इस्लाम के तीसरे रहबर की और इन की औलादो असहाब की जाबाज़ी,फिदाकारी और शहादत आपकी जिंदगी का अहमतरीन वाकैया है। हुसैन इब्ने अली अ० की तहरीक़, करबला का ख़ून भरा वाक़ैया और इंक़लाब की तारीख भी रौशन गवाह है।
इमाम हुसैन अ० ने माविया के ज़माने में क़याम क्यों नहीं किया?
तमाम वह लोग और मसायल जिन्होंने इमाम हसन अ० को माविया से सुलह करने के लिए मजबूर किया वही इमाम हुसैन अ० के लिए भी क़याम से बाज़ रहने का सबब बने। इराक़ी मुआशरे पर हुकमरानों और हाकिमों कि हक़िकत को पहचानने में इमाम हुसैन अपने भाई इमाम हसन हुसैन कम ना थे। वह भी अपने भाई की तरह लोगों की काहिली और इस्लामी मुआशरे की अफसोसनाक हालत देख रहे थे इस वक्त आपने इराक़ के लोगों को क़याम करने के लिए उभारने के बजाए ऐसे मकसद के लिए आमादा किया।
इराक़ के शियों ने एक ख़त में इमाम हुसैन अ० से दरख्वास्त की के वह माविया के ख़िलाफ क़याम करने के सिलसिले में इनका साथ दें। इमाम हुसैन ने जवाब में लिखा:-
".....लेकिन मेरी राय यह है कि अभी इंकलाब का वक्त नहीं है जब तक माविया जिंदा है अपनी जगह बैठे रहो,अपने घर के दरवाजों को अपने लिए बंद रखो और अभी इंक़लाब से दूर रहो।"
माविया और यज़ीद की सियासत में फर्क:-
माविया के ज़माने में इमाम हुसैन अ० का इंक़लाब बरपा करने के लिए ना उठे और यज़ीद के ज़माने में उठ खड़े होने का असली सबब यह है कि माविया तमाम कामों में हक़ की रुख अपनी तरफ मोड़ लेना चाहता था और इमाम हसन अ० व इमाम हुसैन अ० का ज़ाहिर तौर पर एहतराम करता था। वह बहुत चालाक और दूरंदेश था उसे मालूम था कि हुसैन इब्ने अली का इंकलाब और लोगों को क़याम के लिए उभारना मेरी इस कामयाबी को जो मैंने सुलह इमाम हसन के बाद हासिल की थी,मुकम्मल तौर पर अगर खत्म भी नहीं करेंगे तो कम से कम कामयाबी का मज़ा खराब करके मुझे जंग में मुबतला कर देंगे। इस्लामी मुआशरे में हुसैन की अज़मत और इनके मर्तबे से माविया बख़ूबी वाक़िफ था।
अगर हुसैन इब्ने अली माविया के ज़माने में क़याम करते तो माविया ऐसी चाल चलता की इमाम हुसैन अ० के इंकलाब को अमली शक्ल देने से पहले ही ज़हर से शहीद कर दिया जाता और इस तरह माविया अपने को खतरे से बचा लेता जैसा कि हसन इब्ने अली अ०,साद इब्ने वक़ास और मालिके अशतर को क़त्ल करने मे उसने यही रवैया अपनाया था।
यज़ीद एक खुदगर्ज,फरेब करने वाला,लोगों पर जुल्म करने वाला और इस्लाम की मुकद्दस बातों को अपने पैरों के नीचे रौंदता था। अपनी ख्वाहिशों को पूरा करने के लिए किसी चीज़ से बाज़ नहीं आता था। वह दीने इस्लाम को नहीं मानता था मगर इस्लाम की बुनियाद पर लोगों पर हुकूमत करना चाहता था।
अपनी हुकूमत के पहले साल उसने हुसैन इब्ने अली अ० और उनके असहाब को शहीद किया,उनके अहलेबैत को असीर किया।
हुकूमत के दूसरे साल उसने पैगंबर अ० के शहर मदीने के लोगों के माल और नामूस को अपने लश्कर पर छोड़ दिया (कि वो मदीने के लोगों के साथ जैसा भी चाहैं वैसा सुलूक करें) और इस वाक़िये में 4000 आदमियों को उसने क़त्ल किया।
हुकूमत के तीसरे साल उसने ख़ान-ए-काबा, मुसलमानों के क़िबले पर पत्थर बरसाए और ख़ान-ए-काबा की बे- हुरमती की। ऐसे हालात में इमाम हुसैन अ० ने इंकलाब के लिए हालात को मुकम्मल तौर पर आमादा पाया क्योंकि ख़ान-ए-काबा पर पत्थर बरसाना दीनी हुकूमत के ख़िलाफ था इसलिए यह बात ख़ुद जायज़ थी कि हुसैन इब्ने अली अ० अपने सच्चे असहाब को जमा करें और हुकूमत के खिलाफ क़याम करें ऐसा क़याम जिसका मक़सद इस्लाम और सीरते पैगंबर को जिंदा करना था नाकी ख़िलाफत और क़ुदरत हासिल करना।
यज़ीद के लिए बैयत लेते वक्त इमाम की तक़रीरे:-
इमाम हुसैन अ० ने माविया के ज़माने में क़याम क्यों नहीं किया?
तमाम वह लोग और मसायल जिन्होंने इमाम हसन अ० को माविया से सुलह करने के लिए मजबूर किया वही इमाम हुसैन अ० के लिए भी क़याम से बाज़ रहने का सबब बने। इराक़ी मुआशरे पर हुकमरानों और हाकिमों कि हक़िकत को पहचानने में इमाम हुसैन अपने भाई इमाम हसन हुसैन कम ना थे। वह भी अपने भाई की तरह लोगों की काहिली और इस्लामी मुआशरे की अफसोसनाक हालत देख रहे थे इस वक्त आपने इराक़ के लोगों को क़याम करने के लिए उभारने के बजाए ऐसे मकसद के लिए आमादा किया।
इराक़ के शियों ने एक ख़त में इमाम हुसैन अ० से दरख्वास्त की के वह माविया के ख़िलाफ क़याम करने के सिलसिले में इनका साथ दें। इमाम हुसैन ने जवाब में लिखा:-
".....लेकिन मेरी राय यह है कि अभी इंकलाब का वक्त नहीं है जब तक माविया जिंदा है अपनी जगह बैठे रहो,अपने घर के दरवाजों को अपने लिए बंद रखो और अभी इंक़लाब से दूर रहो।"
माविया और यज़ीद की सियासत में फर्क:-
माविया के ज़माने में इमाम हुसैन अ० का इंक़लाब बरपा करने के लिए ना उठे और यज़ीद के ज़माने में उठ खड़े होने का असली सबब यह है कि माविया तमाम कामों में हक़ की रुख अपनी तरफ मोड़ लेना चाहता था और इमाम हसन अ० व इमाम हुसैन अ० का ज़ाहिर तौर पर एहतराम करता था। वह बहुत चालाक और दूरंदेश था उसे मालूम था कि हुसैन इब्ने अली का इंकलाब और लोगों को क़याम के लिए उभारना मेरी इस कामयाबी को जो मैंने सुलह इमाम हसन के बाद हासिल की थी,मुकम्मल तौर पर अगर खत्म भी नहीं करेंगे तो कम से कम कामयाबी का मज़ा खराब करके मुझे जंग में मुबतला कर देंगे। इस्लामी मुआशरे में हुसैन की अज़मत और इनके मर्तबे से माविया बख़ूबी वाक़िफ था।
अगर हुसैन इब्ने अली माविया के ज़माने में क़याम करते तो माविया ऐसी चाल चलता की इमाम हुसैन अ० के इंकलाब को अमली शक्ल देने से पहले ही ज़हर से शहीद कर दिया जाता और इस तरह माविया अपने को खतरे से बचा लेता जैसा कि हसन इब्ने अली अ०,साद इब्ने वक़ास और मालिके अशतर को क़त्ल करने मे उसने यही रवैया अपनाया था।
यज़ीद एक खुदगर्ज,फरेब करने वाला,लोगों पर जुल्म करने वाला और इस्लाम की मुकद्दस बातों को अपने पैरों के नीचे रौंदता था। अपनी ख्वाहिशों को पूरा करने के लिए किसी चीज़ से बाज़ नहीं आता था। वह दीने इस्लाम को नहीं मानता था मगर इस्लाम की बुनियाद पर लोगों पर हुकूमत करना चाहता था।
अपनी हुकूमत के पहले साल उसने हुसैन इब्ने अली अ० और उनके असहाब को शहीद किया,उनके अहलेबैत को असीर किया।
हुकूमत के दूसरे साल उसने पैगंबर अ० के शहर मदीने के लोगों के माल और नामूस को अपने लश्कर पर छोड़ दिया (कि वो मदीने के लोगों के साथ जैसा भी चाहैं वैसा सुलूक करें) और इस वाक़िये में 4000 आदमियों को उसने क़त्ल किया।
हुकूमत के तीसरे साल उसने ख़ान-ए-काबा, मुसलमानों के क़िबले पर पत्थर बरसाए और ख़ान-ए-काबा की बे- हुरमती की। ऐसे हालात में इमाम हुसैन अ० ने इंकलाब के लिए हालात को मुकम्मल तौर पर आमादा पाया क्योंकि ख़ान-ए-काबा पर पत्थर बरसाना दीनी हुकूमत के ख़िलाफ था इसलिए यह बात ख़ुद जायज़ थी कि हुसैन इब्ने अली अ० अपने सच्चे असहाब को जमा करें और हुकूमत के खिलाफ क़याम करें ऐसा क़याम जिसका मक़सद इस्लाम और सीरते पैगंबर को जिंदा करना था नाकी ख़िलाफत और क़ुदरत हासिल करना।
यज़ीद के लिए बैयत लेते वक्त इमाम की तक़रीरे:-
लालच और धमकी के ज़रिए माविया ने यज़ीद की वली अहदी के लिए अहम शख्सियतों के एक गिरोह को अपनी तरफ कर लिया था। जब हुसैन इब्ने अली अ० के सामने बात रखी गई तो आपने अपनी एक तक़रीर में फरमाया:-
"तुमने अपने बेटे के कमाल और तजुर्बेकारी के सिलसिले में जो तारीफ की,वह हमने सुनी,गोया तुम ऐसे आदमी के बारे में बात कर रहे हो जिसको तुम नहीं पहचानते या इस सिलसिले में सिर्फ तुमको इल्म है जैसा चाहिए था यज़ीद ने वैसा अपने को पेश किया और उसने अपने बातिन को आशकार कर दिया। वह कुत्तों और बंदरों से खेलने वाला शख्स है जिसने अपनी उम्र ऐशो इशरत में गुजारी है। क्या ही अच्छा होता कि तुम इस काम से परहेज़ करते और अपने गुनाहों के बोझ को और ना बढ़ाते।"
माविया के नाम इमाम हुसैन अ० का ख़त:-
इमाम हुसैन अ० ने एक खत माविया को लिखा और उनके बड़े-बड़े जुर्म को याद दिलाते हुए, जिन में परहेजगार बुजुर्ग और सालेह असहाब का क़त्ल और शाने अली का क़त्ल था,फरमाया:-
ऐ माविया तुम्हारा कहना है कि मैं अपनी रफ्तारो दीन और उम्मत-ए-मोहम्मद का ख्याल रखूं और इस उम्मत में इख़्तिलाफ़ व फितना पैदा ना करूं। मैं नहीं जानता की उम्मत के लिए तुम्हारी हुकूमत से बड़ा कोई फितना होगा। जब मैं अपने फरीज़े के बारे में सोचता हूं और अपने दीन और उम्मत-ए-मोहम्मद पर नज़र डालता हूं तो उस वक्त अपना अज़ीम फरीज़ा यह समझता हूं कि तुम से जंग करूं...।
फिर आख़िर में फरमाया:-
"तुम्हारे जुर्म में माफ़ी के नाकाबिल एक जुर्म यह है कि तुमने अपने शराब खोर और कुत्तों के खेलने वाले बेटे के लिए बैयत ली है।"
मनाम में इमाम हुसैन अ० की तक़रीर:-
माविया के हुकूमत के आखरी ज़माने में सर जमीन-ए-मनाअ पर 900 से ज्यादा अफराद के मजमे में,जिसमें बनी हाशिम और असहाबे रसूल में से बुज़ुर्ग शख्सियतें शामिल थी। इमाम हुसैन अ० मुल्क पर हुकूमत करने वाले निज़ाम के बारे में बहस की और उनसे यह ख्वाहिश की कि उनकी बातों को दूसरों तक पहुंचाएं और अपने शहरों में वापिस पहुंच जाने के बाद अपने नज़रिए से इमाम अ० को मुतालेआ करें। इमाम हुसैन अ० ने माविया को अपनी तनक़ीद का निशाना बनाते हुए अपनी तक़रीर का आग़ाज़ किया और मिल्लते इस्लामिया के ख़ासकर पैरवाने अली अ० के बारे में माविया ने जो जुर्म किए थे उनको याद दिलाया।
इराक़ की रवानगी से पहले इमाम हुसैन अ० की तक़रीर:-
ऐ माविया तुम्हारा कहना है कि मैं अपनी रफ्तारो दीन और उम्मत-ए-मोहम्मद का ख्याल रखूं और इस उम्मत में इख़्तिलाफ़ व फितना पैदा ना करूं। मैं नहीं जानता की उम्मत के लिए तुम्हारी हुकूमत से बड़ा कोई फितना होगा। जब मैं अपने फरीज़े के बारे में सोचता हूं और अपने दीन और उम्मत-ए-मोहम्मद पर नज़र डालता हूं तो उस वक्त अपना अज़ीम फरीज़ा यह समझता हूं कि तुम से जंग करूं...।
फिर आख़िर में फरमाया:-
"तुम्हारे जुर्म में माफ़ी के नाकाबिल एक जुर्म यह है कि तुमने अपने शराब खोर और कुत्तों के खेलने वाले बेटे के लिए बैयत ली है।"
मनाम में इमाम हुसैन अ० की तक़रीर:-
माविया के हुकूमत के आखरी ज़माने में सर जमीन-ए-मनाअ पर 900 से ज्यादा अफराद के मजमे में,जिसमें बनी हाशिम और असहाबे रसूल में से बुज़ुर्ग शख्सियतें शामिल थी। इमाम हुसैन अ० मुल्क पर हुकूमत करने वाले निज़ाम के बारे में बहस की और उनसे यह ख्वाहिश की कि उनकी बातों को दूसरों तक पहुंचाएं और अपने शहरों में वापिस पहुंच जाने के बाद अपने नज़रिए से इमाम अ० को मुतालेआ करें। इमाम हुसैन अ० ने माविया को अपनी तनक़ीद का निशाना बनाते हुए अपनी तक़रीर का आग़ाज़ किया और मिल्लते इस्लामिया के ख़ासकर पैरवाने अली अ० के बारे में माविया ने जो जुर्म किए थे उनको याद दिलाया।
इराक़ की रवानगी से पहले इमाम हुसैन अ० की तक़रीर:-
8वी ज़िलहिज को इराक़ रवानगी से पहले इमाम हुसैन अ० ने लोगों के एक मजमे में हज से बाज़ रहने और इराक़ की तरफ जाने की तशरीह की और फरमाया:-
"एक दुल्हन के गले के हार की तरह मौत इंसान की गर्दन से बंधी हुइ है। मैं अपने बुजुर्गों का इस तरह मुश्ताक़ हूं जिस तरह याक़ूब यूसुफ के मुश्ताक़ थे। मैं यहीं से उस जगह का मुशाहेदा कर रहा हूं,जहां में शहादत पाऊंगा और बयांबानी भेड़िए मेरे बदन के टुकड़े-टुकड़े कर देंगे।"
फिर फरमाते हैं:-"जो लोग इस रास्ते में ख़ून देने और ख़ुदा से मुलाक़ात करने के लिए आमादा है वह मेरे साथ आएं मैं इंशाअल्लाह सुबह सवेरे रवाना हो जाऊंगा।"
अमवियों के झूठे दीन को खत्म करना:-
अमवीयीन यह दिखाने के लिए के वह पैगंबर के जानशीन हैं और उनकी हुकुमत खुदा के अहकाम के मुताबिक़ है लोगों के दीनी अक़ायद से फायदा हासिल कर रहे थे और इनका मक़सद था के हर तरह की तहरीक से पहले मज़म्मत की जाए और दीन के नाम पर अपने लिए इस हक़ से कायल हो जाएं। इसलिए वह ज़बाने पैगंबर से मंसूब झूठी हदीसों के ज़रिए लोगों को धोखा देते इस तरह लोगों का हुकूमत अमवी पर ऐसा ईमान हो गया था कि वह लोग दीन से चाहे जितने भी खारिज क्यों ना हो जाएं फिर भी लोग अमवी हुकूमत के खिलाफ क़याम को हराम समझते थे।
अमवियो ने अपने कसीफ आमाल पर किस हद तक दीन का पर्दा डाल रखा था इसका वाज़ेह (साफ दिखाने) करने के लिए हम यहां इंक़लाबे हुसैनी अ० से 2 तारीख के नमूने नक़ल कर रहे हैं:-
"एक दुल्हन के गले के हार की तरह मौत इंसान की गर्दन से बंधी हुइ है। मैं अपने बुजुर्गों का इस तरह मुश्ताक़ हूं जिस तरह याक़ूब यूसुफ के मुश्ताक़ थे। मैं यहीं से उस जगह का मुशाहेदा कर रहा हूं,जहां में शहादत पाऊंगा और बयांबानी भेड़िए मेरे बदन के टुकड़े-टुकड़े कर देंगे।"
फिर फरमाते हैं:-"जो लोग इस रास्ते में ख़ून देने और ख़ुदा से मुलाक़ात करने के लिए आमादा है वह मेरे साथ आएं मैं इंशाअल्लाह सुबह सवेरे रवाना हो जाऊंगा।"
अमवियों के झूठे दीन को खत्म करना:-
अमवीयीन यह दिखाने के लिए के वह पैगंबर के जानशीन हैं और उनकी हुकुमत खुदा के अहकाम के मुताबिक़ है लोगों के दीनी अक़ायद से फायदा हासिल कर रहे थे और इनका मक़सद था के हर तरह की तहरीक से पहले मज़म्मत की जाए और दीन के नाम पर अपने लिए इस हक़ से कायल हो जाएं। इसलिए वह ज़बाने पैगंबर से मंसूब झूठी हदीसों के ज़रिए लोगों को धोखा देते इस तरह लोगों का हुकूमत अमवी पर ऐसा ईमान हो गया था कि वह लोग दीन से चाहे जितने भी खारिज क्यों ना हो जाएं फिर भी लोग अमवी हुकूमत के खिलाफ क़याम को हराम समझते थे।
अमवियो ने अपने कसीफ आमाल पर किस हद तक दीन का पर्दा डाल रखा था इसका वाज़ेह (साफ दिखाने) करने के लिए हम यहां इंक़लाबे हुसैनी अ० से 2 तारीख के नमूने नक़ल कर रहे हैं:-
1 - इब्ने ज़ियाद ने लोगों को मुस्लिम अ० की मदद करने से रोकने के लिए जो खुतबा दिया उसने उसने कहा:-
ख़ुदा और अपने पेशवा (आइम्मा) की इताअत करो।
ख़ुदा और अपने पेशवा (आइम्मा) की इताअत करो।
2 - अमरू बिन हज्जाज ज़ुबैदी-करबला में अमवी सिपाह के कमांडरों में से एक कमांडर ने जब देखा के कुछ सिपाही इमाम हुसैन अ० से मिलकर इनके रकाब में जंग कर रहे हैं तो उसने चिल्लाकर कहा:-
"ऐ अहले कूफा! अपने अमीर की इताअत करो और जमात के साथ रहो और उस को कत्ल करने के सिलसिले में अपने दिल में कोई शक ना आने दो जो दीन से ख़ारिज हो गया और जिसने इमाम की मुख़ालिफत की।"
ऐसे माहौल में नकली दीनी नफ़ूज़ को खत्म करने के लिए सबसे ज्यादा इत्मीनानी बख्श रास्ता यह था कि कोई ऐसा शख्स इसके खिलाफ क़याम करें जो तमाम अफरादे मिल्लत की नज़र में मुसल्लम दीनी इम्तियाज़ात का हामिल हो ताकि हुकूमतें अमवी के झूठे चेहरे से दीनी नक़ाब उतार कर फेंक दें और उस की गंदी माहियात को आशकार करदे।
ऐसा मुजाहिद फीसबीलिल्लाह हुसैन इब्ने अली अ० के और कोई दूसरा ना था,इसलिए कि आपका दूसरों के दिलों में नफूज़ो महबूबियत और खास अहतराम था इंकलाबे हुसैनी के बिल मुकाबिल यज़ीद के रद्दे अमल ने इस्लाम और अमवी हुकूमत के दरमियान हद फासिल खींच दी और अमवी हुकूमत की हक़ के खिलाफ माहियत को रोशन कर दिया जो मज़ालिम बनी उमय्या ने हुसैन अ०,उनके असहाब और उनके अहलेबैत पर ढाए थे । उसकी वजह से इनके वह सारे दीनी और मज़हबी रंग मुकम्मल तौर पर उड़ गए जो उन्होंने अपने ऊपर चढ़ा रखे थे और इस काम मे उनके मुख़ालिफ दीन माहियत को आशकार कर दिया।
हुसैन इब्ने अली अ० ने अपनी मख़सूस रोश से अमवियों की दीनी पॉलिसी को खतरे में डाल दिया उन्होंने जंग शुरू करने के लिए इसरार नहीं किया और अमवियों को इस बात की फुर्सत भी दी कि वह इनको(इमाम हुसैन अ०) और इनके असहाब को क़त्ल करने से गुरेज़ करें ( क़त्ल ना करें) लेकिन उन लोगों को हुसैन अ० और उनके असहाब का खून बहाने के अलावा और कुछ नहीं मंजूर था और यही बात अमवियों की ज्यादा से ज्यादा रुसवाई का बाइस बनी।
उन्होंने हुसैन अ० के साथ सख्ती से काम लेकर दर हकीकत इस्लाम से जंग की और हुसैन इब्ने अली अ० ने भी इस बात से मुनासिब फायदा उठाया और हर मुनासिब मौक़े पर इस नुख्ते पर तकिया किया और अपनी दरख्शा मोक़िफ को मुसलमानों के सामने पेश किया।
"ऐ अहले कूफा! अपने अमीर की इताअत करो और जमात के साथ रहो और उस को कत्ल करने के सिलसिले में अपने दिल में कोई शक ना आने दो जो दीन से ख़ारिज हो गया और जिसने इमाम की मुख़ालिफत की।"
ऐसे माहौल में नकली दीनी नफ़ूज़ को खत्म करने के लिए सबसे ज्यादा इत्मीनानी बख्श रास्ता यह था कि कोई ऐसा शख्स इसके खिलाफ क़याम करें जो तमाम अफरादे मिल्लत की नज़र में मुसल्लम दीनी इम्तियाज़ात का हामिल हो ताकि हुकूमतें अमवी के झूठे चेहरे से दीनी नक़ाब उतार कर फेंक दें और उस की गंदी माहियात को आशकार करदे।
ऐसा मुजाहिद फीसबीलिल्लाह हुसैन इब्ने अली अ० के और कोई दूसरा ना था,इसलिए कि आपका दूसरों के दिलों में नफूज़ो महबूबियत और खास अहतराम था इंकलाबे हुसैनी के बिल मुकाबिल यज़ीद के रद्दे अमल ने इस्लाम और अमवी हुकूमत के दरमियान हद फासिल खींच दी और अमवी हुकूमत की हक़ के खिलाफ माहियत को रोशन कर दिया जो मज़ालिम बनी उमय्या ने हुसैन अ०,उनके असहाब और उनके अहलेबैत पर ढाए थे । उसकी वजह से इनके वह सारे दीनी और मज़हबी रंग मुकम्मल तौर पर उड़ गए जो उन्होंने अपने ऊपर चढ़ा रखे थे और इस काम मे उनके मुख़ालिफ दीन माहियत को आशकार कर दिया।
हुसैन इब्ने अली अ० ने अपनी मख़सूस रोश से अमवियों की दीनी पॉलिसी को खतरे में डाल दिया उन्होंने जंग शुरू करने के लिए इसरार नहीं किया और अमवियों को इस बात की फुर्सत भी दी कि वह इनको(इमाम हुसैन अ०) और इनके असहाब को क़त्ल करने से गुरेज़ करें ( क़त्ल ना करें) लेकिन उन लोगों को हुसैन अ० और उनके असहाब का खून बहाने के अलावा और कुछ नहीं मंजूर था और यही बात अमवियों की ज्यादा से ज्यादा रुसवाई का बाइस बनी।
उन्होंने हुसैन अ० के साथ सख्ती से काम लेकर दर हकीकत इस्लाम से जंग की और हुसैन इब्ने अली अ० ने भी इस बात से मुनासिब फायदा उठाया और हर मुनासिब मौक़े पर इस नुख्ते पर तकिया किया और अपनी दरख्शा मोक़िफ को मुसलमानों के सामने पेश किया।
2 - अहसासे गुनाह
इंकलाबे हुसैन का दूसरा असर खुसूसन उसका अहततामी नुख्ता तमाम अफराद में अहसासे गुनाह का पैदा करना और ज़मीर की बेदारी थी जिसके बाद वह आपकी मदद करने के लिए दौड़ पड़े,लेकिन नहीं आए। इस एहसासे गुनाह के दो पहलू हैं,एक तरफ यह एहसास,गुनाहगार को अपने जुर्म व गुनाह के जबरान पर उभारता है और दूसरी तरफ ऐसे गुनाहों के इर्तकाब का सबब बनने वालों के लिए लोगों के दिलों में नफरत और अदावत पैदा करता है।
ज़मीर की बेदारी और गुनाहों का एहसास ही था जिसने इंकलाबे हुसैन अ० के बाद,बहुत सी इस्लामी जमीयतों को,अमवियों के बारे में लोगों के दिलों में ज्यादा से ज्यादा नफरत और अदावत पैदा की। इस वजह से अमवियों को वाक़िया-ए-करबला के बाद मुताअद्दद इंकलाब का सामना करना पड़ा। इंकलाबी अफराद का अमवियो की मदद करने से इनकार और इनसे इंतकाम लेने का जज़्बा था।
इंकलाबे हुसैन का दूसरा असर खुसूसन उसका अहततामी नुख्ता तमाम अफराद में अहसासे गुनाह का पैदा करना और ज़मीर की बेदारी थी जिसके बाद वह आपकी मदद करने के लिए दौड़ पड़े,लेकिन नहीं आए। इस एहसासे गुनाह के दो पहलू हैं,एक तरफ यह एहसास,गुनाहगार को अपने जुर्म व गुनाह के जबरान पर उभारता है और दूसरी तरफ ऐसे गुनाहों के इर्तकाब का सबब बनने वालों के लिए लोगों के दिलों में नफरत और अदावत पैदा करता है।
ज़मीर की बेदारी और गुनाहों का एहसास ही था जिसने इंकलाबे हुसैन अ० के बाद,बहुत सी इस्लामी जमीयतों को,अमवियों के बारे में लोगों के दिलों में ज्यादा से ज्यादा नफरत और अदावत पैदा की। इस वजह से अमवियों को वाक़िया-ए-करबला के बाद मुताअद्दद इंकलाब का सामना करना पड़ा। इंकलाबी अफराद का अमवियो की मदद करने से इनकार और इनसे इंतकाम लेने का जज़्बा था।
3 - रूहे जिहाद की बेदारी
हुसैन इब्ने अली अ० की शहादत के बाद जंगो मुबारेज़ा की रूह उम्मते इस्लामी में जाग उठी और इमाम हुसैन अ० के इंकलाब में,इंकलाब करने में आने वाली सारी रुकावटों को तोड़ दिया और इस्लाम के पैकर में एक नई रूह फूंक दी।
हुसैन इब्ने अली अ० के इंक़लाब के बाद बहुत सी ऐसी तहरीके वजूद में आई जिनको इस्लामी मुआशरे के अफराद की हिमायत हासिल हुई।
जिनमे हम कुछ तहरीकों मे से चंद का ज़िक्र करेंगे:-
हुसैन इब्ने अली अ० की शहादत के बाद जंगो मुबारेज़ा की रूह उम्मते इस्लामी में जाग उठी और इमाम हुसैन अ० के इंकलाब में,इंकलाब करने में आने वाली सारी रुकावटों को तोड़ दिया और इस्लाम के पैकर में एक नई रूह फूंक दी।
हुसैन इब्ने अली अ० के इंक़लाब के बाद बहुत सी ऐसी तहरीके वजूद में आई जिनको इस्लामी मुआशरे के अफराद की हिमायत हासिल हुई।
जिनमे हम कुछ तहरीकों मे से चंद का ज़िक्र करेंगे:-
1 - शहादते हुसैनी का पहला रास्ता रद्दे अमल पैगंबर के एक सहाबी सुलेमान बिन सर्द की क़यादत में इंकलाब,तव्वाबीन के नाम से शहरे कूफा में ज़ाहिर हुआ। इस तहरीक में बुजुर्ग शियो और अमीरुल मोमिनीन अ० के असहाब में से एक गिरोह ने शिरकत की।
तव्वाबीन की तहरीक 61 हिजरी से शुरू हुई और यज़ीद की जिंदगी तक पोशीदा तौर पर लोगों को ख़ूने हुसैन का बदला लेने के लिए दावत देती रही। इन लोगों ने यज़ीद के मरने के बाद एहतियात और पोशीदगी को खत्म कर दिया और ऐलानिया तौर पर हथियार और लश्कर जमा करके आमादा कारज़ार हो गए। इनका नारा "या सारातुल्लाउल हुसैन अ०" था, इनके क़याम का जोश यूं था। इससे इनकी पाक दामनी और अख़लास का पता चलता था।
तव्वाबीन की तहरीक 61 हिजरी से शुरू हुई और यज़ीद की जिंदगी तक पोशीदा तौर पर लोगों को ख़ूने हुसैन का बदला लेने के लिए दावत देती रही। इन लोगों ने यज़ीद के मरने के बाद एहतियात और पोशीदगी को खत्म कर दिया और ऐलानिया तौर पर हथियार और लश्कर जमा करके आमादा कारज़ार हो गए। इनका नारा "या सारातुल्लाउल हुसैन अ०" था, इनके क़याम का जोश यूं था। इससे इनकी पाक दामनी और अख़लास का पता चलता था।
2 - इंकलाब तव्वाबीन के बाद इंकलाबे मदीना शुरू हुआ हज़रत जैनबे कुबरा सलामुल्लाह अलैहा मदीने वापिसी के बाद इंकलाब की कोशिश करती रहीं,इस तरह के मदीने में यज़ीद का मुकर्रर किया गया हाकीम मदीने के हालात के खराब होने से खौफजदा हो गया और जनाबे ज़ैनब सलामुल्लाह अलैहा की रिपोर्ट उसने यज़ीद को भेजी यज़ीद ने जवाब में लिखा के"लोगों के साथ ज़ैनब स० जो राबता क़ायम कर रही हैं उसको मुनक़ता कर दो।"
इसी ज़माने में अहले मदीना की नुमाइंदगी करते हुए एक शख्स शाम पहुंचा और वापस आने के बाद उसने पहले मदीना के मजमे मैं तक़रीर की और यज़ीद पर इन लोगों ने तनक़ीद की,इन की रौशनी फैला देने वाली तरीरों के बाद अहले मदीना ने क़याम किया,यज़ीद के गवर्नर को इन लोगों ने मदीने से निकाल दिया। यज़ीद के हुक्म से शाम की ख़ून की प्यासी सिपाह ने शहर मदीने पर हमला कर दिया और निहायत सख्ती और ख़बासत के साथ उसने क़यामे मदीने को कुचल डाला और लश्कर के सिपहसालार ने 3 दिन तक मदीने के मुसलमानों की जान,माल और इज्ज़तो आबरु को अपने सिपाहियों के हाथ में छोड़ दिया।
इसी ज़माने में अहले मदीना की नुमाइंदगी करते हुए एक शख्स शाम पहुंचा और वापस आने के बाद उसने पहले मदीना के मजमे मैं तक़रीर की और यज़ीद पर इन लोगों ने तनक़ीद की,इन की रौशनी फैला देने वाली तरीरों के बाद अहले मदीना ने क़याम किया,यज़ीद के गवर्नर को इन लोगों ने मदीने से निकाल दिया। यज़ीद के हुक्म से शाम की ख़ून की प्यासी सिपाह ने शहर मदीने पर हमला कर दिया और निहायत सख्ती और ख़बासत के साथ उसने क़यामे मदीने को कुचल डाला और लश्कर के सिपहसालार ने 3 दिन तक मदीने के मुसलमानों की जान,माल और इज्ज़तो आबरु को अपने सिपाहियों के हाथ में छोड़ दिया।
इसके बाद 67 हिजरी में मुख्तार इब्ने उबैदा सक़फी अ० ने इराक़ में इंकलाब बरपा किया और ख़ूने हुसैन अ० का इंतक़ाम लिया।
इस तरह मुख्तलिफ तहरीके और इंकलाबात एक दूसरे के बाद रूनुमा होते रहे । यहां तक के बनी उम्मैया के ख़ातमें पर यह सिलसिला ख़त्म हुआ।
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