जनाबे फ़ातिमा ज़ेहरा स० की ज़िन्दगी से जुडी कुछ बाते ।

जनाबे फ़ातिमा ज़ेहरा स० की विलादत 20 जमादिउस्सानी बा रोज़े जुमा बेसते पैग़म्बर के 5वे (पांचवे) साल ख़ानाये वही मे जनाबे रसूले ख़ुदा की दुख्तरे ग्रामी बीबी फ़ातिमातुज़ ज़ेहरा स० ने विलादत पायी !
आपकी वालदा खादीजा बिन्ते खोइलीद थी जनाबे ख़दीजा कुरेश के एक शरीफ खानदान मे पैदा हुई इनके खानदान के तमाम अफ़राद दानिशमंद और ख़ानाये काबा के मुहाफ़िज़ थे जब यमन के बादशाह तुब्बा हुजरे अस्वद को मस्जिदुल हराम से निकाल कर यमन ले जाने का इरादा किया  तो जनाबे ख़दीजा के वालिद बचाव के लिए उठे इसी वजह से तुब्बा अपने इरादे को अंजाम नही दे पाया !
जनाबे ख़दीजा के चचा वर्क़ा भी मक्के के एक दानिशमंद शख्स थे जनाबे फातिमातुज़ ज़ेहरा स० के विलादत से पैग़म्बर अ० और जनाबे  ख़दीजा का घर और भी ज़्यादा मेहरो मुहब्बत से भर गया जिस ज़माने में पैग़म्बरे अकरम मक्के मे रन्जो अलम से गिरफ्तार थे उस ज़माने मे पैग़म्बर अ० की बेटी माँ बाप की थकान को सुबह शाम अपनी मुहब्बत से दूर करती थी जनाबे फ़ातेमा ज़ेहरा स० का बचपन बहुत ख़ौफ़नाक हालात में गुज़रा !
जनाबे रसूले ख़ुदा तनो तन्हा कुफ़्र और बूत परस्ती से मुक़ाबला करना चाहते थे ! चन्द साल तक आप पोशीदा तौर पर तबलीग़ करते रहे ! जब ख़ुदा के हुक़्म से आपने खुल्लम खुल्ला दावते इस्लाम का आगाज़ किया तो दुश्मनो ने और ज़्यादा अज़ीयत देनी शुरू करदी जब कुफ्फार ने ये देखा के अज़ीयत देने से इस्लाम की बढ़ती हुई तरक्की को रोका नही जा सकता तो उन्होंने एक राय होकर पैग़म्बर को क़त्ल करने का इरादा किया ! जनाबे रसूले ख़ुदा की जान बचाने के लिए जनाबे अबु तालिब ने बनी हाशिम के एक गिरोह के साथ शेबे अबु तालिब दर्रे मे आपको भेज दिया ! आपने 3 साल तक इस तपते हुए दर्रे मे तक़लीफ़ और भूख के आलम मे ज़िन्दगी गुज़ारी और इसी मुख़्तसर ग़िज़ा पर जो छुप कर वहा भेजा जाता था उस पर बाक़ी रहे जनाबे फतेमातुज़ ज़ेहरा स० तक़रीबन 2 साल अपने पदर के साथ रही और 3 साल तक माँ बाप और दूसरे मुसलमानो के साथ भूख और सख़्त तरीन हालात से गुज़री 10 बेसत मे शेब से निजात के थोड़े दिनों बाद आपके सर से आपकी माँ का साया उठ गया ! सर से माँ का साया उठ जाना जनाबे फ़ातेमा ज़ेहरा स० के लिए मुसीबत का सबब था ! 10 बेसत जनाबे अबु तालिब और जनाबे ख़दीजा की वफ़ात मे पैग़म्बरे अकरम की रूह पर ऐसा असर किया आपने इस साल का नाम आमूल हुज़न रखा यानि ग़म का साल !
इन दोनों बड़े हमियो के दुनिया से चले जाने से दुश्मन की अज़ीयत और बढ़ गयी कभी लोग पत्थर मारते कभी आपके रूहे मुबारक पर मिट्टी डाल देते लेकिन ये जनाबे फ़ातिमा थी जो अपने नन्हे नन्हे हाथो से आपके चेहरे से गर्द झाड़ती बहुत ही प्यार और मुहब्बत से पेश आती !
इसी वजह से आपके वालीदे ग्रामी ने आपको उम्मे अबिहा का लक़ब दिया ! हिजरत के कुछ दिनो बाद 8 साल की उम्र मे इमामे अली अ० के साथ मक्के से मदीना तशरीफ़ लायी वहा भी बाप के साथ रही पैग़म्बर की ज़िन्दगी के मुश्किलात मे जनाबे फ़ातेमा ज़ेहरा बराबर शरीक़ रही !
जंगे ओहद मे जंग ख़त्म होने के बाद जनाबे फ़ातेमा ज़ेहरा स० मदीने से पैग़म्बर के खेमे की तरफ दौड़ी हुई पहुची और उठा बर्तन के पानी से आपके खून आलूद चेहरे को धोया और ज़ख्मो पर मरहम करने लगी !
आप इस्लाम और क़ुरआन के साथ साथ बड़ी हुई पैग़म्बर की ख़िदमतगार सोमान ब्यान करते है रसूले अकरम जब सफ़र मे जाना चाहते तो सबसे आख़िर मे आप बीबी फ़ातिमा ज़ेहरा स० से विदा होते थे और जब सफ़र से वापस आते थे तो सबसे पहले बीवी फ़ातिमा ज़ेहरा स० के पास जाते थे !
आपकी ज़िन्दगी के आख़िरी लम्हात मे भी बीबी फ़ातिमा ज़ेहरा स० आपके पास मौजूद थी और गिरिया फरमा रही थी !
पैग़म्बरे अकरम आपको ये कहकर दिलासा दे रहे थे के वो हर एक से पहले अपने बाप से मुलाकात करेंगी !
3 हिजरी मे पैग़म्बरे अकरम अ० ने इमाम अली अ० से जनाबे फ़ातिमा ज़ेहरा स० की शादी करवाई क्योंकि इमाम अली अ० के अलावा बीबी फ़ातिमा ज़ेहरा स० का कोई हमसफ़र न होता !
जब कुरेश के सरदार और बड़ी शख्सियतों और मालदारो ने रिश्ते की पेशकश की तो आपने क़ुबूल नही किया और फ़रमाया फ़ातिमा की शादी का मसला हुक़्मे ख़ुदा से होगा !
जनाबे फ़ातिमा ज़ेहरा स० अगरचे बड़े बाप अज़ीम पैग़म्बर की नुरेचश्म थी और उनसे बड़ी शरीफज़ादी का वजूद नही था लेकिन इसके बावजूद आप घर मे काम करती थी ज़हमते बर्दाश्त करती थी आप घर के लिए इतना पानी भर कर लती थी के आपके जिस्म पर मश्क़ का निशान पड़ जाता था !
इस क़द्र चक्कियां चलाती के हाथो मे छाले पड जाते घर को साफ सुथरा रखनेऔर रोटी खाना पकाने मे इतनी ज़हमते बर्दाश्त करती थी के आपके लिबास गर्दालूद हो जाता था !
इमामे जाफ़रे सादिक़ अ० इरशाद फरमाते है इमाम अली अ० घर की जरूरत के लिए लकड़ी और पानी लाते और घर मे झाड़ू देते जनाबे फ़ातिमा स० चक्की पिसती और आटा गूंद कर रोटी पकाती !
तमाम औरतो की सरदार जनाबे फ़ातिमा ज़ेहरा स० की मानवी शख़्सियत हमारी सोच से भी ज़्यादा बलंद है वो ख़ातून जो मासूम है उनकी और उनके खानदान की मोहब्बत दोनो फारिज़ा है वो ख़ातून जिनका गुस्सा और जिनकी नाराज़गी ख़ुदा का गुस्सा और ख़ुदा की नाराज़गी शुमार होती है !
 यहाँ आपके बारे मे कुछ हदीसे इरशाद की जा रही है
1 - पैग़म्बरे अकरम अ० फरमाते है के जिब्रील नाज़िल हुए और बशारत दी के हसन और हुसैन जन्नत के जवानो के सरदार है और फ़ातिमा जन्नत की औरतो की सरदार है !
2 - पैग़म्बरे अकरम अ० फरमाते है के दुनिया की सबसे बेहतरीन चार औरते है
(a) - मरयम बिन्ते इमराम
(b) - ख़दीजा बिन्ते खोइलीद
(c) - जनाबे आसिया (फिरऔन की बीवी)
(d) - जनाबे फ़ातेमा ज़ेहरा स०
3 - पैग़म्बरे अकरम अ० ने फ़रमाया के ख़ुदा फ़ातिमा ज़ेहरा स० की नाराज़गी से नाराज़ और उनकी ख़ुशी से खुश होता है !
4 - हज़रत इमामे जाफ़रे सादिक़ अ० से सवाल हुआ के हज़रत फ़ातिमा ज़ेहरा स० का नाम दरख्शनदा (चमकना)क्यों रखा गया तो आपने फ़रमाया जब बीबी फ़ातिमा ज़ेहरा स० इबादत के लिए खड़ी होती थी तो आपका नूर आसमान मे इस तरह चमकता था जैसे सितारों का नूर ज़मीन वालो के लिए चमकता है !
पैग़म्बरे अकरम अ० ने आपके ईमान के बारे मे फ़रमाया के इन के दिल की गहराई और रूह मे ईमान इस तरह बसा हुआ था के आप इबादत के लिए अपने आप को हर चीज़ से अलग कर लेती थी ! इमामे हसन अ० फरमाते है के मेने अपनी वालिदा जनाबे फ़ातिमा ज़ेहरा स० को देखा के शबे जुमा को आप सेहरी तक इबादत रुकुह मे मशगूल रहती थी मेने सुना आप तमाम लोगो के लिए दुआ कर रही है मगर अपने लिए कोई दुआ नही कर रही है मेने इनसे अर्ज़ किया के जिस तरह आप दुसरो के लिए दुआ कर रही है वैसे अपने लिए क्यों नही करती है तो आपने फ़रमाया मेरे लाल पहले पडोसी हमसाया फिर अपना घर !
हसन बसरी कहते थे के उम्मते इस्लामी ने जनाबे फ़ातिमा ज़ेहरा स० से ज़्यादा इबादत करने वाला कोई पैदा नही हुआ वो इबादत इस क़दर किया करती थी के आप के पाँव पर वरम आ जाया करता था !
वफ़ात के वक़्त पैग़म्बरे अकरम का सर इमामे अली अ० की गोद मे था जनाबे फ़ातिमा ज़ेहरा स० इमाम हसन और इमाम हुसैन अ० आपके चेहरे को देख देख कर रो रहे थे और आपकी आँखे बंद हो गयी रूह जन्नत को परवाज़ कर गयी ! बीबी फ़ातिमा ज़ेहरा स० के ऊपर ग़मो का पहाड टूट गया !
अभी रसूले ख़ुदा का जिस्म रूहे ज़मीन पर ही था के अबु बकर को ख़िलाफत दे दी गयी जिससे जनाबे फ़ातिमा ज़ेहरा स० को एक और झटका लगा और आपने इरादा किया के इमामे अली अ० का हक़ वापस दिलाने मे इमामे अली अ० का पूरा साथ देंगी जनाबे फ़ातिमा ज़ेहरा स० और इमामे अली अ० पैग़म्बर के दफन और कफ़न से फ़ारिग़ हुए आपने मुकाबले का इरादा किया !
1- इमामे अली अ० ने ये इरादा किया के ख़लीफा की बैयत नही करेंगे और इस तरह से आपने इन लोगो के खिलाफ़ होने का इज़हार किया बीबी फ़ातिमा ज़ेहरा स० जानती थी की इमामे अली अ० को हक़ दिलाने मे बहुत मुसीबत का सामना करना पड़ेगा तमाम दुखों और तक़लीफो को क़ुबूल किया और आख़िर तक पहुँचाया !
2- जनाबे फ़ातिमा ज़ेहरा स० इमामे हसन और इमामे हुसैन अ० की उंगली पकड़े हुए मदीने के बुजुर्गो के पास जाती और उनको अपनी मदद् की दावत देती थी और पैग़म्बर की वसीयत और इरशाद उनको याद दिलाती थी जनाबे फ़ातेमा ज़ेहरा स० फरमाती थी के ए लोगो क्या मेरे बाप ने अली को ख़िलाफत नही दी थी क्या तुम उनकी क़ुरबानी को भूल गए हो क्या मेरे बाप ने ये नही फ़रमाया था के मे तुम्हारे दरमियान से जा रहा हु मगर दो बड़ी चीज़े छोड़े जा रहा हु अगर तुम उनके साथ रहे तो कभी गुमराह नही होंगे एक किताबे ख़ुदा और दूसरे मेरे एहलेबैत क्या ये सही है के तुम हमे तन्हा छोड दो और हमारी मदद् से हाथ उठा लो !
3- अबु बकर ने हुक़ूमत संभालने के बाद जनाबे फ़ातिमा ज़ेहरा स०  से फ़िदक लेने का इरादा किया तो उन्होंने हुक़्म दिया के फ़िदक मे काम करने वालो को निकाल दो और उनके बजाय दूसरे काम करने वालो को रख लो !
फ़िदक पर कब्ज़ा करने की एक वजह ये भी थी के वो लोग जानते थे इमाम अली अ० का इल्मी मक़ाम बलन्द और आला है जिसका कोई इंकार नहींकर सकता अगर इनकी माली हालात भी अच्छी हो गयी तो लोग इनके साथ हो जांयगे ! जब जनाबे फ़ातिमा ज़ेहरा स० को अबु बकर के इस ख़याल के बारे मे पता चला तो आपने सोचा अगर अपने हक़ को नही बचाऊंगी तो लोग ये समझेगे के ये हक़ अबु बकर का है इसीलिए इनके खिलाफ़ खड़ी हुई !
जनाबे फ़ातिमा ज़ेहरा स० ने अबु बकर से गुफ़्तगू के दौरान क़ुरआनी आयतो और गवाहियों को पेश करके साबित कर दिया के फ़िदक जनाबे फ़ातिमा की मिलकियत है !
जनाबे फ़ातिमा ज़ेहरा स० ने मस्जिद मे मुहाज़ेरीन और अंसार के बहुत बड़े मजमे के सामने ख़ुतबा दिया आपने लोगो को ख़ुदा की तरफ दावत दी पैग़म्बर और उनकी रिसालत की तारीफ की और उनके एहकाम के बारे मे गुफ़्तगू की और आख़िर मे फ़रमाया ऐ लोगो जो कहना चाहिए था वो मे कह चुकी मुझे मालूम है तुम मेरी मदद् नही करोगे तुम्हारे बनाये हुए नक़्शे के बारे मे मुझे मालूम है लेकिन दर्दे दिल था जिसको मेने ब्यान कर दिया !
जनाबे फ़ातिमा ज़ेहरा स० ने अबूबकर से खुले आम कह दिया के अगर फ़िदक को वापस ना करोगे तो मे जब तक ज़िंदा हु तुम से कलाम नही करूँगी जहाँ भी आपका ख़ालिफ से सामना होता था तो आप उनकी तरफ से अपना रुख फेर लिया करती थी और उनसे बात नही करती थी !
आपने इमामे अली अ० से फ़रमाया के ऐ अली मुझको रात मे गुस्ल देना रात मे कफ़न पहनाना और दफनाना मे इस बात से राज़ी नही हु के जिन्होंने मुझ पर ज़ुल्म किये है वो मेरे जनाज़े मे शरीक़ हो और इमामे अली अ० ने भी बीबी फ़ातिमा ज़ेहरा स० की वसीयत के मुताबिक़ आपको रात मे दफ़न किया और उनकी क़ब्र को ज़मीन के बराबर कर दिया और चालीस नई कब्रो के निशान बना दिए ताकि असली क़ब्र का पता न चले !
पैग़म्बर की रहलत के बाद और इमामे अली अ० की ख़िलाफत छीनने वालो ने भी जनाबे फ़ातिमा ज़ेहरा स० को बहुत तक़लीफ़ पहुचाई आप पैग़म्बर को याद करके हमेशा ग़मज़दा और गिरिया करती थी कभी बाप की क़ब्र की ज़ियारत को जाती तो कभी शोहदा के मज़ार पर आख़िरकार शहजादी की ताक़त ख़त्म हो गयी और आप 13 जमादि अव्वल या दूसरी रिवायत के मुताबिक 3 जमादिउस्सानी 11 हिजरी को सिर्फ 18 साल की उम्र मे रसूले ख़ुदा की रहलत के मुताबिक 75 या 95 दिन बाद दुनिया से रुख़सत हो गयी !

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