आसमानी विलायत के चोथे सितारे इमाम अली यिबनिल इमाम हुसैन अ० की विलादत 5 शाबान 38 हिजरी को शहरे मदीना मे हुई सय्यदुश् शोहदा हज़रते इमामे हुसैन अ० आपके वालिद और ईरान के बादशाह की बेटी आपकी मादरे ग्रामी है !
आपकी विलादत इमामे अली की शहादत से दो साल पहले हुई तक़रीबन 23 बरस तक आप आपने वालिद के साथ रहे इमाम ज़ैनुल आबेदीन अ० इंसानियत के खुसूसी सिफ़ात और नफ़्स के कमालात का मुकम्मल नमूना थे !
आपके मुतालिक़ अफराद मे से एक शख़्स ने लोगो के मजमे मे आपकी शान मे नामुनासिब कलमे कहे और चला गया !
इमाम अ० चन्द लोगो के साथ उसके घर गए और फ़रमाया तुम लोग हमारे साथ चलो ताकि हमारा भी जवाब सुनलो रास्ते मे आपने कुछ आयत (जिसमे मोमेनीन के आली औसाफ का तज़किरा है)पढ़ते जाते थे !
"वल काज़ेमिनल गैज़ा वल आफिना अनन नासे वाल लाहो युहिब्बुल मोहसेनीन"
यानि वो लोग जो अपना गुस्सा पी कर लोगो से दर गुज़र करते है और ख़ुदा नेक कारो को दोस्त रखता है !
जब इस आदमी के घर के दरवाज़े पर पहुचे इमाम अ० ने इसको आवाज़ दी तो वो इस गुमान मे अपने को लड़ने के लिए तैयार करके बहार निकला के इमाम अ० उन बातो का बदला लेने आये है ! इमामे सज्जाद अ० ने फ़रमाया मेरे भाई तू थोड़ी देर पहले मेरे पास आया था और तूने कुछ बाते कही थी जो बाते तूने कही है अगर वो मेरे अंदर है तो ख़ुदा मुझे माफ़ करे और अगर नही है तो ख़ुदा से मेरी दुआ है के वो तुझे माफ़ करदे !
आपकी इस नरमी ने उसको शर्मिंदा कर दिया वो क़रीब आया और इमाम अ० की पेशानी को बोसा दे कर कहा मेने जो बाते कही वो आप मे नही थी मै इस बात का एतराफ़ करता हु जो कुछ मेने कहा था मे उसका ज़्यादा सज़ावार हु !
इमामे मोहम्मद बाकिर अ० फरमाते है के मेरे पदरे बुजुर्गवार नमाज़ मे उस गुलाम की तरह खड़े होते थे जो अपने अज़ीम बादशाह के सामने अपने पैरो पर खड़ा रहता है ख़ुदा के ख़ौफ़ से लरज़ते रहते थे और नमाज़ को इस तरह अदा करते थे जैसे के ये उनकी आख़िरी नमाज़ हो !
आपकी शख़्सियत और अज़मत ऐसी थी के दोस्त और दुश्मन सभी मुतास्सिर थे !
यज़ीद इब्ने माविया ने वाकिया हूर्रा के बाद हुक़्म दिया के तमाम अहले मदीना ग़ुलाम के उन्वान से उसकी बैयत करे इस हुक़्म से अगर कोई अलग था तो वो इमाम अ० थे !
हशशाम इब्ने अब्दुल मालिक बनी उम्मैया का ख़ालिफ हज अदा करने के लिए मक्का आया था तवाफ़ के वक़्त लोगो का हुजूम ऐसा था के वो हुजरे अस्वद का बोसा न ले सका मजबूरन एक तरफ बैठ गया ताकि भीड़ काम हो जाये ! उसी वक़्त इमाम ज़ैनुल आबेदीन अ० मस्जिदुल हराम मे दाखिल हुए और तवाफ़ करने लगे लोगो ने इमाम के लिए रास्ता छोड़ दिया आपने बड़े आराम से हुजरे अस्वद का बोसा दिया हशशाम आपके बारे मे लोगो का एहतराम देख कर बहुत नाराज़ हुआ शाम के रहने वालो मे से एक शख़्स ने हशशाम से पूछा ये कौन थे जिनको लोग इतनी अज़मत दे रहे थे हशशाम ने इस ख़ौफ़ से के कही इसके साथ वाले इमाम के आशिक़ ना हो जाये जवाब दिया के मे इनको नही पहचानता !
मशहूर शायर फरज़दक बेझिजक खड़े हो गए और कहा मे इनको पहचानता हू और इसके बाद एक बहुत बड़ा क़सीदा इमाम ज़ैनुल आबेदीन अ० की तारीफ और अज़मत मे पढ़ डाला अशआर इतने मुनासिब और हशशाम के लिए ऐसे तमाचा थे के उमरी ख़ालिफ शिद्दत और नाराज़गी की बिना पर रद्दे अमल पर आमादा हो गया इसने हुक़्म दिया के फरज़दक को क़ैदखाने मे भेज दिया जाये इमाम अ० को जब इस वाक़ये के बारे मे पता चला तो आपने सुलह के तौर पर फरज़दक के पास कुछ भेजा फरज़दक ने दिरहमो को वापस कर दिया और कहलवाया के मेने अशआर ख़ुदा और रसूल के ख़ातिर पढे थे ! इमाम अ० ने फरज़दक को दूसरी बार फिर दिरहम भेजे और उनको कसम दी के क़ुबूल करले !
वाक़िये कर्बला के बाद इमामे हुसैन अ० के बेटो मे से सिर्फ आप ही ज़िंदा बचे थे ! अपने पदर की शहादत के बाद 10 मोहर्रम 61 हिजरी को आपने इमामत का ओहदा सम्भाला और शहादत के दिन तक यज़ीद, माविया, मरवान बिन हकम, अब्दुल मालिक और वालिद इब्ने अब्दुल मालिक जैसे हुकूमत करने वालो का ज़माना आपने देखा !
आपकी इमामत का दौर और मुआशरे मे हुकूमत करने वाले इस ज़माने के सियासी हालात तमाम इमाम अ० की ज़िन्दगी मे पेश आने वाले हालात से ज़्यादा दुशवार थे ! इमाम ज़ैनुल आबेदीन अ० की रविश उनकी इमामत के ज़माने मे दो हिस्सों मे तक़सीम की जा सकती है एक असीरी का ज़माना और दूसरा असीरी के बाद मदीने की ज़िन्दगी ।
1 - कर्बला के वाक़िये मे इमाम ज़ैनुल आबेदीन अ० अपने वालिद के साथ थे ! लेकिन बाद की शहादत के बाद असीर हो गए और दूसरे लोगो के साथ कूफ़ा और शाम तशरीफ़ ले गए ! इसमें कोई शक नही है के अहलेबैते इमाम हुसैन अ० का असीर होना आपके मुक़द्दस इंक़लाब को कामयाबी तक पहुचाने मे बहुत असर अंदाज़ हुआ ! चोथे इमाम अ० ने असीरी के ज़माने मे हरगिज़ तक़ैय्या नही किया और कमाल शाहमत के साथ तकरीरों और ख़ुतबो मे वाक़िये कर्बला को लोगो के सामने ब्यान किया और हक़ का इज़हार करते रहे मुनासिब मोके पर खानदाने रिसालत की अज़मत को लोगो के कानो तक पहुचाते रहे ! अपने पदर की मज़लुमियत और बनी उम्मैय्या के ज़ुल्मो सितम लोगो के सामने ज़ाहिर करते रहे !
इमामे ज़ैनुल आबेदीन अ० अपनी बाप की शहादत के वक़्त बीमार थे बाप ,भाई और असहाब की शहादत पर रंजीदा भी थे ! फिर भी आपने लोगो की फ़िक्र को रोशन करने के लिए हर मोके से फायदा उठाया !
असीरो का काफ़िला कूफ़ा पंहुचा जब लोग जनाबे ज़ैनब के ख़ुतबो से शर्मिंदा हो कर रोने लगे तो इमामे जैनुल आबेदीन अ० ने इशारा किया के मजमा खामोश हो जाये ! फिर परवरदिगार की तारीफ़ और पैग़म्बर पर दुरुद भेजने के बाद आपने फ़रमाया ऐ लोगो मे अली यिबनिल हुसैन हु ! मै उसका फ़रज़न्द हु ! जिसको फुरात के किनारे क़त्ल किया मे उसका फ़रज़न्द हु ! जिसका माल शहादत के बाद लूट लिया गया और जिसके खानदान को असीर बना कर यहाँ लाया गया लोगो क्या तुम्हे याद है के तुमने मेरे बाप को ख़त लिखा और उनको कूफ़ा बुलाया और जब वो तुम्हारी तरफ आये तो तुमने उनको क़त्ल कर लिया ! क़यामत के दिन पैग़म्बर के सामने किस मुँह से जाओगे जब वो तुम से फरमायँगे के क्या तुमने मेरे खानदान को क़त्ल कर दिया और तुमने मेरी ग़ुरमत की रीआयत नही की लेहाज़ा तुम मेरी उम्मत मे से नही हो !
हज़रते इमामे ज़ैनुल आबेदीब अ० की तक़रीर ने तूफ़ान की तरह लोगो को हिला कर रख दिया ! हर तरफ से गिरियाओ ज़ारी की आवाज़े आने लगी लोग एक दूसरे को बुरा भला कहने लगे के तुम हलाक़ और बदबख्त हो गए !
इमामे हुसैन अ० के अहले हरम को इब्ने ज़ियाद के दरबार मे ले जाया गया जब इब्ने ज़ियाद और इमामे ज़ैनुल आबेदीन अ० के दरमियान गुफ़्तुगू हुई तो आपने यक़ीन और शुजाअत के साथ ऐसा जवाब दिया जिससे इब्ने ज़ियाद ऐसा गज़बनाक हुआ के उसने इमाम अ० के क़त्ल का हुक़्म दे दिया ! इस मोके पर जनाबे ज़ैनब स० ने एतराज़ किया और फ़रमाया के अगर तुम इनको क़त्ल करना चाहते हो तो इनके साथ मुझे भी क़त्ल करदो !
इमाम अ० ने अपनी फूफी से फ़रमाया आप कुछ ना कहे मे खुद इसका जवाब दूंगा ! आपने इब्ने ज़ियाद की तरफ रुख किया और फ़रमाया ऐ ज़ियाद के बेटे क्या तुम मुझे क़त्ल करने की धमकी दे रहे हो क्या तुम ये नही जानते के क़त्ल हो जाना हमारी आदत और शहादत हमारी करामत है !
शाम मे एक ही रसन मे अहलेबैत के दूसरे अफराद के साथ इमाम अ० को भी बांधा गया था और इसी हालात मे शाम मे यज़ीद के दरबार मे ले जाया गया ! इमाम अ० ने बहुत ही दिलेरी के साथ यज़ीद से ख़िताब फ़रमाया ऐ यज़ीद अगर पैग़म्बर मुझको इस हालात मे देख ले तो तू उनके बारे मे क्या ख्याल करता है के वो क्या कहेंगे ? आपके इस छोटे से जुमले ने तमाम लोगो पर इतना असर किया के सब रोने लगे ! इमाम अ० ने जब यज़ीद से गुफ़्तुगू की तो उसने क़त्ल की धमकी दी ! इमाम अ० ने उसके जवाब मे फ़रमाया असीरी से आज़ाद होने वाले बनी उम्मैया जैसे कभी भी क़त्ले अम्बिया का हुक़्म नही दे सकते ! अगर तुम ऐसा इरादा रखते हो तो किसी साहिबे इतमीनान शख़्स को मेरे पास भेजो ताकि मै उससे वसीयत करदू और अहले हरम को उसके हवाले करदू !
एक दिन शाम की जामा मस्जिद मे यज़ीद ने ख़तीब से कहा के मिम्बर पर जा कर इमामे ज़ैनुल आबेदीन अ० के सामने इमामे अली और इमामे हुसैन अ० को बुरा भला कहे ! इस किराये के ख़तीब ने ऐसा ही किया इमामे अ० ने बलन्द आवाज़ से फ़रमाया वाय हो तुझ पर ऐ ख़तीब तूने ख़ालिक़ की नाराज़गी के बदले मख़लूक की ख़ुशनूदी खरीदी और इस तरह तुम दोज़ख मे अपना घर बना रहे हो ! फिर यज़ीद की तरफ मुख़ातिब हुए और फरमाया ! ऐ यज़ीद तू मुझे भी मिम्बर पर जाने दे और ऐसी बात कहने दे जिससे मे ख़ुदा को खुश कर दू ! यज़ीद ने पहले तो इजाज़त नही दी लेकिन फिर लोगो के इसरार के जवाब मे बोला के अगर ये मिम्बर पर जायगे तो मुझे और खानदाने अबु सुफियान को ज़लील किये बगैर निचे नही आयंगे ! लोगो ने कहा ये क्या कर सकते है यज़ीद ने कहा ये वो खानदान है जिसने इल्म को बचपन से दूध के साथ पिया है ! लोगो ने बहुत इसरार किया तो यज़ीद ने मजबूरन इजाज़त दी ! इमाम अ० मिम्बर पर तशरीफ़ ले गए और पैग़म्बर पर दुरुदो सलाम भेजने के बाद फ़रमाया ऐ लोगो ख़ुदा ने हमको इल्म बुर्दबारी सख़ावत दिलेरी और मोमेनीन के दिल मे हमारी दोस्ती अता की है ! पैग़म्बर हम मे से है ! अली हम मे से है ! जाफ़रे तैयार हम मे से है ! हमज़ा हम मे से है ! इमामे हसन और इमामे हुसैन पैग़म्बर के दोनो नवासे हम मे से है ! मै फरजंदे मक्का और मिना फरजंदे ज़मज़म और सफा हु ! मे उसका बेटा हु ! जिसने हुजरे अस्वद को अबा मे रख कर उठाया ! मै उस बेहतरीन शख़्स का बेटा हु ! जिसने एहराम बांधा और तवाफ़ किया हज किया ! मै ख़तिजातुल कुबरा का बेटा हु ! मै फ़ातिमा ज़ेहरा का बेटा हु ! मै उस हुसैन का बेटा हु ! जिसको कर्बला मे क़त्ल कर डाला गया ! लोगो मे खलबली मच गयी आप हर जुमले के साथ पर्दा उठाते जा रहे थे और उमवी गिरोह की साज़िशों को ज़ाहिर कर रहे थे ! अपने खानदान की अज़मत लोगो के सामने नुमाया कर रहे थे ! धीरे धीरे लोगो की आँखो से आसु बहने लगे हर कोने से रोने की आवाज़ आने लगी ! यज़ीद को डर लगने लगा और उसने इमाम अ० की तक़रीर को रोकने के लिए मोज़्ज़िन को अज़ान देने का हुक़्म दिया ! मोज़्ज़िन जब अशहदो अन्ना मोहम्मदर् रसूलुल्ला पर पंहुचा तो आपने अमामा सर से उतार लिया और फ़रमाया ए मोज़्ज़िन इसी मोहम्मद की क़सम ज़रा ठहर जा ! फिर यज़ीद की तरफ रुख करके फ़रमाया ए यज़ीद ये रसूले अकरम मेरे जद है या तेरे अगर तुम कहो के तुम्हारे जद है तो सब जानते है के ये झूठ है अगर तुम ये कहते हो के ये मेरे जद है तो फिर उनकी इतरत को तुमने क्यों क़त्ल किया !उनके खानदान को तुमने क्यों असीर कर लिया ! ए यज़ीद तू इन तमाम कामो के बावजूद मोहम्मद को पैग़म्बरे ख़ुदा जानता है और किबले की तरफ रुख करके खड़ा होता है नमाज़ पढ़ता है ! वाय हो तुझ पर के मेरे जद और पदर क़यामत मे तेरा गिरेबान पकड़ेंगे ! यज़ीद ने मोज़्ज़िन को हुक़्म दिया नमाज़ के लिए अक़ामत कहे लेकिन लोग बहुत नाराज़ थे ! यहाँ तक के कुछ लोगो ने नमाज़ तक नही पढ़ी और मस्जिद से निकल गए शाम मे इमाम अ० की तक़रीरे इस बात का सबब बनी की यज़ीद क़त्ले इमाम का इरादा रखने के बावजूद इस बात पर मजबूर हुआ के आपको और तमाम अहलेबैत को मदीना वापस करदे !
असीरी की तमाम मुद्दत मे इमाम ज़ैनुल आबेदीन अ० लोगो के तसव्वुर के बरख़िलाफ़ हर महफ़िलो मजलिस मे अपनी और अपने वालिद की कामयाबी और बनी उम्मैय्या के गिरोह की शिकस्त के बारे मे तक़रीर करते थे ! दूसरी तरफ आपने इस बात की कोशिश की के तकरीरों और अपने खानदान की अज़मतो और बनी उम्मैया के ज़ुल्मो सितम के बयान के ज़रिये लोगो की इन्क़लाबी फ़िक्र को उभारे ! अभी ज़्यादा दिन नही गुज़रे थे के इस रवैय्ये की वजह से उमवी सल्तनत के ख़िलाफ़ इराक़ और हिजाज़ मे इंक़लाब का परचम बलन्द हो गया और हज़ारो अफराद खूने हुसैन का इंतकाम लेने के लिए उठ खड़े हुए !
असीरी के दिन गुज़र जाने के बाद इमामे सज्जाद अ० मदीना वापस आ गए ! यज़ीद के मरते ही अब्दुल्ला बिन ज़ुबैर जो बरसो से ख़िलाफत की लालच मे था ! मक्के मे उठ खड़े हुए और हिजाज़ और यमन ,इराक़ और खुरासान के लोगो ने भी इनकी बैयत करली और शाम मे माविया बिन यज़ीद के हट जाने के बाद ख़िलाफत पर बैठे मरवान बिन हकम मसनदे ख़िलाफत पर बैठा और साज़िश के ज़रिये हुकूमत तक पंहुचा अब्दुल्ला बिन ज़ुबैर की मुख़ालेफ़त के लिए उठ खड़ा हुआ ! शाम के बाद मिस्र पर अपना कब्ज़ा मजबूत किया ! लेकिन इसकी हुकूमत ज़्यादा दिनों तक बाक़ी नही रही और थोड़ी ही मुद्दत मे मर गया ! इसकी जगह इसका बेटा अब्दुल मलिक बैठा ! इसने शाम और मिस्र मे अपनी पोज़ीशन मज़बूत बनाने के बाद 65 हिजरी मे अब्दुल्ला बिन ज़ुबैर को मक्के मे घेर कर क़त्ल कर दिया ! इसने लोगो को अज़ीयते पहुचाई खासकर शियाने अली को अपने हुकूमत के ज़माने मे तक़रीबन 1 लाख 20 हज़ार अफराद को क़त्ल कर डाला ! अब्दुल मलिक बड़ी सख़्ती से इमामे ज़ैनुल आबेदीन अ० की निगरानी करता था और इस कोशिश मे था आपके ख़िलाफ़ किसी भी तरीके से कोई बहाना हाथ आ जाये और वो आपकी तौहीन करे ! इसको जब ये इत्तेला मिली के इमामे ज़ैनुल आबेदीन अ० ने अपनी आज़ाद हुई कनीज़ से अक़्द कर लिया है ! तो इसने चाहा इस तरह से वो हज़रत को ये समझा दे के हम आपके तमाम कामो से बाख़बर है ! इसने अपनी क़राबतदारी को याद दिलाया तो इमाम अ० ने जवाब मे आईने इस्लाम को इस सिलसिले मे याद दिलाते हुए कहा के मुसलमान हो जाना और ख़ुदा पर ईमान लाना हमेशा दूसरे इमतियाज़ात को ख़त्म कर देता है ! 86 हिजरी मे अब्दुल मलिक के मरने के बाद इसका बेटा वलिद इसकी जगह पर बैठा एक तरफ तो इमामे ज़ैनुल आबेदीन अ० अपने ज़माने के बादशाहो के जुर्म को बर्दाश्त कर रहे थे ! और दूसरी तरफ ईमानदारो मुजाहिदो का ख़तरा महसूस कर रहे थे ! इसीलिए आपने अपने दरवाज़े को दुसरो के लिए बंद कर दिया ! इस तरह से आपने अपनी और अपनी कुछ क़ाबिले एतेेमाद असहाब की जान बचाली ! अबूउम्र नेहदी का बयान है इमामे ज़ैनुल आबेदीन अ० ने फ़रमाया मक्के और मदीने मे हमारे 20 दोस्त हक़ीक़ी और जानीसार भी नही है ! इसी तरह इमामे ज़ैनुल आबेदीन अ० का काम बेहद दुशवार हिम्मत का काम था ! आप इस आलम मे इस बात मे कामयाब हो गए के 170 शागिर्दों की तरबियत कर दे जिनमे से हर एक इस्लामी मुआशरे मे रोशन चिराग था ! जिन अफराद के नाम रिजाल की किताबो मे मौजूद है ! जैसे अबु हमज़ा सोमाली जैसी शख़्सियतो के नाम लिए जा सकते है ! इमामे ज़ैनुल आबेदीन अ० ने शागिर्दों की तरबियत के ज़रिये उमवी हुकूमत के दिलो मे एक मक़्सूस अज़मत पैदा करली ! यहाँ तक के एक हज के मोके पर जब आपका सामना अब्दुल मलिक बिन मरवान से हुआ तो नासिर्फ ये के आपने उसको सलाम नही किया बल्कि उसके चेहरे पर नज़र भी नही डाली ! अब्दुल मलिक इस बात पर नाराज़ हुआ इसने आहिस्ता से इमाम अ० के हाथ को पकड़ा और कहा ऐ अबु मोहम्मद मुझे देखिये मै अब्दुल मलिक हु ना के आपके बाप का क़ातिल यज़ीद ! इमाम अ० ने जवाब दिया मेरे बाप के क़ातिल ने अपनी आख़ेरत खराब करली अगर तू भी मेरे बाप के क़ातिल की तरह होना चाहता है तो कोई हर्ज नही है ! अब्दुल मलिक ने गुस्से मे कहा मै हरगिज़ ऐसा होना नही चाहता ! लेकिन मुझे इस बात की उम्मीद है के आप हमारे मसाइल से फायदा उठायंगे ! इमाम अ० ने जवाब मे फ़रमाया मुझे तुम्हारी दुनिया और जो कुछ तुम्हारे पास है उसकी कोई जरूरत नही !
इमामे ज़ैनुल आबेदीन अ० की कोशिश ये थी के आप इन्फ्रादी और इजतेमायी तरबियत और अक़ायद से मुताल्लिक़ मसायल को दुआ के ज़रिये फैलाये जो आपकी यादगार के तौर पर महफूज़ रह गयी है सहीफाये सज्जादिया और इसमें बयान की गयी बातो पर ग़ोरो फ़िक्र ने हमारे लिए बहुत से मसले रोशन किये है ! इस्लामी मुआशरे को इस किताब ने आलम की मालूमात ख़ुदा की मारेफ़त को पहचनवाया है इन हालात मे जब इमाम अ० को बयान और गुफ़्तुगू के आज़ादी मयस्सर नही थी तो आपने मुनाजात और दुआ के ज़रिये दस्तूरे अमल को मुसलमानो के लिए वाज़े किया !
सहीफाये सज्जादिया की अज़मत समझने के लिए मशहूर मिस्री का एक क़ोल ही काफी है ! वो कहते है के सहीफाये सज्जादिया वो तन्हा किताब है ! जिसमे उलूम और माआरिफ पर हिकमते मौजूद है इसके आलावा किसी किताब मे ऐसा ज़खीरा नही है !
इमामे ज़ैनुल आबेदीन अ० 57 साल तक मुसीबत बर्दाशत करने के बाद वालिद इब्ने अब्दुल मलिक के दौरे हुकूमत मे इसके हुक़्म से जिसने अपने ख़िलाफत और हुकूमत का महवर ज़ुल्मो सितम और क़त्ल के महोल बना रखा था ज़हर के ज़रिये 25 मुहर्रम 95 हिजरी को शहादत पायी ! इनके जिस्म को बक़ी मे इमामे हसने मुजतबा के क़ब्र के पहलू मे सुपुर्दे ख़ाक किये गए !
आपकी विलादत इमामे अली की शहादत से दो साल पहले हुई तक़रीबन 23 बरस तक आप आपने वालिद के साथ रहे इमाम ज़ैनुल आबेदीन अ० इंसानियत के खुसूसी सिफ़ात और नफ़्स के कमालात का मुकम्मल नमूना थे !
आपके मुतालिक़ अफराद मे से एक शख़्स ने लोगो के मजमे मे आपकी शान मे नामुनासिब कलमे कहे और चला गया !
इमाम अ० चन्द लोगो के साथ उसके घर गए और फ़रमाया तुम लोग हमारे साथ चलो ताकि हमारा भी जवाब सुनलो रास्ते मे आपने कुछ आयत (जिसमे मोमेनीन के आली औसाफ का तज़किरा है)पढ़ते जाते थे !
"वल काज़ेमिनल गैज़ा वल आफिना अनन नासे वाल लाहो युहिब्बुल मोहसेनीन"
यानि वो लोग जो अपना गुस्सा पी कर लोगो से दर गुज़र करते है और ख़ुदा नेक कारो को दोस्त रखता है !
जब इस आदमी के घर के दरवाज़े पर पहुचे इमाम अ० ने इसको आवाज़ दी तो वो इस गुमान मे अपने को लड़ने के लिए तैयार करके बहार निकला के इमाम अ० उन बातो का बदला लेने आये है ! इमामे सज्जाद अ० ने फ़रमाया मेरे भाई तू थोड़ी देर पहले मेरे पास आया था और तूने कुछ बाते कही थी जो बाते तूने कही है अगर वो मेरे अंदर है तो ख़ुदा मुझे माफ़ करे और अगर नही है तो ख़ुदा से मेरी दुआ है के वो तुझे माफ़ करदे !
आपकी इस नरमी ने उसको शर्मिंदा कर दिया वो क़रीब आया और इमाम अ० की पेशानी को बोसा दे कर कहा मेने जो बाते कही वो आप मे नही थी मै इस बात का एतराफ़ करता हु जो कुछ मेने कहा था मे उसका ज़्यादा सज़ावार हु !
इमामे मोहम्मद बाकिर अ० फरमाते है के मेरे पदरे बुजुर्गवार नमाज़ मे उस गुलाम की तरह खड़े होते थे जो अपने अज़ीम बादशाह के सामने अपने पैरो पर खड़ा रहता है ख़ुदा के ख़ौफ़ से लरज़ते रहते थे और नमाज़ को इस तरह अदा करते थे जैसे के ये उनकी आख़िरी नमाज़ हो !
आपकी शख़्सियत और अज़मत ऐसी थी के दोस्त और दुश्मन सभी मुतास्सिर थे !
यज़ीद इब्ने माविया ने वाकिया हूर्रा के बाद हुक़्म दिया के तमाम अहले मदीना ग़ुलाम के उन्वान से उसकी बैयत करे इस हुक़्म से अगर कोई अलग था तो वो इमाम अ० थे !
हशशाम इब्ने अब्दुल मालिक बनी उम्मैया का ख़ालिफ हज अदा करने के लिए मक्का आया था तवाफ़ के वक़्त लोगो का हुजूम ऐसा था के वो हुजरे अस्वद का बोसा न ले सका मजबूरन एक तरफ बैठ गया ताकि भीड़ काम हो जाये ! उसी वक़्त इमाम ज़ैनुल आबेदीन अ० मस्जिदुल हराम मे दाखिल हुए और तवाफ़ करने लगे लोगो ने इमाम के लिए रास्ता छोड़ दिया आपने बड़े आराम से हुजरे अस्वद का बोसा दिया हशशाम आपके बारे मे लोगो का एहतराम देख कर बहुत नाराज़ हुआ शाम के रहने वालो मे से एक शख़्स ने हशशाम से पूछा ये कौन थे जिनको लोग इतनी अज़मत दे रहे थे हशशाम ने इस ख़ौफ़ से के कही इसके साथ वाले इमाम के आशिक़ ना हो जाये जवाब दिया के मे इनको नही पहचानता !
मशहूर शायर फरज़दक बेझिजक खड़े हो गए और कहा मे इनको पहचानता हू और इसके बाद एक बहुत बड़ा क़सीदा इमाम ज़ैनुल आबेदीन अ० की तारीफ और अज़मत मे पढ़ डाला अशआर इतने मुनासिब और हशशाम के लिए ऐसे तमाचा थे के उमरी ख़ालिफ शिद्दत और नाराज़गी की बिना पर रद्दे अमल पर आमादा हो गया इसने हुक़्म दिया के फरज़दक को क़ैदखाने मे भेज दिया जाये इमाम अ० को जब इस वाक़ये के बारे मे पता चला तो आपने सुलह के तौर पर फरज़दक के पास कुछ भेजा फरज़दक ने दिरहमो को वापस कर दिया और कहलवाया के मेने अशआर ख़ुदा और रसूल के ख़ातिर पढे थे ! इमाम अ० ने फरज़दक को दूसरी बार फिर दिरहम भेजे और उनको कसम दी के क़ुबूल करले !
वाक़िये कर्बला के बाद इमामे हुसैन अ० के बेटो मे से सिर्फ आप ही ज़िंदा बचे थे ! अपने पदर की शहादत के बाद 10 मोहर्रम 61 हिजरी को आपने इमामत का ओहदा सम्भाला और शहादत के दिन तक यज़ीद, माविया, मरवान बिन हकम, अब्दुल मालिक और वालिद इब्ने अब्दुल मालिक जैसे हुकूमत करने वालो का ज़माना आपने देखा !
आपकी इमामत का दौर और मुआशरे मे हुकूमत करने वाले इस ज़माने के सियासी हालात तमाम इमाम अ० की ज़िन्दगी मे पेश आने वाले हालात से ज़्यादा दुशवार थे ! इमाम ज़ैनुल आबेदीन अ० की रविश उनकी इमामत के ज़माने मे दो हिस्सों मे तक़सीम की जा सकती है एक असीरी का ज़माना और दूसरा असीरी के बाद मदीने की ज़िन्दगी ।
1 - कर्बला के वाक़िये मे इमाम ज़ैनुल आबेदीन अ० अपने वालिद के साथ थे ! लेकिन बाद की शहादत के बाद असीर हो गए और दूसरे लोगो के साथ कूफ़ा और शाम तशरीफ़ ले गए ! इसमें कोई शक नही है के अहलेबैते इमाम हुसैन अ० का असीर होना आपके मुक़द्दस इंक़लाब को कामयाबी तक पहुचाने मे बहुत असर अंदाज़ हुआ ! चोथे इमाम अ० ने असीरी के ज़माने मे हरगिज़ तक़ैय्या नही किया और कमाल शाहमत के साथ तकरीरों और ख़ुतबो मे वाक़िये कर्बला को लोगो के सामने ब्यान किया और हक़ का इज़हार करते रहे मुनासिब मोके पर खानदाने रिसालत की अज़मत को लोगो के कानो तक पहुचाते रहे ! अपने पदर की मज़लुमियत और बनी उम्मैय्या के ज़ुल्मो सितम लोगो के सामने ज़ाहिर करते रहे !
इमामे ज़ैनुल आबेदीन अ० अपनी बाप की शहादत के वक़्त बीमार थे बाप ,भाई और असहाब की शहादत पर रंजीदा भी थे ! फिर भी आपने लोगो की फ़िक्र को रोशन करने के लिए हर मोके से फायदा उठाया !
असीरो का काफ़िला कूफ़ा पंहुचा जब लोग जनाबे ज़ैनब के ख़ुतबो से शर्मिंदा हो कर रोने लगे तो इमामे जैनुल आबेदीन अ० ने इशारा किया के मजमा खामोश हो जाये ! फिर परवरदिगार की तारीफ़ और पैग़म्बर पर दुरुद भेजने के बाद आपने फ़रमाया ऐ लोगो मे अली यिबनिल हुसैन हु ! मै उसका फ़रज़न्द हु ! जिसको फुरात के किनारे क़त्ल किया मे उसका फ़रज़न्द हु ! जिसका माल शहादत के बाद लूट लिया गया और जिसके खानदान को असीर बना कर यहाँ लाया गया लोगो क्या तुम्हे याद है के तुमने मेरे बाप को ख़त लिखा और उनको कूफ़ा बुलाया और जब वो तुम्हारी तरफ आये तो तुमने उनको क़त्ल कर लिया ! क़यामत के दिन पैग़म्बर के सामने किस मुँह से जाओगे जब वो तुम से फरमायँगे के क्या तुमने मेरे खानदान को क़त्ल कर दिया और तुमने मेरी ग़ुरमत की रीआयत नही की लेहाज़ा तुम मेरी उम्मत मे से नही हो !
हज़रते इमामे ज़ैनुल आबेदीब अ० की तक़रीर ने तूफ़ान की तरह लोगो को हिला कर रख दिया ! हर तरफ से गिरियाओ ज़ारी की आवाज़े आने लगी लोग एक दूसरे को बुरा भला कहने लगे के तुम हलाक़ और बदबख्त हो गए !
इमामे हुसैन अ० के अहले हरम को इब्ने ज़ियाद के दरबार मे ले जाया गया जब इब्ने ज़ियाद और इमामे ज़ैनुल आबेदीन अ० के दरमियान गुफ़्तुगू हुई तो आपने यक़ीन और शुजाअत के साथ ऐसा जवाब दिया जिससे इब्ने ज़ियाद ऐसा गज़बनाक हुआ के उसने इमाम अ० के क़त्ल का हुक़्म दे दिया ! इस मोके पर जनाबे ज़ैनब स० ने एतराज़ किया और फ़रमाया के अगर तुम इनको क़त्ल करना चाहते हो तो इनके साथ मुझे भी क़त्ल करदो !
इमाम अ० ने अपनी फूफी से फ़रमाया आप कुछ ना कहे मे खुद इसका जवाब दूंगा ! आपने इब्ने ज़ियाद की तरफ रुख किया और फ़रमाया ऐ ज़ियाद के बेटे क्या तुम मुझे क़त्ल करने की धमकी दे रहे हो क्या तुम ये नही जानते के क़त्ल हो जाना हमारी आदत और शहादत हमारी करामत है !
शाम मे एक ही रसन मे अहलेबैत के दूसरे अफराद के साथ इमाम अ० को भी बांधा गया था और इसी हालात मे शाम मे यज़ीद के दरबार मे ले जाया गया ! इमाम अ० ने बहुत ही दिलेरी के साथ यज़ीद से ख़िताब फ़रमाया ऐ यज़ीद अगर पैग़म्बर मुझको इस हालात मे देख ले तो तू उनके बारे मे क्या ख्याल करता है के वो क्या कहेंगे ? आपके इस छोटे से जुमले ने तमाम लोगो पर इतना असर किया के सब रोने लगे ! इमाम अ० ने जब यज़ीद से गुफ़्तुगू की तो उसने क़त्ल की धमकी दी ! इमाम अ० ने उसके जवाब मे फ़रमाया असीरी से आज़ाद होने वाले बनी उम्मैया जैसे कभी भी क़त्ले अम्बिया का हुक़्म नही दे सकते ! अगर तुम ऐसा इरादा रखते हो तो किसी साहिबे इतमीनान शख़्स को मेरे पास भेजो ताकि मै उससे वसीयत करदू और अहले हरम को उसके हवाले करदू !
एक दिन शाम की जामा मस्जिद मे यज़ीद ने ख़तीब से कहा के मिम्बर पर जा कर इमामे ज़ैनुल आबेदीन अ० के सामने इमामे अली और इमामे हुसैन अ० को बुरा भला कहे ! इस किराये के ख़तीब ने ऐसा ही किया इमामे अ० ने बलन्द आवाज़ से फ़रमाया वाय हो तुझ पर ऐ ख़तीब तूने ख़ालिक़ की नाराज़गी के बदले मख़लूक की ख़ुशनूदी खरीदी और इस तरह तुम दोज़ख मे अपना घर बना रहे हो ! फिर यज़ीद की तरफ मुख़ातिब हुए और फरमाया ! ऐ यज़ीद तू मुझे भी मिम्बर पर जाने दे और ऐसी बात कहने दे जिससे मे ख़ुदा को खुश कर दू ! यज़ीद ने पहले तो इजाज़त नही दी लेकिन फिर लोगो के इसरार के जवाब मे बोला के अगर ये मिम्बर पर जायगे तो मुझे और खानदाने अबु सुफियान को ज़लील किये बगैर निचे नही आयंगे ! लोगो ने कहा ये क्या कर सकते है यज़ीद ने कहा ये वो खानदान है जिसने इल्म को बचपन से दूध के साथ पिया है ! लोगो ने बहुत इसरार किया तो यज़ीद ने मजबूरन इजाज़त दी ! इमाम अ० मिम्बर पर तशरीफ़ ले गए और पैग़म्बर पर दुरुदो सलाम भेजने के बाद फ़रमाया ऐ लोगो ख़ुदा ने हमको इल्म बुर्दबारी सख़ावत दिलेरी और मोमेनीन के दिल मे हमारी दोस्ती अता की है ! पैग़म्बर हम मे से है ! अली हम मे से है ! जाफ़रे तैयार हम मे से है ! हमज़ा हम मे से है ! इमामे हसन और इमामे हुसैन पैग़म्बर के दोनो नवासे हम मे से है ! मै फरजंदे मक्का और मिना फरजंदे ज़मज़म और सफा हु ! मे उसका बेटा हु ! जिसने हुजरे अस्वद को अबा मे रख कर उठाया ! मै उस बेहतरीन शख़्स का बेटा हु ! जिसने एहराम बांधा और तवाफ़ किया हज किया ! मै ख़तिजातुल कुबरा का बेटा हु ! मै फ़ातिमा ज़ेहरा का बेटा हु ! मै उस हुसैन का बेटा हु ! जिसको कर्बला मे क़त्ल कर डाला गया ! लोगो मे खलबली मच गयी आप हर जुमले के साथ पर्दा उठाते जा रहे थे और उमवी गिरोह की साज़िशों को ज़ाहिर कर रहे थे ! अपने खानदान की अज़मत लोगो के सामने नुमाया कर रहे थे ! धीरे धीरे लोगो की आँखो से आसु बहने लगे हर कोने से रोने की आवाज़ आने लगी ! यज़ीद को डर लगने लगा और उसने इमाम अ० की तक़रीर को रोकने के लिए मोज़्ज़िन को अज़ान देने का हुक़्म दिया ! मोज़्ज़िन जब अशहदो अन्ना मोहम्मदर् रसूलुल्ला पर पंहुचा तो आपने अमामा सर से उतार लिया और फ़रमाया ए मोज़्ज़िन इसी मोहम्मद की क़सम ज़रा ठहर जा ! फिर यज़ीद की तरफ रुख करके फ़रमाया ए यज़ीद ये रसूले अकरम मेरे जद है या तेरे अगर तुम कहो के तुम्हारे जद है तो सब जानते है के ये झूठ है अगर तुम ये कहते हो के ये मेरे जद है तो फिर उनकी इतरत को तुमने क्यों क़त्ल किया !उनके खानदान को तुमने क्यों असीर कर लिया ! ए यज़ीद तू इन तमाम कामो के बावजूद मोहम्मद को पैग़म्बरे ख़ुदा जानता है और किबले की तरफ रुख करके खड़ा होता है नमाज़ पढ़ता है ! वाय हो तुझ पर के मेरे जद और पदर क़यामत मे तेरा गिरेबान पकड़ेंगे ! यज़ीद ने मोज़्ज़िन को हुक़्म दिया नमाज़ के लिए अक़ामत कहे लेकिन लोग बहुत नाराज़ थे ! यहाँ तक के कुछ लोगो ने नमाज़ तक नही पढ़ी और मस्जिद से निकल गए शाम मे इमाम अ० की तक़रीरे इस बात का सबब बनी की यज़ीद क़त्ले इमाम का इरादा रखने के बावजूद इस बात पर मजबूर हुआ के आपको और तमाम अहलेबैत को मदीना वापस करदे !
असीरी की तमाम मुद्दत मे इमाम ज़ैनुल आबेदीन अ० लोगो के तसव्वुर के बरख़िलाफ़ हर महफ़िलो मजलिस मे अपनी और अपने वालिद की कामयाबी और बनी उम्मैय्या के गिरोह की शिकस्त के बारे मे तक़रीर करते थे ! दूसरी तरफ आपने इस बात की कोशिश की के तकरीरों और अपने खानदान की अज़मतो और बनी उम्मैया के ज़ुल्मो सितम के बयान के ज़रिये लोगो की इन्क़लाबी फ़िक्र को उभारे ! अभी ज़्यादा दिन नही गुज़रे थे के इस रवैय्ये की वजह से उमवी सल्तनत के ख़िलाफ़ इराक़ और हिजाज़ मे इंक़लाब का परचम बलन्द हो गया और हज़ारो अफराद खूने हुसैन का इंतकाम लेने के लिए उठ खड़े हुए !
असीरी के दिन गुज़र जाने के बाद इमामे सज्जाद अ० मदीना वापस आ गए ! यज़ीद के मरते ही अब्दुल्ला बिन ज़ुबैर जो बरसो से ख़िलाफत की लालच मे था ! मक्के मे उठ खड़े हुए और हिजाज़ और यमन ,इराक़ और खुरासान के लोगो ने भी इनकी बैयत करली और शाम मे माविया बिन यज़ीद के हट जाने के बाद ख़िलाफत पर बैठे मरवान बिन हकम मसनदे ख़िलाफत पर बैठा और साज़िश के ज़रिये हुकूमत तक पंहुचा अब्दुल्ला बिन ज़ुबैर की मुख़ालेफ़त के लिए उठ खड़ा हुआ ! शाम के बाद मिस्र पर अपना कब्ज़ा मजबूत किया ! लेकिन इसकी हुकूमत ज़्यादा दिनों तक बाक़ी नही रही और थोड़ी ही मुद्दत मे मर गया ! इसकी जगह इसका बेटा अब्दुल मलिक बैठा ! इसने शाम और मिस्र मे अपनी पोज़ीशन मज़बूत बनाने के बाद 65 हिजरी मे अब्दुल्ला बिन ज़ुबैर को मक्के मे घेर कर क़त्ल कर दिया ! इसने लोगो को अज़ीयते पहुचाई खासकर शियाने अली को अपने हुकूमत के ज़माने मे तक़रीबन 1 लाख 20 हज़ार अफराद को क़त्ल कर डाला ! अब्दुल मलिक बड़ी सख़्ती से इमामे ज़ैनुल आबेदीन अ० की निगरानी करता था और इस कोशिश मे था आपके ख़िलाफ़ किसी भी तरीके से कोई बहाना हाथ आ जाये और वो आपकी तौहीन करे ! इसको जब ये इत्तेला मिली के इमामे ज़ैनुल आबेदीन अ० ने अपनी आज़ाद हुई कनीज़ से अक़्द कर लिया है ! तो इसने चाहा इस तरह से वो हज़रत को ये समझा दे के हम आपके तमाम कामो से बाख़बर है ! इसने अपनी क़राबतदारी को याद दिलाया तो इमाम अ० ने जवाब मे आईने इस्लाम को इस सिलसिले मे याद दिलाते हुए कहा के मुसलमान हो जाना और ख़ुदा पर ईमान लाना हमेशा दूसरे इमतियाज़ात को ख़त्म कर देता है ! 86 हिजरी मे अब्दुल मलिक के मरने के बाद इसका बेटा वलिद इसकी जगह पर बैठा एक तरफ तो इमामे ज़ैनुल आबेदीन अ० अपने ज़माने के बादशाहो के जुर्म को बर्दाश्त कर रहे थे ! और दूसरी तरफ ईमानदारो मुजाहिदो का ख़तरा महसूस कर रहे थे ! इसीलिए आपने अपने दरवाज़े को दुसरो के लिए बंद कर दिया ! इस तरह से आपने अपनी और अपनी कुछ क़ाबिले एतेेमाद असहाब की जान बचाली ! अबूउम्र नेहदी का बयान है इमामे ज़ैनुल आबेदीन अ० ने फ़रमाया मक्के और मदीने मे हमारे 20 दोस्त हक़ीक़ी और जानीसार भी नही है ! इसी तरह इमामे ज़ैनुल आबेदीन अ० का काम बेहद दुशवार हिम्मत का काम था ! आप इस आलम मे इस बात मे कामयाब हो गए के 170 शागिर्दों की तरबियत कर दे जिनमे से हर एक इस्लामी मुआशरे मे रोशन चिराग था ! जिन अफराद के नाम रिजाल की किताबो मे मौजूद है ! जैसे अबु हमज़ा सोमाली जैसी शख़्सियतो के नाम लिए जा सकते है ! इमामे ज़ैनुल आबेदीन अ० ने शागिर्दों की तरबियत के ज़रिये उमवी हुकूमत के दिलो मे एक मक़्सूस अज़मत पैदा करली ! यहाँ तक के एक हज के मोके पर जब आपका सामना अब्दुल मलिक बिन मरवान से हुआ तो नासिर्फ ये के आपने उसको सलाम नही किया बल्कि उसके चेहरे पर नज़र भी नही डाली ! अब्दुल मलिक इस बात पर नाराज़ हुआ इसने आहिस्ता से इमाम अ० के हाथ को पकड़ा और कहा ऐ अबु मोहम्मद मुझे देखिये मै अब्दुल मलिक हु ना के आपके बाप का क़ातिल यज़ीद ! इमाम अ० ने जवाब दिया मेरे बाप के क़ातिल ने अपनी आख़ेरत खराब करली अगर तू भी मेरे बाप के क़ातिल की तरह होना चाहता है तो कोई हर्ज नही है ! अब्दुल मलिक ने गुस्से मे कहा मै हरगिज़ ऐसा होना नही चाहता ! लेकिन मुझे इस बात की उम्मीद है के आप हमारे मसाइल से फायदा उठायंगे ! इमाम अ० ने जवाब मे फ़रमाया मुझे तुम्हारी दुनिया और जो कुछ तुम्हारे पास है उसकी कोई जरूरत नही !
इमामे ज़ैनुल आबेदीन अ० की कोशिश ये थी के आप इन्फ्रादी और इजतेमायी तरबियत और अक़ायद से मुताल्लिक़ मसायल को दुआ के ज़रिये फैलाये जो आपकी यादगार के तौर पर महफूज़ रह गयी है सहीफाये सज्जादिया और इसमें बयान की गयी बातो पर ग़ोरो फ़िक्र ने हमारे लिए बहुत से मसले रोशन किये है ! इस्लामी मुआशरे को इस किताब ने आलम की मालूमात ख़ुदा की मारेफ़त को पहचनवाया है इन हालात मे जब इमाम अ० को बयान और गुफ़्तुगू के आज़ादी मयस्सर नही थी तो आपने मुनाजात और दुआ के ज़रिये दस्तूरे अमल को मुसलमानो के लिए वाज़े किया !
सहीफाये सज्जादिया की अज़मत समझने के लिए मशहूर मिस्री का एक क़ोल ही काफी है ! वो कहते है के सहीफाये सज्जादिया वो तन्हा किताब है ! जिसमे उलूम और माआरिफ पर हिकमते मौजूद है इसके आलावा किसी किताब मे ऐसा ज़खीरा नही है !
इमामे ज़ैनुल आबेदीन अ० 57 साल तक मुसीबत बर्दाशत करने के बाद वालिद इब्ने अब्दुल मलिक के दौरे हुकूमत मे इसके हुक़्म से जिसने अपने ख़िलाफत और हुकूमत का महवर ज़ुल्मो सितम और क़त्ल के महोल बना रखा था ज़हर के ज़रिये 25 मुहर्रम 95 हिजरी को शहादत पायी ! इनके जिस्म को बक़ी मे इमामे हसने मुजतबा के क़ब्र के पहलू मे सुपुर्दे ख़ाक किये गए !
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