इमाम जाफ़रे सादिक़ अ० की ज़िन्दगी से जुडी कुछ बाते ।

हमारे छठे इमामे जाफ़रे सादिक़ 17 रबिउलव्वल को अपने जद रसूले ख़ुदा की विलादत के दिन 86 हिजरी मे मदीने मे पैदा हुए आपकी कुनियत अबु अब्दुल्ला और मशहर लक़ब सादिक़ है ! आपकी मादरे ग्रामी का नाम उम्मे फरवाह बिन्ते कासीम है आपकी उम्र 65 साल की थी बारह साल आपने आपमे जद इमामे ज़ैनुल आबेदीन की आगोशे मोहब्बत मे और 19 साल अपने पदरे ग्रामी मोहम्मद बाक़िर के साथ गुज़ारी !आपकी इमामत का ज़माना 34 साल 114 हिजरी से 148 हिजरी तक रहा इमाम अ० ने अपनी ज़िन्दगी का आधा ज़माना अपने जद्दे बुजुर्गवार और पदर की तरबियत मे गुज़ारा ! आप बचपन जस ही रन्जो मसायब के साथ ग़मज़दा खानदान मे पल कर बड़े हुए आपके खानदान जैसा कोई ही घराना मिलेगा जिसने इतने मसायब को देखा हो !
इमामे हुसैन और उनके असहाब की शाहदत मासूम बच्चों और अहलेबैते रसूले ख़ुदा के अश्को ने इमामे सज्जाद अ० के खानदान के तमाम अफराद को रन्जो ग़म में मुब्तला कर रखा था ! आप बहुत क़रीब से देख रहे थे के आपके जद और पदर के एक एक अमल की और आपके घर आने जाने वाले लोगो की दुश्मन निगरानी कर रहे थे और ये भी देख रहे थे के आपके असहाब कितनी ज़हमत और दुष्वारी के साथ आपसे मुलाकात कर पाते ! इमामे जाफ़रे सादिक़ अ० इस्लामी अख़लाक़ और इंसानी फ़ज़ायल का मुकम्मल नमूना थे ! जैसा के आपने खुद अपने पैरोकारों से फ़रमाया लोगो को बग़ैर जुबान के यानि अपने अमल से दावत दो ! ज़िन्दगी के तमाम पहलुओ मे इस्लाम की रौशनी का दर्स पहुँचाने के लिए आपकी पूरी ज़िन्दगी वक़्फ़ थी ! अबु जफ़र नक़्ल करते है के इमामे जाफ़रे सादिक़ अ० ने एक थैली मे जिसमे 50 दिनार थे एक शख़्स को देने के लिए मुझे भेजा और आपने कहा के मेरा नाम मत बताना जब मेने थैली उस आदमी को दी तो उसने शुक्रिया अदा किया और कहा ये किसकी तरफ से इमदाद आई है वो कोण शख़्स है जो चन्द दिनों के बाद एक बार ये इमदाद मेरे पास भेज देता है जिससे एक साल का मेरा खर्च चल जाता है ! लेकिन इसको इमामे सादिक़ अ० से गिला था के आप कुदरत रखते हुए भी हमारी मदद् नही करते इमामे जाफ़रे सादिक़ अ० की अज़मत और शख़्सियत को नुमाया करने के लिए इतना ही काफी है के आप का सख्तरीन दुश्मन मसरूर दवान्ति को जब आपकी ख़बरे शहादत मिली तो उसने बहुत गिरिया किया मालिक इब्ने अनस जो अहले सुन्नत के चार इमामो मे से एक है फरमाते है के जाफ़र इब्ने मोहम्मद के जैसा ना किसी आँख मे देखा और ना किसी कान मे सुना आप इल्म इबादत परहेज़गारी के एतेबार से सबसे अफज़ल थे !
इमामे जाफ़रे सादिक़ अ० की इल्मी शख़्सियत भी बहुत थी अबु हनीफा अहले सुन्नत मे से एक इमाम थे फरमाते है मेने जाफ़र इब्ने मोहम्मद से ज़्यादा फक़ी किसी को नही देखा एक दिन मन्सूर के हुक़्म के मुताबिक मेने 40 फ़िक़ही मसायल तैयार किये ताकि ख़ालिफा के सामने किसी जलसे मे आपसे सवाल करू सवालात हो जाने के बाद इमामे जाफ़रे सादिक़ अ० ने उनमे से एक एक सवाल के इक़्तेलाफ के बारे मे ऐसा क़ामिल जवाब दिया के सबने एतराफ़ कर लिया आप सबसे ज़्यादा इल्म और आगही रखते थे !
इमामे जाफ़रे सादिक़ अ० ने 114 हिजरी मे उम्मत की रहबरी संभाली उस वक़्त बनी उम्मैया के और बनी अब्बास के चन्द ख़ालिफा थे ! बनी उम्मैया मे से हैशशाम इब्ने मलिक ,वलिद इब्ने यज़ीद,यज़ीद इब्ने वलिद,इब्राहिम इब्ने वलिद और मरवान बनी अब्बास मे से अबुल अब्बास सफ्फ़ा और मन्सूर दवान्ति आपके हमअस्र थे !
40 हिजरी को इमाम अली अ० की शहादत के बाद हुक़ूमत माविया के हाथो मे आई और 132 हिजरी तक रही ।
तक़रीबन 1 सदी तक उमूवियो की हुक़ूमत तारीख़े इस्लाम मे सियाह हुक़ूमत थी इस ज़माने मे इस्लाम और मुस्लमान बनी उम्मैया के हाथो का खिलौना थे मुस्लमान खास कर खानदाने नबूवत सख़्ती और घुटन मे ज़िन्दगी बसर करते थे । कर्बला के क़त्ले आम के बाद भी बहुत से बुज़ुर्ग शिया और अल्वियो को अहलेबैत अ० के तरफदार होने के जुर्म मे या तो क़त्ल कर दिया गया या कई साल तक तारीख़ी क़ैदखानो मे बहुत ही बुरी हालत मे रखा जाता ।
वलीद इब्ने अब्दुल मलिक ने हुक़ूमत हसिल करने के बाद पहली तक़रीर मे कहा जो भी हमारे सामने सरकशी करेगा हम उसको क़त्ल कर देंगे ।
बनी उम्मैया ख़ुदा से ग़ाफिल थे तारीख़ मे ख़ानदाने बनी उम्मैया के ख़िलाफ ईरान, इराक़ और शुमाली अफ्रीका के मुस्लमान के क़याम के असबाब बहुत फेले हुए है हम यहाँ 3 वजह को बयान कर रहे है ।
1 - आइम्म्मा का मुसलसल जिहाद और उनकी फैलाई रौशनी:-
इमामे जाफ़रे सादिक़ अ० ने अपनी पूरी ज़िन्दगी उन बरसो मे भी के जब बनी उम्मैया की हुक़ूमत थी और आप पर सख़्त निगरानी थी लेकिन आप ज़ुल्मो सितम से जंग मे मशगूल रहते थे हैशशाम की हुक़ूमत के दौर मे जब आप अपने पदर अ० के साथ हज करने के लिए गए तो आपने हज्जाज के अज़ीम मजमे मे तक़रीर की और इस तक़रीर मे इमामत और अहलेबैत के बारे मे फ़रमाया:-
हम्द और शुक्र उस ख़ुदा का जिसने मोहम्मद को हक़ के साथ और हमको उनके ज़रिये और हमको उनके ज़रिये करामात बख़्शी हम लोगो के दरमियान ख़ुदा के चुने हुए बन्दे है निजात वो पायेगा जो हमारा पैरोकार होगा और बदनसीब वो है जो तुमसे दुश्मनी रखता हो कुछ लोग ज़ुबान से दोस्ती का इज़हार करते है लेकिन दिल से हमारे दुश्मन के दोस्त है ।
इस तक़रीर की वजह से हशशाम ने हाकिमे मदीना को हुक़्म दिया के इन लोगो को शाम भेज दो और इमामे जाफ़रे सादिक़ अ० और इमाम मौ० बाकिऱ अ० दमिश्क़ पहुँचे और उमवी खलीफाओं का बर्ताव देखा ।
2 - इकतिसादी दबाव:-
अमवी ख़लीफा जिन्होंने लोगो को मजबूर किया, किसान और खेती करने वालो को कि क़ानूनी टैक्स दे और इस को क़ानूनी शक्ल देने वाला पहला ख़लीफा माविया था और सिर्फ कूफा और उसके ऐतराफ के 1 साल का हदिया 13 मिलियन दिरहम से ज़्यादा था। इसी से अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि और दूसरी जगह जैसे हरात, ख़ुरासान वग़ैरा का हदिया कितना रहा होगा। तमाम जगहों की बुरी हालत थी ख़ासकर इराक़,जो बनी उम्मैया के बड़े-बड़े मालदारो की जगह थी। उमर बिन अब्दुल अज़ीज़ के ज़माने में कुछ दबाव कम हुए लेकिन इस के बाद फिर वही सूरते हाल पैदा हो गया।
3 - ग़ैरे अरब को नज़र अंदाज़ करना:-
बनी उम्मैया की हुकूमत अरबियत पर क़ायम थी। उन्होने तमाम अहद अरब को दे रखे थे और इस्लाम के दूसरे गिरोहो को मवाली कहते थे ना सिर्फ यह कि उनको हुकूमत से दूर रखते थे बल्कि उन को नीची नज़रों से देखते थे,जो ग़ैरे अरब था उसको बसरा से निकाल दिया गया।
1 दिन माविया इन लोगों (यानी ग़ैर अरब) की बढ़ती हुई तादाद से गुस्से मे आया और उस ने इरादा किया कि इन सब को मार डाले लेकिन अहनाफ ने उस को रोक दिया इन्ही वजह से हंगामे बरपा हुए और सब लोग यह बात समझ गए कि उमुवियों का मक़सद सिर्फ हाकिम बनना और लोगो पर हुकूमत चलाना है और तमाम लोगो ने एक साथ मिलकर इंक़लाब बरपा किया और इस तरह से बनी उम्मैया की हुकूमत का ख़ात्मा हुआ।
बनी अब्बास जनाबे अब्दुल मुत्तलिब  इब्ने अब्बास पैग़ंबर अ० की चचा की औलाद मे से थे उन्होने शुरू मे सय्यादुश शौहदा के ख़ून के इंतेक़ाम और ख़ुशनूदिये आले मुहम्मद अ० के नाम और उमुवियों के ज़ुल्मो सितम से निमटने के नाम ,लोगो को जमा किया। इरानी जो औलादे अली अ० से मोहब्बत करते थे,उनसे फायदा उठाया और उन्होने बनी उम्मैया से जंग की ताकि उमुवियों से हुकूमत ले कर उसको दे जो इसका हक़दार है। बनी अब्बास ने लोगो की मदद से बनी उम्मैया को दरमियान से निकाल तो दिया मगर हुकूमत को इमामे वक़्त जाफर इब्ने मुहम्मद अ० के हवाले करने के बजाए ख़ुद ही क़ब्ज़ा कर लिया। यह लोग अच्छी तरह से जानते थे कि यह इस मंसब के लायक़ नही है इसलिए उन्होने शुरू ही मे पुराने ज़ालिमो की तरह लोगो पर ज़ुल्मो सितम और उन पर दबाव डालना शुरू कर दिया।
बनी अब्बास के पहले खलीफा सफ्फान ने 4 साल और दूसरे खलीफा मंसूर ने 22 साल तक यानी इमाम जाफर सादिक़ अलैहिस्सलाम की शहादत के 10 साल बाद तक हुकूमत को अपने हाथों में रखा।
इमाम अलैहिस्सलाम ने इन तमाम मुद्दत मे खासकर मंसूर के दौरे हुकूमत मे बड़ी दुश्वारी मे ज़िंदगी गुजारी। जब मंसूर ने चाहा कि आपको एक ख़त के ज़रिए नसीहत करे,तो आप ने उसके जवाब मे लिखा कि "जो दुनिया को चाहता है वह तुम को नसीहत नही कर सकता और जो आख़िरत को चाहता है वह तुम्हारे हम नशीन नही हो सकता।"
एक दिन मंसूर के चेहरे पर एक मक्खी बार-बार बैठ जाती थी मंसूर ने गुस्से मे आकर इमाम अलैहिस्सलाम से पूछा कि ख़ुदा ने मक्खी को क्यों पैदा किया है? तो इमाम अलैहिस्सलाम ने फरमाया:  ताके जाबिर लोगो को ज़लील और रुसवा कर सके।
इमाम अलैहिस्सलाम ने हर सूरत मे तमाम मुश्किलो का सामना करके बनी अब्बास के असली चेहरे को लोगो के सामने ज़ाहिर कर दिया।
जाबिर इब्ने यज़ीद नक़ल करते हैं कि:- किसी ने इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम से उनके बाद क़याम करने वाले का नाम पूछा तो इमाम अलैहिस्सलाम ने  अबू अब्दुल्लाह (इमाम जाफर सादिक़ अलैहिस्सलाम) के शाने पर हाथ रखा ,और फरमाया-"यह है आले मोहम्मद का क़याम करने वाला।"
इमाम जाफर सादिक़ अलैहिस्सलाम ने इस्लामी तहरीक करते ही उसको आख़री मरहले तक पहुंचाया और आप से पहले दो इमाम (इमाम ज़ैनुल आबेदीन अ० और इमाम मोहम्मद बाक़िर अ०) ने इस पहले मरहले को पूरा किया और अब छठे इमाम अ० की बारी थी आख़री क़दम उठाएं और उसको अंजाम तक पहुंचाएं।
शहादत:-
मंसूर ज़ालिम बनी अब्बास मे से था इस ने इमाम अ० को पूरी ज़िंदगी अपनी निगरानी मे रखा,जासूस मोऐय्यन किए फिर भी आप के वजूद को मुआशरे मे बरदाश्त ना कर सका और इस ने आप को ज़हर देने का इरादा किया।
इमाम जाफ़रे सादिक़ अ० 25 शव्वाल 148 हिजरी को 65 साल की उर्म मे मंसूर के ज़रिए ज़हर से शहीद हुए। आप के जिस्मे अक़दस को आप के पदरे गिरामी के पहलू मे बक़ी मे सुपुर्द-ए-खाक किया गया।

No comments:

Post a Comment

Husaini tigers72

19,21,23 Ramzan shabe qadar (Amal-e-shab-e-qadar)

 *आमाल 19,21,23वीं रमज़ान शबे कद्र,* *1:-वक्त गुरूबे आफताब गुस्ल ताकि नमाज़ मगरिब गुस्ल की हालत मे हो,* *2:-दो रकात नमाज़ जिसमे 1 बार...