमामे जव्वाद अ० के शागिर्दों, रावियो और असहाब की तादाद तक़रीबन 110 अफ़राद बताई जाती है। जिससे ये साफ पता चलता है कि इमाम अ० का उस ज़माने मे लौगो से मिलना कितना मुश्किल था।
मामून की मौत के बाद 215 हिजरी मे इसका भाई इसकी जगह पर बैठ गया। इसने बिलकुल मामून की सियासत इख्तेयार की और जब मदीने मे इमाम अ० के कामो को देखता तो ख़ौफ़ज़दा हुआ और ज़बरदस्ती इसने 220 हिजरी मे इमाम अ० को मदीने से बग़दाद ले आया ताकी इमाम अ० की निगरानी कर सके।
इसकी हुक़ूमत मे एक शख़्स ने चोरी का इक़रार किया मतासिम ने तमाम फ़िक़ीयो को जलसे मे बुलाया और इमाम अ० को भी पहले इसने सवाल किया के चोर का हाथ कहा स काटना चाहिए। इब्ने अबी दाऊद ने कहा के कलाई से, एक गिरोह ने कहा हा कलाई से लेकिन दूसरे गिरोह ने मना किया और कहा कोहनियो से मुतासिम ने इमाम अ० की तरफ रुख़ किया इर् पूछा इस मसले मे आपका क्या नज़रिया है। इनाम अ० ने फ़रमाया ये लोग अपना नज़रिया पेश कर चुके और फ़रमाया अब मुझे माफ़ कर, लेकिन मुतसिम ने इसरार किया और इमाम अ० को क़सम दे कर कहा आप अपना नज़रिया बयान करे। इमाम अ० ने कहा तुमने क़सम दी है इसीलिए मै अपना नज़रिया बयान करता हूँ। दोनो गिरोह ने ग़लत फ़ैसला किया है क्योंकि चोर की सिर्फ उंगलिया काटी जायेगी।
इसलिए रसूले ख़ुदा ने फरमाया के सजदा सात अज़ा से हटा है चेहरा,पेशानी, दोनो हाथो की हथेली, दोनो घुटने और दोनो पैरो के अंगुठे।
फिर इमाम अ० ने फ़रमाया:-
अगर चोर का हाथ कोहनियो से काटा जायेगा तो इसके हाथ नही बचेगा के वो सजदा करे।
मतासिम को इमाम अ० का नज़रिया बहुत पसंद आया और इसने हुक़्म दिया के चोर की ऊँगली काट दी जाये। इब्ने अबी दाऊद जो इस वाक़ीये से खुश नही था। उसने इस पल्से मे मौत की तम्मान्ना की 3 दिन बाद मतासिम के पास गया और कहा उस जलसे मे जो तुमने फैसला किया वो तुम्हारी हुकुमत की भलाई के लिये नही था। क्योंकि तुमने उस दिन इमाम जव्वाद अ० की बात को तरजीह दी। आधे मुस्लमान तो पहले से ही उनको अपना ख़लीफा मानते थे और कुछ लोगो ने उस दिन तुमसे ज़्यादा उनको मुनासिब समझा ख़िलाफत के लिए।
मतासिम पहले से ही उनके लिए दिल मे दुश्मनी रखता है और उनको रास्ते से हटाने की तलाश मे था। इसकी बातो ने उसे और गुस्सा दिला दिया और वो इमाम अ० के क़त्ल के बारे मे सोचने लगा आख़िरकार 25 साल की उम्र मे आख़री ज़िकाद को बग़दाद बुलाया और ज़हर से शहीद कर दिया।
आपके जिस्मे अक़दस को आपके जद्दे ग्रामी हज़रत इमाम मूसा काज़िम अ० के पहलू मे सुपुर्दे लहद किया गया। आज भी इन दोनो इमामो के मज़ार काज़मेन के नाम से मशहूर है।
आपके जिस्मे अक़दस को आपके जद्दे ग्रामी हज़रत इमाम मूसा काज़िम अ० के पहलू मे सुपुर्दे लहद किया गया। आज भी इन दोनो इमामो के मज़ार काज़मेन के नाम से मशहूर है।
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