इमाम मोहम्मद बाक़िर अ० की सवानेह उमरी
विलादत और बचपन का ज़माना:-
हमारे पाँचवे पेशवा इमाम मोहम्मद बाक़िर अ० जुमे के दिन पहली रजब 57 हिजरी को शहरे मदीना में पैदा हुए। आप का नाम मोहम्मद,कुनियत अबू जाफर और मशहूर तरीन लक़ब बाक़िर था। रिवायत है के जनाबे रसूले खुदा ने इस लक़ब को इमाम बाक़िर अ० के लिए चुना था। इमाम मोहम्मद बाक़िर अ०,माँ और बाप, दोनो तरफ से फातमी और सलवी थे इस लिए के वालिद इमाम ज़ैनुल आबेदीन अ० इमाम हुसैन अ० के फर्जंद थे और इनकी वालिदा गरामी "उम्मे अब्दुल्ला" इमाम मुज्तबा अ० की बेटी थीं।आपने इमाम ज़ैनुल आबेदीन अ० जैसे बाप की पुरमोहर आग़ोश में परवरिश पाई और बा-फज़ीलत माँ जो आलिमा और मुकद्दस थीं। इमाम जाफर सादिक़ अ० से मनक़ूल है कि मेरी जद्दाह माजिदाह ऐसी सदीक़ा थीं के ओलादे इमाम हसने मुज्तबा अ० में कोई औरत इनकी फज़ीलत के पाए को ना पहुंच सकी।
इमाम मोहम्मद बाक़िर अ० की उम्र 4 साल से कम थी के कर्बला का ख़ून भरा वाकैया पेश आया आप अपने जद हज़रत आबा अब्दुल्लाहिल हुसैन के पास मौजूद थे वाकिया कर्बला के बाद 34 बरस आपने अपने पदरे बुज़ुर्गवार के साथ जिंदगी गुज़ारी। आप जवानी ही के ज़माने से इल्मो दानिश,फज़िलतो तक़वा मे मशहूर थे जहां कहीं भी हाशमीन,अलवीन और फातमीन की बुलंदी का ज़िक्र होता,आपको उन तमाम मुकद्दसात,शुजाअत और बुजुर्गों का लोग तन्हा वारिस जानते थे।
आपकी शराफत और बुज़ुुर्गों को मिनदर्जा ज़ेल हदीस में पढ़ा जा सकता है। पैगंबर अ० ने अपने एक नेक सहाबी जाबिर इब्ने अब्दुल्लाह अंसारी से फरमाया है:- "जाबिर तुम जिंदा रहोगे और मेरे फरजंद मोहम्मद इब्ने अली इब्निल हुसैन से के जिनका नाम तौरैत में "बाक़िर" है,मुलाक़ात करोगे। मुलाक़ात होने पर मेरा सलाम पहुंचा देना।"पैगंबर अ० रहलत फरमा गए। जाबिर ने एक तवील उम्र पाई,एक दिन इमाम ज़ैनुल आबेदीन अ० के घर तशरीफ लाए और इमाम मोहम्मद बाक़िर अ० के जो छोटे से थे देखा,इनसे जाबिर ने कहा:ज़रा आगे आइए,इमाम आगे आ गए। जाबिर ने कहा ज़रा मुड़ जाइए,इमाम मुड़ गए। जाबिर ने जिस्म और इनके चलने का अंदाज देखा उसके बाद कहा,काबे के ख़ुदा की क़सम यह पैगंबर अ० का हूबहू आईना हैं फिर इमाम ज़ैनुल आबेदीन से पूछा"यह बच्चा कौन है? आपने फरमाया मेरे बाद इमाम मेरा बेटा मोहम्मद बाक़िर है। जाबिर उठे और आप के क़दमों का बोसा लिया और कहा:-ए फरजंदे पैगंबर मैं आप पर निसार,आप अपने जद रसूले खुदा का सलामो दुरूद क़ुबूल फरमाइए उन्होंने आपको सलाम कहलवाया है।
इमाम मोहम्मद बाक़िर अ० की आंखें डबडबा गई और आपने फ़रमाया:- जब तक आसमान और ज़मीन बाक़ी है उस वक्त तक मेरा सलामो दुरूद हो मेरे जद पैग़ंबरे खुदा पर और तुम पर भी सलाम हो ए जाबिर तुमने उनका सलाम मुझ तक पहुंचाया।
इमाम अ० की अख़लाक और आदत।
हज़रत इमाम मोहम्मद बाक़िर अ० मुतावाज़ह,बख्शीश करने वाले,मेहरबान और साबिर थे और अख़लाको आदात के एतबार से -जैसा कि जाबिर ने कहा था- हूबहू इस्लाम के अज़ीमोशान पैगंबर अ० का आईना थे।
शाम का एक शख्स मदीने में ठहरा हुआ था और इमाम के पास बहुत आता रहता था और कहता था कि तुम से ज्यादा रूए ज़मीन पर और किसी के बारे मे मेरे दिल में बुग्ज़ो किन्हा नही है,तुम्हारे और तुम्हारे खानदान से ज्यादा मै किसी का दुश्मन नहीं हूं अगर तुम यह देखते हो कि मै तुम्हारे घर आता जाता रहता हूं तो यह इसलिए है कि तुम एक सुख़नवर और ख़ुश बयान अदीब हो!
इस के बा-वजूद इमाम अ० उसके साथ हुस्ने सुलूक से पेश आते थे और उससे बड़ी नरमी से बात करते थे। कुछ दिनों के बाद वह शख्स बीमार हुआ,उसने वसीयत की कि जब मैं मर जाऊं तो इमाम मोहम्मद अ० मेरी नमाज़े जनाज़ा पढ़ें।
जब लोगों ने उसे मुर्दा देखा तो इमाम के पास पहुंचकर अर्ज़ किया के वो शामी मर गया है और उसने वसीयत की है कि आप उस की नमज़े जनाज़ा पढ़ें।
इमाम अ० ने फरमाया:- मरा नही है़...... जल्दी ना करो यहां तक कि मैं पहुंच जाऊं। उसके बाद आप उठे और आपने दो रकत नमाज़ पढ़ी और हाथों को दुआ के लिए बुलंद किया और थोड़ी देर तक सर बा-सजदा रहे,फिर शामी के घर गए और बीमार के सिरहाने बैठ गए,उसको उठाकर बिठाया उसकी pusht को दीवार का सहारा दिया और शरबत मंगाकर उसके मुंह में डाला और उसके साथियों से फरमाया के इसको ठंडी ग़िज़ाएं दी जाएं और खुद वापस चले गए। अभी थोड़ी देर ना गुज़री थी के शामी को शिफ़ा मिल गई। वह इमाम के पास आया और अर्ज़ करने लगा कि: "मैं गवाही देता हूं कि आप, लोगों पर खुदा की हुज्जत हैं।..."
विलादत और बचपन का ज़माना:-
हमारे पाँचवे पेशवा इमाम मोहम्मद बाक़िर अ० जुमे के दिन पहली रजब 57 हिजरी को शहरे मदीना में पैदा हुए। आप का नाम मोहम्मद,कुनियत अबू जाफर और मशहूर तरीन लक़ब बाक़िर था। रिवायत है के जनाबे रसूले खुदा ने इस लक़ब को इमाम बाक़िर अ० के लिए चुना था। इमाम मोहम्मद बाक़िर अ०,माँ और बाप, दोनो तरफ से फातमी और सलवी थे इस लिए के वालिद इमाम ज़ैनुल आबेदीन अ० इमाम हुसैन अ० के फर्जंद थे और इनकी वालिदा गरामी "उम्मे अब्दुल्ला" इमाम मुज्तबा अ० की बेटी थीं।आपने इमाम ज़ैनुल आबेदीन अ० जैसे बाप की पुरमोहर आग़ोश में परवरिश पाई और बा-फज़ीलत माँ जो आलिमा और मुकद्दस थीं। इमाम जाफर सादिक़ अ० से मनक़ूल है कि मेरी जद्दाह माजिदाह ऐसी सदीक़ा थीं के ओलादे इमाम हसने मुज्तबा अ० में कोई औरत इनकी फज़ीलत के पाए को ना पहुंच सकी।
इमाम मोहम्मद बाक़िर अ० की उम्र 4 साल से कम थी के कर्बला का ख़ून भरा वाकैया पेश आया आप अपने जद हज़रत आबा अब्दुल्लाहिल हुसैन के पास मौजूद थे वाकिया कर्बला के बाद 34 बरस आपने अपने पदरे बुज़ुर्गवार के साथ जिंदगी गुज़ारी। आप जवानी ही के ज़माने से इल्मो दानिश,फज़िलतो तक़वा मे मशहूर थे जहां कहीं भी हाशमीन,अलवीन और फातमीन की बुलंदी का ज़िक्र होता,आपको उन तमाम मुकद्दसात,शुजाअत और बुजुर्गों का लोग तन्हा वारिस जानते थे।
आपकी शराफत और बुज़ुुर्गों को मिनदर्जा ज़ेल हदीस में पढ़ा जा सकता है। पैगंबर अ० ने अपने एक नेक सहाबी जाबिर इब्ने अब्दुल्लाह अंसारी से फरमाया है:- "जाबिर तुम जिंदा रहोगे और मेरे फरजंद मोहम्मद इब्ने अली इब्निल हुसैन से के जिनका नाम तौरैत में "बाक़िर" है,मुलाक़ात करोगे। मुलाक़ात होने पर मेरा सलाम पहुंचा देना।"पैगंबर अ० रहलत फरमा गए। जाबिर ने एक तवील उम्र पाई,एक दिन इमाम ज़ैनुल आबेदीन अ० के घर तशरीफ लाए और इमाम मोहम्मद बाक़िर अ० के जो छोटे से थे देखा,इनसे जाबिर ने कहा:ज़रा आगे आइए,इमाम आगे आ गए। जाबिर ने कहा ज़रा मुड़ जाइए,इमाम मुड़ गए। जाबिर ने जिस्म और इनके चलने का अंदाज देखा उसके बाद कहा,काबे के ख़ुदा की क़सम यह पैगंबर अ० का हूबहू आईना हैं फिर इमाम ज़ैनुल आबेदीन से पूछा"यह बच्चा कौन है? आपने फरमाया मेरे बाद इमाम मेरा बेटा मोहम्मद बाक़िर है। जाबिर उठे और आप के क़दमों का बोसा लिया और कहा:-ए फरजंदे पैगंबर मैं आप पर निसार,आप अपने जद रसूले खुदा का सलामो दुरूद क़ुबूल फरमाइए उन्होंने आपको सलाम कहलवाया है।
इमाम मोहम्मद बाक़िर अ० की आंखें डबडबा गई और आपने फ़रमाया:- जब तक आसमान और ज़मीन बाक़ी है उस वक्त तक मेरा सलामो दुरूद हो मेरे जद पैग़ंबरे खुदा पर और तुम पर भी सलाम हो ए जाबिर तुमने उनका सलाम मुझ तक पहुंचाया।
इमाम अ० की अख़लाक और आदत।
हज़रत इमाम मोहम्मद बाक़िर अ० मुतावाज़ह,बख्शीश करने वाले,मेहरबान और साबिर थे और अख़लाको आदात के एतबार से -जैसा कि जाबिर ने कहा था- हूबहू इस्लाम के अज़ीमोशान पैगंबर अ० का आईना थे।
शाम का एक शख्स मदीने में ठहरा हुआ था और इमाम के पास बहुत आता रहता था और कहता था कि तुम से ज्यादा रूए ज़मीन पर और किसी के बारे मे मेरे दिल में बुग्ज़ो किन्हा नही है,तुम्हारे और तुम्हारे खानदान से ज्यादा मै किसी का दुश्मन नहीं हूं अगर तुम यह देखते हो कि मै तुम्हारे घर आता जाता रहता हूं तो यह इसलिए है कि तुम एक सुख़नवर और ख़ुश बयान अदीब हो!
इस के बा-वजूद इमाम अ० उसके साथ हुस्ने सुलूक से पेश आते थे और उससे बड़ी नरमी से बात करते थे। कुछ दिनों के बाद वह शख्स बीमार हुआ,उसने वसीयत की कि जब मैं मर जाऊं तो इमाम मोहम्मद अ० मेरी नमाज़े जनाज़ा पढ़ें।
जब लोगों ने उसे मुर्दा देखा तो इमाम के पास पहुंचकर अर्ज़ किया के वो शामी मर गया है और उसने वसीयत की है कि आप उस की नमज़े जनाज़ा पढ़ें।
इमाम अ० ने फरमाया:- मरा नही है़...... जल्दी ना करो यहां तक कि मैं पहुंच जाऊं। उसके बाद आप उठे और आपने दो रकत नमाज़ पढ़ी और हाथों को दुआ के लिए बुलंद किया और थोड़ी देर तक सर बा-सजदा रहे,फिर शामी के घर गए और बीमार के सिरहाने बैठ गए,उसको उठाकर बिठाया उसकी pusht को दीवार का सहारा दिया और शरबत मंगाकर उसके मुंह में डाला और उसके साथियों से फरमाया के इसको ठंडी ग़िज़ाएं दी जाएं और खुद वापस चले गए। अभी थोड़ी देर ना गुज़री थी के शामी को शिफ़ा मिल गई। वह इमाम के पास आया और अर्ज़ करने लगा कि: "मैं गवाही देता हूं कि आप, लोगों पर खुदा की हुज्जत हैं।..."
इमाम अ० ने फरमाया:- मरा नही है़...... जल्दी ना करो यहां तक कि मैं पहुंच जाऊं। उसके बाद आप उठे और आपने दो रकत नमाज़ पढ़ी और हाथों को दुआ के लिए बुलंद किया और थोड़ी देर तक सर बा-सजदा रहे,फिर शामी के घर गए और बीमार के सिरहाने बैठ गए,उसको उठाकर बिठाया उसकी पुश्त को दीवार का सहारा दिया और शरबत मंगाकर उसके मुंह में डाला और उसके साथियों से फरमाया के इसको ठंडी ग़िज़ाएं दी जाएं और खुद वापस चले गए। अभी थोड़ी देर ना गुज़री थी के शामी को शिफ़ा मिल गई। वह इमाम के पास आया और अर्ज़ करने लगा कि: "मैं गवाही देता हूं कि आप, लोगों पर खुदा की हुज्जत हैं।..."
उस ज़माने के सूफियों में से एक शख्स-मोहम्मद बिन मुनकदिर-का बयान है कि एक दिन बहुत गर्मी में मैं मदीने से बाहर निकला वहां मैंने मोहम्मद बाक़िर अ० को देखा कि वह गुलामों पर तकिया किए हुए हैं। मैं उनके क़रीब गया और सलाम किया,उनके सर और दाढ़ी से पसीना बह रहा था। इमाम अ० ने उसी हालत में मेरा जवाब दिया। मैने अर्ज़ की-खुदा आप को सलामत रखे आप के जैसी शख्सियत वाला इंसान इस वक्त इस हालत में दुनिया हासिल करने में लगा हुआ है!अगर ऐसी हालत में मौत आ जाए तो आप क्या करेंगे?
आप ने फरमाया:-ख़ुदा की क़सम अगर मौत आ गई तो खुदा वंदे आलम की इताअत की हालत में मौत होगी। इसलिए कि मैं इस वसीले से अपने आप को तुमसे और दूसरों की मोहताजी से बचाता हूं। मैं इस हालत में मौत से डरता हूं कि मैं (खुदा न खास्ता) गुनाह के काम में लगा रहा हूं। मैंने कहा आप पर ख़ुदा की रहमत हो,मैंने चाहा था कि मैं आप को नसीहत करूं लेकिन आपने मुझ को नसीहत की और आगाह फरमाया।
इल्मे इमाम मोहम्मद बाक़िर अ०
आपका इल्म भी दूसरे तमाम आइम्मा अ० की तरह चश्मे वहीं से फैज़ान हासिल करता था, जाबिर बिन अब्दुल्लाह आपके पास आते और आपके इल्म से बराबर होते और बार-बार अर्ज़ करते थे कि ऐ उलूम को शगुफ्ता करने वाले! मैं गवाही देता हूं कि आप बचपन ही में इल्मे ख़ुदा से मालामाल हैं।
इल्मे इमाम मोहम्मद बाक़िर अ०
आपका इल्म भी दूसरे तमाम आइम्मा अ० की तरह चश्मे वहीं से फैज़ान हासिल करता था, जाबिर बिन अब्दुल्लाह आपके पास आते और आपके इल्म से फायदा उठाते और बार-बार अर्ज़ करते थे कि ऐ उलूम को शगुफ्ता करने वाले! मैं गवाही देता हूं कि आप बचपन ही में इल्मे ख़ुदा से मालामाल हैं।
इल्मे इमाम मोहम्मद बाक़िर अ०
आपका इल्म भी दूसरे तमाम आइम्मा अ० की तरह चश्मे वही से फैज़ान हासिल करता था, जाबिर बिन अब्दुल्लाह आपके पास आते और आपके इल्म से फायदा उठाते और बार-बार arz करते थे कि ऐ उलूम को शगुफ्ता करने वाले! मैं गवाही देता हूं कि आप बचपन ही में इल्मे ख़ुदा से मालामाल हैं।
शियों के उलमा में से एक बुज़ुर्गवार- अब्दुल्लाह इब्ने अताअ मक्की- फरमाते थे कि मैंने इमाम मोहम्मद बाक़िर अ० के सामने अहले इल्म को जिस तरह हक़ीर और छोटा पाया है वैसा किसी के सामने मैने नही देखा।
आपका इल्मी मक़ाम ऐसा था कि जाबिर बिन यज़ीद जाअफी इन से रिवायत करते वक्त कहते थे "वसी ओसिया और वारिसे उलूमे अंबिया मोहम्मद बिन अलीयिबनिल हुसैन अलैहिस्सलाम ने ऐसा कहा है।"
एक शख्स ने अब्दुल्ला बिन उमर से एक मसला पूछा वह जवाब ना दे सके और सवाल करने वाले को इमाम मोहम्मद बाक़िर अ० का पता बता दिया और कहा कि इस बच्चे से पूछने के बाद जो जवाब मिले वह मुझको भी बता देना। इस शख्स ने इमाम से पूछा और मुतमइन जवाब सुनने के बाद अब्दुल्ला बिन उमर को जाकर बता दिया।
अब्दुल्ला ने कहा-"यह वह खानदान है जिसका इलाज खुदा दाद है।"
उस ज़माने के सूफियों में से एक शख्स-मोहम्मद बिन मुनकदिर-का बयान है कि एक दिन बहुत गर्मी में मैं मदीने से बाहर निकला वहां मैंने मोहम्मद बाक़िर अ० को देखा कि वह गुलामों पर तकिया किए हुए हैं। मैं उनके क़रीब गया और सलाम किया,उनके सर और दाढ़ी से पसीना बह रहा था। इमाम अ० ने उसी हालत में मेरा जवाब दिया। मैने अर्ज़ की-खुदा आप को सलामत रखे आप के जैसी शख्सियत वाला इंसान इस वक्त इस हालत में दुनिया हासिल करने में लगा हुआ है!अगर ऐसी हालत में मौत आ जाए तो आप क्या करेंगे?
आप ने फरमाया:-ख़ुदा की क़सम अगर मौत आ गई तो खुदा वंदे आलम की इताअत की हालत में मौत होगी। इसलिए कि मैं इस वसीले से अपने आप को तुमसे और दूसरों की मोहताजी से बचाता हूं। मैं इस हालत में मौत से डरता हूं कि मैं (खुदा न खास्ता) गुनाह के काम में लगा रहा हूं। मैंने कहा आप पर ख़ुदा की रहमत हो,मैंने चाहा था कि मैं आप को नसीहत करूं लेकिन आपने मुझ को नसीहत की और आगाह फरमाया।
इल्मे इमाम मोहम्मद बाक़िर अ०
आपका इल्म भी दूसरे तमाम आइम्मा अ० की तरह चश्मे वहीं से फैज़ान हासिल करता था, जाबिर बिन अब्दुल्लाह आपके पास आते और आपके इल्म से बराबर होते और बार-बार अर्ज़ करते थे कि ऐ उलूम को शगुफ्ता करने वाले! मैं गवाही देता हूं कि आप बचपन ही में इल्मे ख़ुदा से मालामाल हैं।
इल्मे इमाम मोहम्मद बाक़िर अ०
आपका इल्म भी दूसरे तमाम आइम्मा अ० की तरह चश्मे वहीं से फैज़ान हासिल करता था, जाबिर बिन अब्दुल्लाह आपके पास आते और आपके इल्म से फायदा उठाते और बार-बार अर्ज़ करते थे कि ऐ उलूम को शगुफ्ता करने वाले! मैं गवाही देता हूं कि आप बचपन ही में इल्मे ख़ुदा से मालामाल हैं।
इल्मे इमाम मोहम्मद बाक़िर अ०
आपका इल्म भी दूसरे तमाम आइम्मा अ० की तरह चश्मे वही से फैज़ान हासिल करता था, जाबिर बिन अब्दुल्लाह आपके पास आते और आपके इल्म से फायदा उठाते और बार-बार arz करते थे कि ऐ उलूम को शगुफ्ता करने वाले! मैं गवाही देता हूं कि आप बचपन ही में इल्मे ख़ुदा से मालामाल हैं।
शियों के उलमा में से एक बुज़ुर्गवार- अब्दुल्लाह इब्ने अताअ मक्की- फरमाते थे कि मैंने इमाम मोहम्मद बाक़िर अ० के सामने अहले इल्म को जिस तरह हक़ीर और छोटा पाया है वैसा किसी के सामने मैने नही देखा।
आपका इल्मी मक़ाम ऐसा था कि जाबिर बिन यज़ीद जाअफी इन से रिवायत करते वक्त कहते थे "वसी ओसिया और वारिसे उलूमे अंबिया मोहम्मद बिन अलीयिबनिल हुसैन अलैहिस्सलाम ने ऐसा कहा है।"
एक शख्स ने अब्दुल्ला बिन उमर से एक मसला पूछा वह जवाब ना दे सके और सवाल करने वाले को इमाम मोहम्मद बाक़िर अ० का पता बता दिया और कहा कि इस बच्चे से पूछने के बाद जो जवाब मिले वह मुझको भी बता देना। इस शख्स ने इमाम से पूछा और मुतमइन जवाब सुनने के बाद अब्दुल्ला बिन उमर को जाकर बता दिया।
अब्दुल्ला ने कहा-"यह वह खानदान है जिसका इलाज खुदा दाद है।"
उन्होंने मदीने में इल्म का एक बड़ा दानिशकदाह बनाया था जिसमें सैकड़ों दर्स लेने वाले अफराद आप की ख़िदमत में पहुंचकर दर्स हासिल किया करते थे।
रसूले खुदा के असहाब में से जो लोग ज़िंदा थे जैसे जाबिर बिन अब्दुल्लाह अंसारी और ताबईन मे से कुछ बुज़ुुर्ग अफराद जैसे जाबिर जाअफी और फिक़ीहिन् से कुछ लोग जैसे इब्ने मुबारिक ज़हरी,औज़ाइ,अबू हनीफा,मालिक,शाफई और ज़्याद बिन मंज़र और मिसक़ीन मे से कुछ अफराद जैसे तबरी,बलाज़री,सलामी और ख़तीब ने अपनी तारीखों में आपसे रिवायतें लिखी हैं।
इमाम अलैहिस्सलाम और अमवी खलीफा।
इमाम मोहम्मद बाक़िर अ० की इमामत का ज़माना- जो तक़रीबन 19 साल पर मुहीत था।
अमवी हुकमरानो जैसे वलीद बिन अब्दुल मलिक,सुलेमान बिन अब्दुल मलिक,उमर बिन अब्दुल अज़ीज़,यज़ीद बिन अब्दुल मलिक,हश्शाम बिन अब्दुल मलिक का ज़माना था। इस मे से सिवाय उमर बिन अब्दुल अज़ीज़- जो अदालत पसंद था- सब के सब सितम गिरी और इस्तबदाद थे और आगे चलकर उन्होंने इमाम मोहम्मद बाक़िर अ० के लिए मुश्किलें पैदा कीं।
वलीद ने 86 हिजरी में हुकूमत की बागडोर संभाली और 15 जमादिउल आखिर,96 हिजरी को मर गया।मसऊदी का बयान है के वलीद हटधर्म,जाबिर और ज़ालिम बादशाह था। उसके बाप ने उस से वसीयत की थी कि हज्जाज बिन युसुफ़ का अकराम करे और चीते की खाल पहने। तलवार आमादा रखे और जो उसकी मुख़ालिफत करें उस को क़त्ल कर दे।
उस ने भी बाप की वसीयत को पूरा किया और हज्जाज के हाथों को अपने बाप की तरह मुसलमानों को सताने और उनको क़त्ल करने के लिए आज़ाद छोड़ दिया।
उमर बिन अब्दुल अज़ीज़,वलीद की तरफ से मदीने का हाकिम था, हज्जाज के ज़ुल्म से तंग आकर जो भी भागता था उसके पास पनाह लेता था। उमर ने वलीद को एक ख़त लिखा और लोगों के साथ हज्जाज के ज़ुल्म की शिकायत की। वलीद ने हाकिम की शिकायत सुनने के बजाए, हज्जाज की खुशनूदी के लिए उमर बिन अब्दुल अज़ीज़ को मदीने की गवर्नरी से मग़रूर कर दिया और हज्जाज को लिखा " तुम जिसको भी चाहो हाकिम बना दो हज्जाज ने भी ख़ालिद बिन अब्दुल्लाह क़सरी के लिए सिफारिश की जो ख़ुद इसी जैसा एक खूंख़ार शख्स था,वलीद ने यह सिफारिश क़ुबूल कर ली।
अपने भाई के बाद सुलेमान बिन अब्दुल मलिक ने ज़माने हुकूमत अपने हाथों मे ली और जुमे के दिन 10 माहे सफर 99 हिजरी को मर गया। उसके दौरे खिलाफत में अय्याशी और दरबार मे ऐशो निशात की महफिल होती थी। वह अपना ज़्यादा वक्त हरमसरा की औरतो के साथ गुज़ारता था। आहिस्ता-आहिस्ता बुरी बाते मुल्क के कारिंदों में भी सरायत कर गई और यह बाते मुल्क मे फैल गई।
उसने 2 साल चंद महीने हुकूमत की, शुरू में उसने नरमी का मजाहिरा किया।
उसने खालिद बिन अब्दुल्लाह क़सरी को जो ज़ुल्म और जरायम मे हज्जाज का दूसरा नमूना था,उसके मक़ाम पर बाक़ी रखा।
इसके बाद उमर बिन अब्दुल अज़ीज़ मसनदे हुकूमत पर आए। उनका इंतकाल 25 रजब 101 हिजरी को हुआ। यह किसी हद तक परेशानियों और दुश्वारियों पर क़ाबू पाने,बुराइयों और तफरीक़ के साथ जंग करने और जो धब्बा हुकूमत पर लगा हुआ था,उसे धोने यानी- हज़रत अली अलैहिस्सलाम पर सितम और फिदक को औलादे फातेमा अलैहिस्सलाम को वापस दे देना और इमाम मोहम्मद बाक़िर अ० के हवाले करने मे कामयाब हुए।
इसके बाद यज़ीद बिन अब्दुल मलिक इन की जगह पर बैठा। यज़ीद बिन अब्दुल मलिक का अपने हम नाम यज़ीद बिन माविया की तरह सिवाय अय्याशी,जरायम,मस्ती और औरतो के साथ इश्कबाजी के और कोई दूसरा काम ही ना था वह अख़लाक़ी और दीनी उसूल का हरगिज़ पाबंद नहीं था। उसकी ख़िलाफत का जमाना बनी उम्मैया की हुकूमत का एक स्याह तरीन और तारीख़ तरीन दौर शुमार किया जाता है।उसके ज़माने मे मुख्तलिफ शहरो से गाने बजाने वाले दमिश्क बुलाए जाते थे और इस तरह अय्याशी, हवसखोरी,शतरंज और ताश ने अरबी मुआशरे में रिवाज़ पाया।
इसके बाद हश्शाम बिन अब्दुल मलिक ने हुकूमत की बागडोर संभाली। वह बख़ील,बद अख़लाक, सितमगर और बेरहम था। ना सिर्फ यह के उसने बुराइयों की असलाह के लिए कोई क़दम नहीं उठाया बल्कि उसने बनी उम्मैया की खताओ को बख्श दिया।अपने गवर्नर को उसने लिखा कि शियो के साथ सख्ती करके उनको बहुत तंग करो। उस ने हुक्म दिया कि उनके आसार को मिटाकर उनका ख़ून बहाया जाए और उनको आम हक़ से मेहरूम कर दो।
उसने हुक्म दिया के शायरे अहलेबैत "कुमियत" का घर उजाड़ दिया जाए। कूफे के हाकिम को लिखा की "औलादें पैगंबर की मदह करने के जुर्म मे "कुमियत" की ज़बान काट ली जाए।"
यही था जिसने ज़ैद बिन अली यिबनिल हुसैन के इंकलाब को कुचल दिया था और इनके जिस्मे मुकद्दस की बे-हुरमती करने के बाद बड़ी दर्दनाक हालत मे कूफे मे दार पर लटका दिया।
इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम का अपनी ख़िलाफत के ज़माने में ऐसे-ऐसे मदअयानी ख़िलाफत से मुकाबला था। इस वजह से आपकी जिंदगी का ज़माना मुकम्मल तौर पर आपके पदरे बुज़ुर्गवार इमाम ज़ैनुल आबिदीन अलैहिस्सलाम की जिंदगी का मुंतक़ी सिलसिला था।
ख़िलाफत के बिल-मुक़ाबिल इमाम अ० का मौक़ुफ।
हश्शाम इमाम मोहम्मद बाक़िर अ० और इनके फ़र्ज़न्द अज़ीज़ इमाम जाफर सादिक़ अ० की इज्ज़त व विकार से बहुत डरता था। इसलिए अपनी हाकमियत का रौब जमाने और दस्त गाहे ख़िलाफत के मुकाबले मैं इमाम अ० की इज्तमाई हैसियत व विक़ार को मजरूह करने के लिए उसने हाकिमे मदीना को हुक्म दिया कि इन दोनों बुज़ुर्गों को शाम भेज दे।
इमाम के रुखसत होने से पहले उसने अपने दरबारियों और हाशिया नशीनों को इमाम अ० का सामना करने के लिए ज़रुरी अहकामात दिए। यह तय पाया के पहले खलीफा और फिर उसके बाद हाज़िराने दरबार जो सब के सब मशहूर और नुमाया अफराद थे,इमाम मोहम्मद बाक़िर अ० की तरफ तोहमत और शमातत का सैलाब उंडेल दें।
इमाम मोहम्मद बाक़िर अ० वारिद हुए और माअमूल के मुताबिक जो तरीका था कि हरा आने वाला अमीरुल मोमिनीन के मख़सूस लक़ब के साथ ख़लीफा को सलाम करता था,उसके बरख़िलाफ़ आपने तमाम हाज़रीन की तरफ रुख़ कर के "सलामुन अलैकुम" कहा फिर इजाज़त का इंतजार किए बग़ैर बैठ गए। इस रोश की बिना पर हश्शाम के दिल मे नफरत और हसद की आग भड़क उठी और उसने अपना प्रोग्राम शुरू कर दिया। उसने कहा तुम औलादें अली हमेशा मुसलमानों को इत्तेहाद को तोड़ते हो और अपनी तरफ दावत देकर इनके दरमियान रुख्ना और नफाक़ डालते हो,नादानी की बिना पर (माज़ल्लाह) अपने को पेशवा और इमाम समझते हो" हश्शाम थोड़ी देर तक ऐसे ही बोलता रहा फिर, चुप हो गया।
उसके बाद उसके नौकरो मे से हर एक ने एक बात कही और आप अ० को मोरिदे तोहमत क़रार दिया।
इमाम मोहम्मद बाक़िर अ० इस तमाम मुद्दत मे खामोशी और इत्मीनान से बैठे रहे। जब सब चुप हो गए तो आप उठे और हाज़रीन की तरफ मुखातिब हुए हम्दे खुदा और पैगंबर पर दूरूद के बाद इनकी गुमराही और बे- राह रवी को वाजेह और अपनी हैसियत नेज़ अपने खानदान के साबक़ा, इफ्तख़ार को बयान करते हुए फरमाया:-
ऐ लोगो! तुम कहां जा रहे हो और इन लोगों ने तुम्हारा क्या अंजाम सोच रखा है?
हमारा ही वसीला था जिसके ज़रिए खुदा ने तुम्हारे असलाफ की हिदायत की और हमारे ही हाथो से तुम्हारे काम के इख्तताम पर मोहर लगाई जाएगी। तुम्हारे पास आज यह थोड़े से दिनो की हुकूमत है, हमारी हुकूमत के बाद किसी की हुकूमत नहीं होगी हम ही वह अहले आक़बत है जिन के बारे में खुदा ने फरमाया है के "आक़बत साहिबाने तक़वा के लिए है।"
इमाम अ० की मुख्तसर और हिला देने वाली तक़रीर से हश्शाम को ऐसा गुस्सा आया कि सख़्ती के सिवा और कुछ उसके समझ मे नही आया। उसने इमाम को क़ैद करने का हुक्म दिया।
इमाम अ० ने जिंदान मे भी हक़ीकतो को बयान और साफ किया और आपने अपनी ज़ंजीरो पर भी अपना असर दिखाया। ज़िन्दान की निगरानी करने वालो ने हश्शाम को इस बात की ख़बर दी। उस ने हुक्म दिया के इमाम और उनके साथियों को ज़िन्दान से निकालकर पहरे और सख्तियो मे मदीना पहुंचाया जाए और पहले से भी ज़रुरी अहकाम भेजे जा चुके थे कि रास्ते मे किसी को यह हक़ हासिल नही है कि इस का़फिले के साथ कोई मामला करे और उनके हाथो किसी को रोटी और पानी बेचने का हक़ नही है।.....
इमाम मोहम्मद बाक़िर अ० इन हालात मे हाकीम की सख़्त गिरी के बावजूद इस बात मे कामयाब हो गए के तालीमो तरबियत के ज़रिए बहुत ही गहरी जड़ो वाली इल्मी तहरीक़ बनाई।
हज के ज़माने में इराक़,खुरासान और दूसरे शहरो से हज़ारो मुसलमान आपसे फतवा मालूम करते थे और मुआरिफ इस्लाम के हरबाब के बारे मे आप से सवाल करते थे।इन बुज़ुर्ग फिक़हा की तरफ जो इल्मी और फिक्री मुकातिब से वाबस्ता थे,आप के सामने दुशवार गुज़ार मसायल रखे जाते थे ताकि आप उलझ जाएं और लोगों के सामने ख़ामोश रहने पर मजबूर हो जाएं।
इन कामों की वजह से लोग आपके मुरीद हो गए थे और आपने क़ौम मे बहुत ज्यादा नफूज़ पैदा कर लिया था। बावजूद ये के ख़िलाफते बनि उम्मैया के ज़माने मे क़बीले मिज़्र और हमीर के दरमियान नस्ली क़त्ल की आग भड़क रही थी। मगर हम देखते है कि दोनो कबीलो के दरमियान इमाम अ० के चाहने वाले थे जैसा के बाक़ायदा शिया कहे जाने वाले शोअरा जैसे तमीमी मिज़्री और कमीत असदी हमीरी, दोनो ही इमाम बाक़िर अ० और अहलेबैत की दोस्ती में मुत्तफिक़ थे।
रावी कहता है:- हम अबू जाफर अलैहिस्सलाम की ख़िदमत मे बैठे हुए थे एक बूढ़ा आदमी आया, सलाम किया और कहा के फरजंदे रसूले ख़ुदा की क़सम मै आपका और आपके चाहने वालो का दोस्त हूं यह दोस्ती ज़ेवर जिंदगी के लालच मे नहीं है.... मै इस इंतजार मे हूं कि आप की कामयाबी का ज़माना क़रीब आए, क्या अब हमारे लिए कोई उम्मीद है? इमाम ने उस बूढ़े आदमी को अपने पैहलू मे बिठाया और फरमाया ऐ पीर मर्द ! किसी ने मेरे वालिद अली यिब्निल हुसैन से यही पूछा था मेरे वालिद ने उससे कहा था कि अगर इसी इंतजार मे मर जाओगे तो पैगंबर, अली, हसनो हुसैन और अली यिब्निल हुसैन की बारगाह मे पहुंचोगे......और अगर जिंदा रह जाओगे तो इसी दुनिया मे वह दिन देखोगे कि तुम्हारी आंखे रोशन हो जाएंगी और इस दुनिया मे हमारे साथ हमारे पहलू मे बलंद तरीन जगह पाओगे......"
इस तरह के बयानात उस घुटन के माहौल मे दिल अंगेज़ ख्वाब की तरह निज़ामे इस्लामी और हुकूमते अलवी की तशकील के लिए शियो के सितम रसीदा दिलो मे उम्मीद की किरण की लहर पैदा करते और आइंदा के लिए इस बात को यक़ीनी और ना टलने वाली सूरत मे पेश करते थे।
इमाम अ० की ये रोश इस बात का नमूना है कि आप का ताल्लुक अपने नज़दीकी असहाब से कैसा था और यह रोश एक दूसरे से मंज़म और मरतब राबते की निशान देही भी करती है। यही वह हकीकत थी जो ख़िलाफत की मसनरी को रद्दे अमल ज़ाहिर करने पर उभारती थी। आमतौर पर वाक़िफकार दुश्मन से मंज़म रद्दे अमल के ज़रिए हर आदमी के अमल की गहराई का इंकेशाफ किया जा सकता है।
रसूले खुदा के असहाब में से जो लोग ज़िंदा थे जैसे जाबिर बिन अब्दुल्लाह अंसारी और ताबईन मे से कुछ बुज़ुुर्ग अफराद जैसे जाबिर जाअफी और फिक़ीहिन् से कुछ लोग जैसे इब्ने मुबारिक ज़हरी,औज़ाइ,अबू हनीफा,मालिक,शाफई और ज़्याद बिन मंज़र और मिसक़ीन मे से कुछ अफराद जैसे तबरी,बलाज़री,सलामी और ख़तीब ने अपनी तारीखों में आपसे रिवायतें लिखी हैं।
इमाम अलैहिस्सलाम और अमवी खलीफा।
इमाम मोहम्मद बाक़िर अ० की इमामत का ज़माना- जो तक़रीबन 19 साल पर मुहीत था।
अमवी हुकमरानो जैसे वलीद बिन अब्दुल मलिक,सुलेमान बिन अब्दुल मलिक,उमर बिन अब्दुल अज़ीज़,यज़ीद बिन अब्दुल मलिक,हश्शाम बिन अब्दुल मलिक का ज़माना था। इस मे से सिवाय उमर बिन अब्दुल अज़ीज़- जो अदालत पसंद था- सब के सब सितम गिरी और इस्तबदाद थे और आगे चलकर उन्होंने इमाम मोहम्मद बाक़िर अ० के लिए मुश्किलें पैदा कीं।
वलीद ने 86 हिजरी में हुकूमत की बागडोर संभाली और 15 जमादिउल आखिर,96 हिजरी को मर गया।मसऊदी का बयान है के वलीद हटधर्म,जाबिर और ज़ालिम बादशाह था। उसके बाप ने उस से वसीयत की थी कि हज्जाज बिन युसुफ़ का अकराम करे और चीते की खाल पहने। तलवार आमादा रखे और जो उसकी मुख़ालिफत करें उस को क़त्ल कर दे।
उस ने भी बाप की वसीयत को पूरा किया और हज्जाज के हाथों को अपने बाप की तरह मुसलमानों को सताने और उनको क़त्ल करने के लिए आज़ाद छोड़ दिया।
उमर बिन अब्दुल अज़ीज़,वलीद की तरफ से मदीने का हाकिम था, हज्जाज के ज़ुल्म से तंग आकर जो भी भागता था उसके पास पनाह लेता था। उमर ने वलीद को एक ख़त लिखा और लोगों के साथ हज्जाज के ज़ुल्म की शिकायत की। वलीद ने हाकिम की शिकायत सुनने के बजाए, हज्जाज की खुशनूदी के लिए उमर बिन अब्दुल अज़ीज़ को मदीने की गवर्नरी से मग़रूर कर दिया और हज्जाज को लिखा " तुम जिसको भी चाहो हाकिम बना दो हज्जाज ने भी ख़ालिद बिन अब्दुल्लाह क़सरी के लिए सिफारिश की जो ख़ुद इसी जैसा एक खूंख़ार शख्स था,वलीद ने यह सिफारिश क़ुबूल कर ली।
अपने भाई के बाद सुलेमान बिन अब्दुल मलिक ने ज़माने हुकूमत अपने हाथों मे ली और जुमे के दिन 10 माहे सफर 99 हिजरी को मर गया। उसके दौरे खिलाफत में अय्याशी और दरबार मे ऐशो निशात की महफिल होती थी। वह अपना ज़्यादा वक्त हरमसरा की औरतो के साथ गुज़ारता था। आहिस्ता-आहिस्ता बुरी बाते मुल्क के कारिंदों में भी सरायत कर गई और यह बाते मुल्क मे फैल गई।
उसने 2 साल चंद महीने हुकूमत की, शुरू में उसने नरमी का मजाहिरा किया।
उसने खालिद बिन अब्दुल्लाह क़सरी को जो ज़ुल्म और जरायम मे हज्जाज का दूसरा नमूना था,उसके मक़ाम पर बाक़ी रखा।
इसके बाद उमर बिन अब्दुल अज़ीज़ मसनदे हुकूमत पर आए। उनका इंतकाल 25 रजब 101 हिजरी को हुआ। यह किसी हद तक परेशानियों और दुश्वारियों पर क़ाबू पाने,बुराइयों और तफरीक़ के साथ जंग करने और जो धब्बा हुकूमत पर लगा हुआ था,उसे धोने यानी- हज़रत अली अलैहिस्सलाम पर सितम और फिदक को औलादे फातेमा अलैहिस्सलाम को वापस दे देना और इमाम मोहम्मद बाक़िर अ० के हवाले करने मे कामयाब हुए।
इसके बाद यज़ीद बिन अब्दुल मलिक इन की जगह पर बैठा। यज़ीद बिन अब्दुल मलिक का अपने हम नाम यज़ीद बिन माविया की तरह सिवाय अय्याशी,जरायम,मस्ती और औरतो के साथ इश्कबाजी के और कोई दूसरा काम ही ना था वह अख़लाक़ी और दीनी उसूल का हरगिज़ पाबंद नहीं था। उसकी ख़िलाफत का जमाना बनी उम्मैया की हुकूमत का एक स्याह तरीन और तारीख़ तरीन दौर शुमार किया जाता है।उसके ज़माने मे मुख्तलिफ शहरो से गाने बजाने वाले दमिश्क बुलाए जाते थे और इस तरह अय्याशी, हवसखोरी,शतरंज और ताश ने अरबी मुआशरे में रिवाज़ पाया।
इसके बाद हश्शाम बिन अब्दुल मलिक ने हुकूमत की बागडोर संभाली। वह बख़ील,बद अख़लाक, सितमगर और बेरहम था। ना सिर्फ यह के उसने बुराइयों की असलाह के लिए कोई क़दम नहीं उठाया बल्कि उसने बनी उम्मैया की खताओ को बख्श दिया।अपने गवर्नर को उसने लिखा कि शियो के साथ सख्ती करके उनको बहुत तंग करो। उस ने हुक्म दिया कि उनके आसार को मिटाकर उनका ख़ून बहाया जाए और उनको आम हक़ से मेहरूम कर दो।
उसने हुक्म दिया के शायरे अहलेबैत "कुमियत" का घर उजाड़ दिया जाए। कूफे के हाकिम को लिखा की "औलादें पैगंबर की मदह करने के जुर्म मे "कुमियत" की ज़बान काट ली जाए।"
यही था जिसने ज़ैद बिन अली यिबनिल हुसैन के इंकलाब को कुचल दिया था और इनके जिस्मे मुकद्दस की बे-हुरमती करने के बाद बड़ी दर्दनाक हालत मे कूफे मे दार पर लटका दिया।
इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम का अपनी ख़िलाफत के ज़माने में ऐसे-ऐसे मदअयानी ख़िलाफत से मुकाबला था। इस वजह से आपकी जिंदगी का ज़माना मुकम्मल तौर पर आपके पदरे बुज़ुर्गवार इमाम ज़ैनुल आबिदीन अलैहिस्सलाम की जिंदगी का मुंतक़ी सिलसिला था।
ख़िलाफत के बिल-मुक़ाबिल इमाम अ० का मौक़ुफ।
हश्शाम इमाम मोहम्मद बाक़िर अ० और इनके फ़र्ज़न्द अज़ीज़ इमाम जाफर सादिक़ अ० की इज्ज़त व विकार से बहुत डरता था। इसलिए अपनी हाकमियत का रौब जमाने और दस्त गाहे ख़िलाफत के मुकाबले मैं इमाम अ० की इज्तमाई हैसियत व विक़ार को मजरूह करने के लिए उसने हाकिमे मदीना को हुक्म दिया कि इन दोनों बुज़ुर्गों को शाम भेज दे।
इमाम के रुखसत होने से पहले उसने अपने दरबारियों और हाशिया नशीनों को इमाम अ० का सामना करने के लिए ज़रुरी अहकामात दिए। यह तय पाया के पहले खलीफा और फिर उसके बाद हाज़िराने दरबार जो सब के सब मशहूर और नुमाया अफराद थे,इमाम मोहम्मद बाक़िर अ० की तरफ तोहमत और शमातत का सैलाब उंडेल दें।
इमाम मोहम्मद बाक़िर अ० वारिद हुए और माअमूल के मुताबिक जो तरीका था कि हरा आने वाला अमीरुल मोमिनीन के मख़सूस लक़ब के साथ ख़लीफा को सलाम करता था,उसके बरख़िलाफ़ आपने तमाम हाज़रीन की तरफ रुख़ कर के "सलामुन अलैकुम" कहा फिर इजाज़त का इंतजार किए बग़ैर बैठ गए। इस रोश की बिना पर हश्शाम के दिल मे नफरत और हसद की आग भड़क उठी और उसने अपना प्रोग्राम शुरू कर दिया। उसने कहा तुम औलादें अली हमेशा मुसलमानों को इत्तेहाद को तोड़ते हो और अपनी तरफ दावत देकर इनके दरमियान रुख्ना और नफाक़ डालते हो,नादानी की बिना पर (माज़ल्लाह) अपने को पेशवा और इमाम समझते हो" हश्शाम थोड़ी देर तक ऐसे ही बोलता रहा फिर, चुप हो गया।
उसके बाद उसके नौकरो मे से हर एक ने एक बात कही और आप अ० को मोरिदे तोहमत क़रार दिया।
इमाम मोहम्मद बाक़िर अ० इस तमाम मुद्दत मे खामोशी और इत्मीनान से बैठे रहे। जब सब चुप हो गए तो आप उठे और हाज़रीन की तरफ मुखातिब हुए हम्दे खुदा और पैगंबर पर दूरूद के बाद इनकी गुमराही और बे- राह रवी को वाजेह और अपनी हैसियत नेज़ अपने खानदान के साबक़ा, इफ्तख़ार को बयान करते हुए फरमाया:-
ऐ लोगो! तुम कहां जा रहे हो और इन लोगों ने तुम्हारा क्या अंजाम सोच रखा है?
हमारा ही वसीला था जिसके ज़रिए खुदा ने तुम्हारे असलाफ की हिदायत की और हमारे ही हाथो से तुम्हारे काम के इख्तताम पर मोहर लगाई जाएगी। तुम्हारे पास आज यह थोड़े से दिनो की हुकूमत है, हमारी हुकूमत के बाद किसी की हुकूमत नहीं होगी हम ही वह अहले आक़बत है जिन के बारे में खुदा ने फरमाया है के "आक़बत साहिबाने तक़वा के लिए है।"
इमाम अ० की मुख्तसर और हिला देने वाली तक़रीर से हश्शाम को ऐसा गुस्सा आया कि सख़्ती के सिवा और कुछ उसके समझ मे नही आया। उसने इमाम को क़ैद करने का हुक्म दिया।
इमाम अ० ने जिंदान मे भी हक़ीकतो को बयान और साफ किया और आपने अपनी ज़ंजीरो पर भी अपना असर दिखाया। ज़िन्दान की निगरानी करने वालो ने हश्शाम को इस बात की ख़बर दी। उस ने हुक्म दिया के इमाम और उनके साथियों को ज़िन्दान से निकालकर पहरे और सख्तियो मे मदीना पहुंचाया जाए और पहले से भी ज़रुरी अहकाम भेजे जा चुके थे कि रास्ते मे किसी को यह हक़ हासिल नही है कि इस का़फिले के साथ कोई मामला करे और उनके हाथो किसी को रोटी और पानी बेचने का हक़ नही है।.....
इमाम मोहम्मद बाक़िर अ० इन हालात मे हाकीम की सख़्त गिरी के बावजूद इस बात मे कामयाब हो गए के तालीमो तरबियत के ज़रिए बहुत ही गहरी जड़ो वाली इल्मी तहरीक़ बनाई।
हज के ज़माने में इराक़,खुरासान और दूसरे शहरो से हज़ारो मुसलमान आपसे फतवा मालूम करते थे और मुआरिफ इस्लाम के हरबाब के बारे मे आप से सवाल करते थे।इन बुज़ुर्ग फिक़हा की तरफ जो इल्मी और फिक्री मुकातिब से वाबस्ता थे,आप के सामने दुशवार गुज़ार मसायल रखे जाते थे ताकि आप उलझ जाएं और लोगों के सामने ख़ामोश रहने पर मजबूर हो जाएं।
इन कामों की वजह से लोग आपके मुरीद हो गए थे और आपने क़ौम मे बहुत ज्यादा नफूज़ पैदा कर लिया था। बावजूद ये के ख़िलाफते बनि उम्मैया के ज़माने मे क़बीले मिज़्र और हमीर के दरमियान नस्ली क़त्ल की आग भड़क रही थी। मगर हम देखते है कि दोनो कबीलो के दरमियान इमाम अ० के चाहने वाले थे जैसा के बाक़ायदा शिया कहे जाने वाले शोअरा जैसे तमीमी मिज़्री और कमीत असदी हमीरी, दोनो ही इमाम बाक़िर अ० और अहलेबैत की दोस्ती में मुत्तफिक़ थे।
रावी कहता है:- हम अबू जाफर अलैहिस्सलाम की ख़िदमत मे बैठे हुए थे एक बूढ़ा आदमी आया, सलाम किया और कहा के फरजंदे रसूले ख़ुदा की क़सम मै आपका और आपके चाहने वालो का दोस्त हूं यह दोस्ती ज़ेवर जिंदगी के लालच मे नहीं है.... मै इस इंतजार मे हूं कि आप की कामयाबी का ज़माना क़रीब आए, क्या अब हमारे लिए कोई उम्मीद है? इमाम ने उस बूढ़े आदमी को अपने पैहलू मे बिठाया और फरमाया ऐ पीर मर्द ! किसी ने मेरे वालिद अली यिब्निल हुसैन से यही पूछा था मेरे वालिद ने उससे कहा था कि अगर इसी इंतजार मे मर जाओगे तो पैगंबर, अली, हसनो हुसैन और अली यिब्निल हुसैन की बारगाह मे पहुंचोगे......और अगर जिंदा रह जाओगे तो इसी दुनिया मे वह दिन देखोगे कि तुम्हारी आंखे रोशन हो जाएंगी और इस दुनिया मे हमारे साथ हमारे पहलू मे बलंद तरीन जगह पाओगे......"
इस तरह के बयानात उस घुटन के माहौल मे दिल अंगेज़ ख्वाब की तरह निज़ामे इस्लामी और हुकूमते अलवी की तशकील के लिए शियो के सितम रसीदा दिलो मे उम्मीद की किरण की लहर पैदा करते और आइंदा के लिए इस बात को यक़ीनी और ना टलने वाली सूरत मे पेश करते थे।
इमाम अ० की ये रोश इस बात का नमूना है कि आप का ताल्लुक अपने नज़दीकी असहाब से कैसा था और यह रोश एक दूसरे से मंज़म और मरतब राबते की निशान देही भी करती है। यही वह हकीकत थी जो ख़िलाफत की मसनरी को रद्दे अमल ज़ाहिर करने पर उभारती थी। आमतौर पर वाक़िफकार दुश्मन से मंज़म रद्दे अमल के ज़रिए हर आदमी के अमल की गहराई का इंकेशाफ किया जा सकता है।
इमाम मोहम्मद बाकिर अ० के मकतबे फिक्र के परवदा अफराद।
इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम के मकतबे फिक्र मे मिसाली और मुमताज़ी शागिर्द ने परवरिश पाई थी उनमें से कुछ अफराद की तरफ इशारा किया जा रहा है:-
(1) अबान इब्ने तग़लिब- ने तीन इमामो की खिदमत मे हाज़री दी चौथे इमाम, पाँचवे इमाम और छठे इमाम। अबान अपने ज़माने की इल्मी शख्सियत मे से एक थे तफसीर,हदीस फिक़ा और क़रायत पर तसलत हासिल था। अबान की फिक़ही मंज़िलत की वजह से इमाम अ० ने उन से फरमाया कि मदीने की मस्जिद मे बैठो और लोगो के लिए फतवा दो ताकि लोग हमारे शियो मे तुम्हारी तरह के मेरे दोस्तदार को देखें।
इमाम जाफर सादिक़ अ० ने अबान के मरने की ख़बर सुनी तो आप ने फरमाया कि ख़ुदा की क़सम अबान की मौत ने मेरे दिल को मग़मूम कर दिया।
(2) ज़रारा इब्ने आअयुन:- शिया उलमा, इमाम मोहम्मद बाक़िर अ० और इमाम जाफिर सादिक़ अ० के शागिर्द मे से 6 अफराद को बरतर शुमार करते है और ज़रारा इन मे से एक हैं। इमाम जाफर सादिक अ० फरमाते हैं:- कि अगर बुरैर इब्ने माविया, अबू बसीर, मोहम्मद इब्ने मुस्लिम और ज़रारा ना होते तो आसारे नबूवत मिट जाते, यह लोग हलाल व हराम खुदा के अमीन है और फिर फरमाते हैं बुरैर, ज़रारा, मोहम्मद इब्ने मुस्लिम और अहूल, ज़िंदगी और मौत मे मेरे नज़दीक सबसे ज्यादा महबूब हैं।
(3) कुमैत असदी:- एक इंकलाबी और बा-मकसद शायर थे इनकी ज़बान गोया- उनके अशआर लोगो को ऐसे झिंजोड़ने वाले और दुश्मने अहलेबैत को इस तरह ज़लील करने वाली थी कि दरबारे ख़िलाफत की तरफ से मुस्तकिल मौत की धमकी दी गई। कुमैत इमाम मोहम्मद बाक़िर अ० के शैदाई थे और मोहब्बत के इस रास्ते मे उन्होंने अपने को फरामोश कर दिया था। एक दिन इमाम अ० के सामने इमाम अ० की शान मे कहे जाने वाले मुनासिब शेर पढ़ रहे थे कि इमाम ने काबे की तरफ रुख़ किया और तीन बार फरमाया:- खुदाया! कुमैत पर रहमत नाज़िल फरमा। फिर कुमैत से फरमाया अपने खानदान से मैंने 1 लाख दिरहम तुम्हारे लिए फ़राहम किए हैं।
कुमैत ने कहा मै इन का तालिब नहीं हूं फक़त अपना एक पैराहन मुझे अता फरमाइए। इमाम ने पैराहन उनको दे दिया।
(4) मोहम्मद इब्ने मुस्लिम:- इमाम मोहम्मद बाक़िर अ० और इमाम जाफर सादिक़ अ० के सच्चे दोस्तो मे से थे। आप कूफे के रहने वाले थे लेकिन इमाम से इल्म हासिल करने के लिए मदीने तशरीफ़ लाए।
अब्दुल्लाह इब्ने अबि याफूद बयान करते हैं-"मैने इमाम जाफर सादिक़ अ० से कहा कि कभी मुझ से सवालात होते है जिनका जवाब मै नही जानता और आप तक भी नही पहुंच सकता आखिर मैं क्या करूं? इमाम अ० ने मोहम्मद इब्ने मुस्लिम का नाम बताया और फरमाया इनसे क्यो नहीं पूछते?"
शहादत के बाद मुबारेज़ा।
इमाम मोहम्मद बाक़िर अ० की रहबरी का 19 साला ज़माना निहायत दुश्वार हालात और ना हमवार राहों मे गुज़रा।
इमाम अ० ने अपने बेटे इमाम जाफर सादिक़ अ० को हुक्म दिया कि इनके पैसो मे से एक हिस्सा 80 दिरहम 10 साल तक की मुद्दत तक अज़ादारी और इन पर गिरया करने मे खर्च करें। अज़ादारी की जगह मैदाने मनाअ और अज़ादारी का ज़माना हज का ज़माना है।
हज के आमाल लगातार तीन दिन तक अंजाम दिए जाते हैं और यह ज़ाहिर है कि सबसे ज़्यादा मुनासिब जगह मनाअ है। क्योंकि अरफात से वापसी पर हाजी तीन रातों तक वहां ठहरते हैं इसलिए आशनाई और हमदर्दी के लिए सब जगह से ज्यादा मौक़ा वही मिलता है और यह ज़ाहिर सी बात है कि अगर 3 दिनो तक इस बयाबान मे हर साल मजलिसे अज़ा बरपा हो तो हर आदमी की नज़र इस पर पड़ेगी और आहिस्ता-आहिस्ता लोग इससे आशना हो जाएंगे और खुद ही सवाल करना शुरू कर देंगे के कई बरसो से मदीने के कुछ लोग- वह मदीना जो मरकज़े इस्लाम और मरकज़े सहाबा है- आज के ज़माने में मनाअ मे मजलिसे अज़ा बरपा करते हैं वह भी आलिमे इस्लाम की बलंद शख्सियत मोहम्मद इब्ने अलीयिबनिल हुसैन के लिए! उनको किसने क़त्ल किया या ज़हर दिया?और क्यों? , आखिर उन्होंने क्या कहा और क्या किया? क्या इसका कोई सबब था और इनकी कोई दावत थी? क्या उनका वजूद, ख़लीफा के लिए ख़तरे का बाइस था दसियो सवाल इसके पीछे खड़े होंगे।
यह था इमाम मोहम्मद बाक़िर अ० का कामयाब नक्शा, शहादत के बाद जिहाद का नक्शा और यह है इस पुर बरकत ज़िंदगी का वजूद जिनकी मौत और ज़िंदगी ख़ुदा के लिए है।
इमाम अलैहिस्सलाम की शहादत 8 ज़िलहिज 114 हिजरी को 57 बरस की उम्र मे ज़ालिम अमवी बादशाहा हश्शाम बिन अब्दुल मलिक के हाथो से हज़रत इमाम मोहम्मद बाक़िर अ० मसमूम और शहीद हुए।
शहादत की रात आपने अपने फरजंद हज़रत जाफर इब्ने मोहम्म अ० से फरमाया के मै आज की रात इस दुनिया को छोड़ दूंगा। मैंन अभी अपने पदर बुज़ुर्गवार को देखा है कि वह खुशगवार शरबत का जाम मेरे पास लाए हैं और मैंने उसको पिया और उन्होंने मुझे सराय जावेद और दीदारे हक़ की बशारत दी।
इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम के मकतबे फिक्र मे मिसाली और मुमताज़ी शागिर्द ने परवरिश पाई थी उनमें से कुछ अफराद की तरफ इशारा किया जा रहा है:-
(1) अबान इब्ने तग़लिब- ने तीन इमामो की खिदमत मे हाज़री दी चौथे इमाम, पाँचवे इमाम और छठे इमाम। अबान अपने ज़माने की इल्मी शख्सियत मे से एक थे तफसीर,हदीस फिक़ा और क़रायत पर तसलत हासिल था। अबान की फिक़ही मंज़िलत की वजह से इमाम अ० ने उन से फरमाया कि मदीने की मस्जिद मे बैठो और लोगो के लिए फतवा दो ताकि लोग हमारे शियो मे तुम्हारी तरह के मेरे दोस्तदार को देखें।
इमाम जाफर सादिक़ अ० ने अबान के मरने की ख़बर सुनी तो आप ने फरमाया कि ख़ुदा की क़सम अबान की मौत ने मेरे दिल को मग़मूम कर दिया।
(2) ज़रारा इब्ने आअयुन:- शिया उलमा, इमाम मोहम्मद बाक़िर अ० और इमाम जाफिर सादिक़ अ० के शागिर्द मे से 6 अफराद को बरतर शुमार करते है और ज़रारा इन मे से एक हैं। इमाम जाफर सादिक अ० फरमाते हैं:- कि अगर बुरैर इब्ने माविया, अबू बसीर, मोहम्मद इब्ने मुस्लिम और ज़रारा ना होते तो आसारे नबूवत मिट जाते, यह लोग हलाल व हराम खुदा के अमीन है और फिर फरमाते हैं बुरैर, ज़रारा, मोहम्मद इब्ने मुस्लिम और अहूल, ज़िंदगी और मौत मे मेरे नज़दीक सबसे ज्यादा महबूब हैं।
(3) कुमैत असदी:- एक इंकलाबी और बा-मकसद शायर थे इनकी ज़बान गोया- उनके अशआर लोगो को ऐसे झिंजोड़ने वाले और दुश्मने अहलेबैत को इस तरह ज़लील करने वाली थी कि दरबारे ख़िलाफत की तरफ से मुस्तकिल मौत की धमकी दी गई। कुमैत इमाम मोहम्मद बाक़िर अ० के शैदाई थे और मोहब्बत के इस रास्ते मे उन्होंने अपने को फरामोश कर दिया था। एक दिन इमाम अ० के सामने इमाम अ० की शान मे कहे जाने वाले मुनासिब शेर पढ़ रहे थे कि इमाम ने काबे की तरफ रुख़ किया और तीन बार फरमाया:- खुदाया! कुमैत पर रहमत नाज़िल फरमा। फिर कुमैत से फरमाया अपने खानदान से मैंने 1 लाख दिरहम तुम्हारे लिए फ़राहम किए हैं।
कुमैत ने कहा मै इन का तालिब नहीं हूं फक़त अपना एक पैराहन मुझे अता फरमाइए। इमाम ने पैराहन उनको दे दिया।
(4) मोहम्मद इब्ने मुस्लिम:- इमाम मोहम्मद बाक़िर अ० और इमाम जाफर सादिक़ अ० के सच्चे दोस्तो मे से थे। आप कूफे के रहने वाले थे लेकिन इमाम से इल्म हासिल करने के लिए मदीने तशरीफ़ लाए।
अब्दुल्लाह इब्ने अबि याफूद बयान करते हैं-"मैने इमाम जाफर सादिक़ अ० से कहा कि कभी मुझ से सवालात होते है जिनका जवाब मै नही जानता और आप तक भी नही पहुंच सकता आखिर मैं क्या करूं? इमाम अ० ने मोहम्मद इब्ने मुस्लिम का नाम बताया और फरमाया इनसे क्यो नहीं पूछते?"
शहादत के बाद मुबारेज़ा।
इमाम मोहम्मद बाक़िर अ० की रहबरी का 19 साला ज़माना निहायत दुश्वार हालात और ना हमवार राहों मे गुज़रा।
इमाम अ० ने अपने बेटे इमाम जाफर सादिक़ अ० को हुक्म दिया कि इनके पैसो मे से एक हिस्सा 80 दिरहम 10 साल तक की मुद्दत तक अज़ादारी और इन पर गिरया करने मे खर्च करें। अज़ादारी की जगह मैदाने मनाअ और अज़ादारी का ज़माना हज का ज़माना है।
हज के आमाल लगातार तीन दिन तक अंजाम दिए जाते हैं और यह ज़ाहिर है कि सबसे ज़्यादा मुनासिब जगह मनाअ है। क्योंकि अरफात से वापसी पर हाजी तीन रातों तक वहां ठहरते हैं इसलिए आशनाई और हमदर्दी के लिए सब जगह से ज्यादा मौक़ा वही मिलता है और यह ज़ाहिर सी बात है कि अगर 3 दिनो तक इस बयाबान मे हर साल मजलिसे अज़ा बरपा हो तो हर आदमी की नज़र इस पर पड़ेगी और आहिस्ता-आहिस्ता लोग इससे आशना हो जाएंगे और खुद ही सवाल करना शुरू कर देंगे के कई बरसो से मदीने के कुछ लोग- वह मदीना जो मरकज़े इस्लाम और मरकज़े सहाबा है- आज के ज़माने में मनाअ मे मजलिसे अज़ा बरपा करते हैं वह भी आलिमे इस्लाम की बलंद शख्सियत मोहम्मद इब्ने अलीयिबनिल हुसैन के लिए! उनको किसने क़त्ल किया या ज़हर दिया?और क्यों? , आखिर उन्होंने क्या कहा और क्या किया? क्या इसका कोई सबब था और इनकी कोई दावत थी? क्या उनका वजूद, ख़लीफा के लिए ख़तरे का बाइस था दसियो सवाल इसके पीछे खड़े होंगे।
यह था इमाम मोहम्मद बाक़िर अ० का कामयाब नक्शा, शहादत के बाद जिहाद का नक्शा और यह है इस पुर बरकत ज़िंदगी का वजूद जिनकी मौत और ज़िंदगी ख़ुदा के लिए है।
इमाम अलैहिस्सलाम की शहादत 8 ज़िलहिज 114 हिजरी को 57 बरस की उम्र मे ज़ालिम अमवी बादशाहा हश्शाम बिन अब्दुल मलिक के हाथो से हज़रत इमाम मोहम्मद बाक़िर अ० मसमूम और शहीद हुए।
शहादत की रात आपने अपने फरजंद हज़रत जाफर इब्ने मोहम्म अ० से फरमाया के मै आज की रात इस दुनिया को छोड़ दूंगा। मैंन अभी अपने पदर बुज़ुर्गवार को देखा है कि वह खुशगवार शरबत का जाम मेरे पास लाए हैं और मैंने उसको पिया और उन्होंने मुझे सराय जावेद और दीदारे हक़ की बशारत दी।
इमाम जाफर सादिक़ अ० ने इस ख़ुदा-दाद इल्म के दरिया-ए-बेकरां के तने पाक को इमाम हसने मुजतबा अ० और इमाम ज़ैनुल आबेदीन अ० के पहलू मे कब्रिस्ताने बक़िया में सुपुर्द-ए-ख़ाक किया।
No comments:
Post a Comment