इमाम हसन अ० की ज़िन्दगी से जुडी कुछ बाते ।

इमाम हसन अलैहिस्सलाम के बचपन का ज़माना
इमाम अली अलैहिस्सलाम और बीबी फातिमा सलामुल्लाह अलैहा के पहले बेटे 15 रमज़ान 2 हिजरी को मदीने में हुई पैग़ंबर  मुबारकबाद देने के लिए जनाबे फातिमा ज़हरा के घर तशरीफ़ लाएं और खुदा की तरफ से बच्चे का नाम हसन रखा।
आप 7 साल तक पर पैग़ंबरे  अकरम के साथ रहे।रसूले अकरम अपने नवासे से बहुत प्यार करते थे कभी कंधे पर सवार करते और फरमाते की ख़ुदाया मैं इसको दोस्त रखता हूं तू भी इसको दोस्त रख।
और फिर फरमाते- जिसने हसन हुसैन को दोस्त रखा उसने मुझे दोस्त रखा और जो इन से दुश्मनी रखेगा उसने मुझसे दुश्मनी की।
रसूले अकरम की रहलत के थोड़े ही दिनों बाद आपके सर से चाहने वाली मां का साया भी उठ गया। अब सिर्फ तसल्ली के लिए इमाम अली अ० ही एक सहारा थे इमाम हसन अ० ने जिंदगी भर अपने बाबा का साथ दिया।आप जालिमों पर तनक़ीद और मज़लूमों की हिमायत करते थे और हमेशा सियासी मसायल को सुलझाने मे लगे रहते थे। जिस वक्त उसमान ने पैग़ंबर के अज़ीमो-शान सहाबी जनाबे अबूज़र को शहर से निकाल कर ज़बदा भेजने का इरादा किया उस वक्त यह हुक्म भी दिया कि कोई भी इन को रुख़सत करने नही जाएगा। इस के बरख़िलाफ हज़रत अली अ० ने अपने दोनों बेटों (इमाम हसन अ० और इमाम हुसैन अ०) और कुछ दूसरे लोगों के साथ जनाबे अबूज़र अ० को बङी शान से रुख़सत किया और उनको साबित क़दम रहने की वसियत फरमायी।
36 हिजरी में इमाम हसन अ० अपने वालिद के साथ मदीने से बसरा रवाना हुए ताकि जमल की आग जिसको आयशा,तल्हा और ज़ुबेर मैं भड़काया था बुझा दे !
बसरा के मका़मे ज़िकार में दाख़िल होने से पहले इमाम अली अ० के हुक्म से अम्मार यासिर के साथ कूफे तशरीफ ले गए ताकि लोगों को जमा करे ! आप की कोशिशों और तक़रीरों की वजह से तकरीबन 12 हज़ार  लोग मदद के लिए आ गए। आपने जंग के ज़माने मे बहुत ज्यादा फिदाकारी के साथ और आप का लशकर फतेहयाब हुआ।
जंगे सिफ्फिन में भी आपने अपने पदरे बुजुर्गवार के साथ साबित क़दम का मुज़ाहिरा किया। इस जंग में माविया ने अब्दुल्लाह इब्ने उमर को इमाम हसन अ० के पास भेजा और कहलवाया के आप अपने बाप की मदद ना करे तो मैं और ख़िलाफत आपको दे दूंगा क्योंकि क़ुरैश वाले आपके वालिद से नाराज हैं (आबाओ-अजदाद के कत्ल की वजह से) लेकिन इमाम हसन अ० ने जवाब मे फरमाया नहीं खुदा की क़सम ऐसा नहीं हो सकता फिर इसके बाद उससे ख़िताब करके फरमाया मैं तुम्हारे मकतूलीन को आजकल मैदान में देख लूंगा शैतान ने तुमको धोखा दिया और तुम्हारे काम को उसने ज़ीनत दी।
इमामे हसन अ० इस जंग में आख़िर तक अपने पदरे गिरामी के साथ रहे और जब मौका मिलता दुश्मन पर हमला करते और बहुत ही बहादुरी के साथ मौत के मुँह मे कूद पढ़ते। आप ने ऐसी शुजाअत का मुज़ाहेरा फरमाया। जब इमाम अली अ० ने अपने बेटे की जान खतरे में देखी तो बेचैन हो गए बहुत ही दर्द के साथ आवाज़ दी कि इस नौजवान को रोको मैं हसन हुसैन की मौत से डरता हूं कि कहीं इनकी मौत से नसले रसूल ख़त्म ना हो जाए।
हसन इब्ने अली अ० अख़लाकी,इम्तियाज़ाते और बेपनाह इंसानी फज़ायल के हामिल थे। आप एक बुज़ुर्गवार,बावेक़ार,बुर्दबार,सख़ी बख्शीश करने वाले और लोगो की मोहब्बत का मरकज़ थे यहा आपकी परहेजगारी का नमूना बयान किया जा रहा है।
आप खुदा की तरफ इस तरह से मुतावज्जे रहते थे कि इस तवज्जो के आसार आपके चेहरे पर भी दिखाई देते थे जब आप वुज़ु करते थे तो इस वक्त आपका रंग मुताग़य्यर हो जाता और आप लरज़ने लगते थे। जब लोग सबब पूछते थे तो आप फरमाते थे कि वह शख़्स जो खुदा के सामने खड़ा हो उसके लिए यह मुनासिब नहीं है।
इमाम जाफरे सादिक अ० फरमाते   हैं - इमामे हसन अ० अपने ज़माने के सबसे आबिद तरीन और ज़ाहिद तरीन शख़्स  थे। जब मौत और क़यामत को याद फरमाते तो रोते हुए बेकाबू हो जाते थे।
इमाम हसन अ० अपनी जिंदगी में 25 बार पैदल और कभी बरहना पैर ज़ियारते ख़ानए- ख़ुदा को तशरीफ़ ले जाते ताकि खुदा की बारगाह में ज़्याद से ज़्यादा अज्र मिले।
आपकी सखावत और बख़्शिश के सिलसिले में इतना ही बयान काफी है कि आपने अपनी जिंदगी में दो बार तमाम माल पूंजी खुदा के राह में दे दी और तीन बार अपने पास मौजूद तमाम चीजों को दो हिस्सों मे बांटते थे एक राहे खुदा में और दूसरा अपने पास रखते। एक दिन आपने ख़ान-ए-ख़ुदा मे सुना कि एक शख्स ख़ुदा से गुफ्तगू करते हुए कह रहा है कि खुदा वंदा मुझे 10 हज़ार दिरहम दे दे इमाम हसन अ० उसी वक्त अपने घर गए और वहां से उस शख्स को इतने दिरहम भेज दिए।
21 रमजान 40 हिजरी की शाम को  इमाम अली अ० की शहादत हो गई उसके बाद सब लोग शहर की जामा मस्जिद में जमा हुए इमामे हसन अ० मिंबर पर तशरीफ ले गए और अपने पदरे-बुज़ुर्गवार की शहादत का ऐलान और उनके थोड़े से फज़ायल बयान करने के बाद अपना तार्रुफ़ कराया फिर बैठ गए और अब्दुल्ला बिन अब्बास खड़े हुए और कहां:-
लोगों यह तुम्हारे पैगंबर के फर्जंद हज़रत अली अ० के जानशीन और तुम्हारे इमाम अलैहिस्सलाम है तुम इनकी बैयत करो।
लोग छोटे-छोटे गिरोहों में आपके पास आए और बैयत करते रहे आपने हुकूमत को ऐसे लोगो के दरमियान शुरू किया जो अच्छी तरह से ईमान भी नहीं रखते थे। अहकाम की पाबंदी पर अमल नही करते थे लेकिन क्योंकि इमाम अली अ० ने आपको अपना जानशीन बनाया और फिर लोगों ने भी आपकी बैयत कर ली थी। इसलिए आप ने हुकूमत संभाली ताकि माविया के फितना और फसाद को खत्म कर दे और इसलिए आपने लश्कर को जमा करना शुरू किया माविया के दो जासूस गिरफ्तार हो गए और क़त्ल कर दिए गए माविया को इमाम हसन अलैहिस्सलाम ने एक ख़त भी लिखा कि तुम जासूस भेजते हो ? गोया तुम जंग करना चाहते हो जंग बहुत नजदीक है इंतज़ार करो इंशा अल्लाह।
जिस बहाने से क़ुरैश ने हज़रत अली अ० से मुँह फेर लिया था और उनकी कम उम्र का बहाना बनाकर उनकी बैयत नहीं की थी बिल्कुल उसी तरह माविया ने भी इसी बहाने से इमाम हसन अ० की बैयत से इंकार कर दिया। वह दिल मे तो यह समझ रहा था कि हुकूमत के लिए इनसे ज्यादा बेहतर शख्स और कोई नहीं है लेकिन वह यह भी जानता था कि इस के कामो मे रुकावट भी है वह सिर्फ बैयत नहीं कर रहा था बल्कि इमाम हसन अ० को क़त्ल करने की कोशिश में हुआ था। कुछ लोगो को उसने ख़ूफिया तौर पर तैयार किया माविया के लोगो ने एक दिन इमाम हसन अ०पर तीर फेंके लेकिन इमाम हसन अ० हमेशा अपने लिबास के नीचे ज़ीका पहनते थे। इसी वजह से आपको कोई नुकसान नहीं हुआ। माविया ने फिर इमाम हसन अ० से जंग करने के लिए एक लश्कर इराक की तरफ भेजा।
इमाम हसन अ० ने भी हिज्र बिन अदि कंदी को हुक्म दिया कि वह लोगों को जंग के लिए आमादा करे !
आप अलैहिस्सलाम के हुक्म के बाद कूफे की गलियो मे मनादी ने आवाज़ बुलंद की और लोग मस्जिद में जमा हो गए। इमाम हसन अ० मिंबर पर तशरीफ ले गए और फरमाया कि माविया तुम्हारी तरफ जंग करने के लिए आ रहा है तुम भी लश्करे गाह की तरफ जाओ पूरे मजमे पर खामोशी छा गई हातिमताई के बेटे हिज्र बिन अदि ने ऐसे हालात देखे तो उठ खड़ा हुआ और उसने कहा सुभान अल्लाह यह क्या मौत का सन्नाटा है जिसमे तुम्हारी जान ले ली है कि तुम ईमाम और अपने पैग़ंबर के फरज़ंद का जवाब नही देते ख़ुदा के ग़ज़ब से डरो फिर इमाम अ० की तरफ मुतावज्जेह हुआ और कहा मैंने आपकी बातों को सुना और मैं लश्कर-ए-गाह मे जा रहा हूं जो आमादा है वह मेरे साथ आ जाए क़ैस बिन साद,मौक़िल बिन क़ैस और ज़ियाद बिन सासा ने भी इपनी पुरज़ोर तक़रीरों में लोगो को जंग का शौक दिलाया फिर सब लश्कर-ए- गाह में पहुंच गए।
आप के सिपाहियों को चंद हिस्सों में तक्सीम किया गया है.
(1) खुवारिज जो सिर्फ माविया से दुश्मनी की वजह से उससे जंग करने के लिए आए थे ना कि इमाम हसन अ० की तरफदारी के लिए।
(2) फायदे की तलाश में रहने वाले लोग जो माले ग़नीमत हासिल करने के लिए थे।
(3) शक करने वाले और डामाडोल इरादे वाले ऐसे लोग जिनको यही नहीं पता था कि इमाम हसन हक़ पर हैं या माविया।
(4) वह लोग जिन्होंने अपने क़बीले के सरदारों की पैरवी में शिरकत की थी।
इमामे हसन अ० ने एक लश्कर को माविया की तरफ भेजा  लेकिन वो माविया से ही जा मिले। इस ख़यानत के बाद इमाम हसन अ० मदायन के मक़ाम-ए-साबत तशरीफ ले गए और वहां 12 हज़ार लोगों को अब्दुल्ला बिन अब्बास की सरदारी में जंग के लिए भेज दिया और क़ैस दिन साद को भी इनकी मदद के लिए भेजा के अगर अब्दुल्ला शहीद हो जाए तो क़ैस सरदारी करेंगे।
माविया ने शुरू में कोशिश कि के क़ैस को अपनी तरफ कर लें और 10 लाख दिरहम क़ैस के पास भेजें ताकि वह अगर हमसे ना मिले तो कम से कम इमाम हसन अ० से अलग हो जाएं लेकिन क़ैस ने पैसों को वापस कर दिया और जवाब मे कहा तुम धोखे से मेरे दीन को मेरे हाथो से नही छीन सकते लेकिन अब्दुल्ला बिन अब्बास पैसो के लालच में आ गया और रातो रात एक गिरोह के साथ माविया की तरफ चला गया क़ैस ने बचे हुए लोगों के साथ नमाज़ पढ़ी और यह ख़बर इमाम हसन अ० को भेजी।
क़ैस ने बड़ी बहादुरी से जंग की। माविया ने इमाम हसन अ० के लश्कर में जासूस भेजे और यह अफवाहें फैला दी के "क़ैस माविया से मिल गया है और इमाम हसन अ० ने माविया से सुलह करने की पेशकश की है।" जब यह खबर इमाम हसन तक पहुंची तो आपके सिपाहियों के हौंसले टूट गए और खुवारिज मे से कुछ लोग बहुत ज्यादा गुस्से की हालत में इमाम हसन पर टूट पड़े और असबाब लूट कर ले गए। यहां तक की आपके पैर के नीचे बिछे फर्श को भी खींच ले गए।  इनकी जिहालत इस क़दर पहुंच गई थी की बहुत लोग पैगंबर को (माज़अल्लाह) काफिर कहने लगे थे जर्राह बिन सानान क़त्ल करने के इरादे से इमाम हसन अ० की तरफ आया और चिल्लाकर बोला ए हसन अ० तुम भी अपने बाप की तरह मुशरिक हो गए (माज़अल्लाह) इसके बाद उसने आप अ० की रान पर वार किया और आप जख़्म की ताब ना ला सके और ज़मीन पर गिर पड़े। इमाम हसन अ० को लोग मदायन के गवर्नर के घर ले गए और वहा काफी दिनो तक आपका इलाज चलता रहा।
इस दरमियान में इमाम हसन अ० को ख़बर मिली के रूसाए का़बिल में से कुछ लोगों ने ख़ूफिया तौर पर माविया को ख़त लिखा कि अगर तुम इराक़ की तरफ आ जाओ तो हम इमामे हसन अ० को तुम्हारे हवाले कर देंगे। माविया ने इन ख़तों को इमाम हसन अ० के पास भेजा और सुलह करने के लिए कहा और कहा कि जो भी शर्त आप पेश करेंगे मुझे मंज़ूर है।
इमामे हसन अ० ने देख लिया था कि तमाम लश्कर माविया के साथ जा मिला है और कोई भी अब साथ देने वाला नही है अगर मै अकेले जंग करूंगा तो कत्ल कर दिया जाऊंगा और हक़ भी सामने नही आएगा। इसलिए आप अ० ने सुलह की पेशकश को क़ुबु़ल कर लिया।
सुलह की शर्तें यह थीं:-
(1)इमाम हसन अ० हुकूमत माविया के हवाले कर रहे हैं लेकिन इस शर्त पर की वो क़ुरआन और सीरते पैग़ंबर अ० पर अमल करेगा।
(2) बिदत और इमान अली अ० के लिए बुरा कहना हर हाल में मना है और उनको नेकी के सिवा याद ना किया जाए।
(3) कूफे के बैतुल माल में 50 लाख दिरहम हैं वो इमाम हसन अ० के ज़ेरे नज़र खर्च हों।
 माविया अपनी आमदनी में से हर साल 10  लाख दिरहम जंगे जमल में शहीद और सिफ्फिन मे शहीद होने वालों के रिश्तेदारों और घरवालों में तक़सीम कर दे और उन मे भी जो इमाम अली अ० की तरफ से लड़कर क़त्ल हुए हैं।
(4) माविया अपने बाद किसी को ख़लीफा ना चुने।
(5) हर शख्स चाहे वह किसी भी रंग और किसी भी नस्ल से हो उसको पूरी हिफाज़त मिलेगी।
 किसी को भी पुरानी बातो की बिना पर सज़ा नहीं दी जाएगी।
इमाम हसन अ० ने इन शर्तों के ज़रिए अपने भाई इमाम हुसैन अ० और अपने चाहने वालों की जान बचाई और अपने चंद असहाब जिन की तादात बहुत ही कम थी और इस्लाम को ख़त्म होने से बचा  लिया।
माविया सुलह की तमाम शर्तों पर अमल करने का अहद कर चुका था। उसके बावजूद उसने तमाम शब्दों को अपने पैरों के नीचे रख लिया और मक़ामे नकाएला मे एक तक़रीर में साफ-साफ कह दिया कि मैंने तुमसे जंग इसलिए नहीं की कि तुम नमाज पढ़ो,रोज़ा रखो,हज के लिए जाओ। मैंने जंग इसलिए नहीं कि ताकि मै हुकूमत करूं और अब जब मुझे हुकूमत मिल गई तो मैं तमाम शर्तों को पैरों के नीचे रखता हूं और माविया लोगों से इमामे अली अ० के बारे में बुरा भला कहने पर उभारता और जहां कहीं भी आपके चाहने वाले मिलते उनको मुख्तलिफ बहानों से कत्ल कर देता। माविया के मरने के बाद ज़ियाद को हुकूमत दी और वो भी शियो को जहां कहीं भी पाता बड़ी बेरहमी से कत्ल कर देता था।
माविया हर तरह से इमाम हसन अ० को तकलीफ पहुंचाता आप और आप के असहाब पर कड़ी नज़र रखता। इमाम अली अ० और आप के चाहने वालो की तौहीन करता यहां तक कि इमामे हसन अ० के सामने आपके वालिद की बुराई करता और अगर इमाम हसन अ० उसको जवाब देते तो उन्हें भी अदब सिखाने की कोशिश करता। आपका कूफे में रहना मुश्किल हो गया था इसलिए आपने मदीने लौट जाने का इरादा किया लेकिन मदीने मे भी माविया के आमिलो में से एक पलीद तरीन शख्स मरवान मदीने का हाकिम था। मरवान वह है जिसके बारे में पैगंबर अ० ने फरमाया था कि उसने इमाम अ० और आपके सहाबी का जीना मुश्किल कर दिया था यहां तक कि इमाम हसन अ०  का घर तक आना जाना मुश्किल हो गया था। इमाम अ० 10 बरस तक मदीने मे रहे लेकिन इसके बावजूद भी इनके असहाब पैगंबर के इल्म से बहुत कम फैज़याब हो सके। मरवान और उसके अलावा मदीने का जो भी हाकीम रहा उसने इमाम अ० और आपके सहाबी को अज़ियत देने में कोई कमी नही की।
माविया जो इमाम हसन अ० की कमसिनी के बहाने से इस बात के लिए तैयार नही था के आपको ख़िलाफत दी जाये वो अब इस फ़िक्र मे था के अपने नालायक जवान बेटे यज़ीद को ख़िलाफत दे और इमामे हसन अ० उसके लिए इस रास्ते मे रुकावट थे अब अगर माविया के बाद इमामे हसन ज़िंदा रह गए तो मुमकिन है ! जो लोग यज़ीद से खुश नही थे वो इमामे हसन अ० के साथ मिलकर उसकी सल्तनत को खतरे मे डाल दे इसीलिए यज़ीद की हुकूमत को मज़बूत बनाने के लिए उसने इमामे हसन अ० को रास्ते से हटा देने का इरादा किया !
 आख़िरकार इमामे हसन अ० की बीवी जद्दा बिन्ते अशअब के ज़रिये उनको ज़हर दे दिया और इमाम 47 साल की उम्र मे 28 सफ़र 50 हिजरी को शहीद हो गए और मदीने के क़ब्रीस्तान बक़ी मे दफ़न हुए !

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