इमाम अली अ० की ज़िन्दगी से जुडी कुछ बाते ।

पैग़म्बर की रहलत के बाद बहुत सारी हुकूमते वुजूद मे आ गयी थी
जनाबे रसूले खुदा अ० ने जब इमाम अली अ० की जानशिनी का एलान किया था तब लोगो ने ज़ाहिरी एतबार से क़ुबूल कर लिया था लेकिन पैग़म्बरे अकरम की रहलत के बाद लोगो ने इमाम अली अ० को उनका हक़ नही दिया बल्कि उनके बरख़िलाफ़ जाकर अपना ख़लीफा खुद अपनी मर्ज़ी से चुन लिया और इमाम अली को खलीफा मानने से इंकार कर दिया !
नहजुल बलाग़ा मे इरशाद हुआ है "ये दीन अशरार के हाथो मे असीर हो चूका है और ये दुनिया तलबी का ज़रिया है"
नहजुल बलाग़ा मे इमाम अली अ० की खुसूसियत को भी बयान किया है
इमाम अली अ० शरीयत के पाबंद   थे और जो कुछ दीन के ख़िलाफ होता उसको नज़र अंदाज़ करते और उस पर अमल नही करते थे
हज़रत अली अ० इरशाद फरमाते है
"अगर दिनो तक़वा माने ना होता तो मे अरब का सबसे चालक शख़्स होता"
लेकिन दूसरे ख़ालिफा शरीयत के मुताबिक़ काम नही करते थे वो वही काम करते जिससे उनको फायदा पहुँचता था ! 
इमाम अली अ० का मक़सद सिर्फ लोगों तक सिरते तैय्यबा पहुँचाना था !
ताकि लोगो तक बिना किसी तबदीली के आदिलाना दीन पहुँच सके !
लेकिन जो अरब के लोग थे (जिन्होंने अपनी हुकूमते खुद बना ली थी) उन्होंने लोगो को दो हिस्सों मे तक़सीम कर दिया था पहले ताक़तवर और दूसरे कमज़ोर जो ताक़तवर लोग थे वो कमज़ोर लोगो पर ज़ुल्म करते और उन्हें डरा धमका कर अपनी तरफ कर लेते थे ! इस तरह वो लोग दिन बा दिन क़ामयाब होते जा रहे थे लेकिन इमाम अली अ० पीछे नहीं हटे और ना ही उन्होंने हार मानी वो अपने इरादे पर अटल रहे उनका मक़सद क़ुरआन के अहकाम को लोगो तक पहुँचाना था और वो चाहते थे ख़ुदा के दीन और ख़ुदा की बातो को लोगो तक पहुचाएं
इमाम अली अ० को बहुत मुश्किलो का सामना करना पड़ा !इतनी मुश्किले आने के बाद भी इमाम अली अ० ने बहुत ज़्यादा लोगो तक दीन पहुचा दिया!
इमाम अली अ० की विलादत 13 रजब 30 आमूलफिल को जुमे के दिन बेसत से 10 साल पहले ख़ानाये ख़ुदा मे हुई थी !
आपके वालिद का नाम इमरान इब्ने अब्दुल मुत्तलिब और आपकी वालिदा का नाम जनाबे फ़ातेमा बिन्ते असद इब्ने हाशिम है
आप 6 साल वालदैन के साथ रहे उसके बाद जनाबे अब्दुल्ला की दरख़्वास्त पर आपने हज़रत रसूले ख़ुदा की तरबियत पायी !
अपने बचपन के ज़माने के बारे में इमाम अली फरमाते है
"बचपन में पैग़म्बरे अकरम अ० मुझे अपनी आग़ोश मे लेते ,सीने से लगाते और अपनी मक़्सूस आरामगाह पर जगह देते! अपने जिस्मे अक़दस को मेरे जिस्म से मस करते और अपनी खुशबु से मुझे मोहत्तर फरमाते, ग़िज़ा चबाकर मेरे मुह मे रखते थे !
मे रसूले ख़ुदा की पैरवी इस तरह से करता जैसे ऊठ का शीरख्वार बच्चा अपनी माँ के पीछे पीछे चलता है ! हर रोज़ मेरे लिए अख़लाख का इल्म बुलंद करते और मुझे हुक्म देते के मे उनके क़िरदार की पैरवी करू ! और आप हर साल ग़ारे हिरा मे तशरीफ़ ले जाते और उस वक़्त मेरे अलावा आपको कोई नही देख पाता था !"
ख़ुर्शीद रिसालत का आला क़िरदार ,हुस्ने रफ़्तार और ख़ुदा परस्ती हज़रत अली अ० की इनफिरादी और इज्तेमायी ज़िन्दगी मे रास्ता चुनने के लिए बेहतरीन नमूना और सरे मश्क़ है !
इमाम अली अलैहिस्सलाम जब 10 साल के थे लेकिन उन में इतना जोशो जलाल था कि जब रसूल अल्लाह ने अपनी रिसालत का ऐलान फरमाया तो इमाम अली अ० ने सबसे पहले ईमान लाने का ऐलान किया और इस बारे में इमाम अली अ० फरमाते हैं उस जमाने में जब इस्लाम किसी के घर में नहीं पहुंचा था फख़त पैगंबर और उनकी बीवी हजरत खतीजा मुसलमान थी और तीसरा मैं मुसलमान था नूरे वही को देखता और नबूवत की खुशबू सूंघता था जब आयत नाजिल हुई " वा अन्ज़ुर अशिरतोकल अक़रबैन" तो इमाम अली अलैहिस्सलाम ने पैगंबर के हुक्म के मुताबिक अपने रिश्तेदारों में से 40 अफ़रादो को जिसमे अबु लहब,अब्बास,हमज़ा वगैरह को मेहमान बुलाया रसूल अल्लाह अलैहिस्सलाम ने खाने के बाद फरमाया ऐ फर्ज़न्दाने अब्दुल मुत्तलिब मैं जो तुम्हारे लिए लाया हूं मुझे नहीं मालूम के अरब के जवानों में से कोई इससे बेहतर चीज तुम्हारे लिए लाया हो !
मैं तुम्हारे लिए दुनिया और आखिरत की ख़ैर और सआदत तोहफे मे लाया हूं खुदा ने हुक़्म दिया है कि मैं तुमको इसकी तरफ बुलाऊं तुम में से कौन है मेरी इस रास्ते में मदद करने वाला ताकि वही मेरा भाई वसी और जानशीन  करार पाए रसूले खुदा ने तीन बार यह बात दोहराई और तीनो बार तन्हा अली खड़े हुए और इमाम अली अलैहिस्सलाम ने अपनी आमदगी का ऐलान फरमाया यह अली मेरे भाई वसी और जानशीन है इनकी बात सुनो और इताअत करो
हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने अपनी मक्के की 13 साला जिंदगी रसूले खुदा की खिदमत मे गुजारी और वही ए इलाही लिखते रहे !
इज़हारे इस्लाम की बिना पर कुरेश वालो ने अपनी दुनियावी ख्वाहिशों की राह वजूदे पैगंबर को खतरनाक तसव्वुर किया इसी वजह से दारुल नदवा में जमा हुए रसूले खुदा से मुकाबला करने के बारे में मशवरा करने लगे
आख़िर में यह तय पाया की हर कबीले से एक-एक आदमी चुना जाए ताकि रात को पैगंबर के घर पर हमला किया जाए और उनको सब मिलकर क़त्ल कर दे !
पैगंबर अलैहिस्सलाम वही के जरिए इनकी साजिश से आगाह हुए और यह हुक़्म मिला की रातो-रात हिजरत कर जाएं आपने इमाम अली अलैहिस्सलाम से फरमाया आप मेरे बिस्तर पर इस तरह सो जाएं कि किसी को मालूम ना होने पाए की पैगंबर की जगह कौन सोया है यह फ़िदाकारी ऐसी अहमियत और कद्रो कीमत की हामिल थी के मुख़्तलिफ़ रिवायत की बिना पर खुदा ने यह आयत नाजिल की
" वा मिनन नासे मईयशरी नाफ्सोहुबतेग़ाआ मरज़ातुल लाहे वल लाहो राउफु बिलएबाद"
लोगों में से कुछ ऐसे हैं जो रज़ा ए खुदा की राह मे अपना नफ़्स बेच देते हैं और खुदा अपने बंदों पर मेहरबान है !
पैग़म्बर को जब हिजरत का हुक़्म मिला तो आपने अपने खानदान के अफराद और क़बीले के दरमियान अली से ज़्यादा किसी को अमानतदार नही पाया इसी वजह से आपने उनको अपना जानशीन बनाया ताकि लोगो तक उनकी अमानत पहुचा दे आपका कर्ज़ अदा करे और आपकी दुख्तर जनाबे फ़ातिमा ज़ेहरा स० और दूसरी औरतो को मदीना पहुचाये !
इमामे अली अ० ने पैग़म्बर के हुक़्म पर अमल करने के बाद अपनी वालीदाये ग्रामी जनाबे फ़ातिमा और बिन्ते रसूले हज़रत फ़ातिमा ज़ेहरा और ज़ुबेर की बेटी फ़ातिमा और कुछ दूसरे लोगो के साथ मदीने रवाना हुए और मक़ामे क़ुबा में जा मिले !
राहे हक़ मे अपनी जान की बाज़ी लगाने वालो और जान की परवाह न करने वालो मे पैग़म्बर के असहाब के दरमियान अली बेनज़ीर है !
आप गज़बए तुबुक के आलावा (जिसमे पैग़म्बर के हुक़्म के मुताबिक रुक गए थे) तमाम गज़वात मे मौजूद रहे ! ज़्यादातर आपकी फिदाकारी लश्करे इस्लाम ने लश्करे कुफ़्रो शिर्क पर ग़लबा हासिल किया आपने हमेशा अपने दुश्मन को शिकस्त दी और फ़रमाया अगर तमाम अरब एक के पीछे एक मुझसे लड़े तो भी मे पीठ नही दिखने वाला !
बिना कुछ साबित किये ये बात कही जा सकती है अगर इस जाबाज़े इस्लाम की जाबाज़िया और फिदाकारिया ना होती तो मुमकिन नही था के बद्र, ओहद और खन्दक वगैराह चिरागे रिसालत को आसानी से गुल कर देते !
इस्लामी दुश्मन  मुख्तलिफ गिरोह ने एक दूसरे से हाथ मिला लिया ताकि मदीने पर हमला करके इस्लाम को खत्म कर दें।
पैग़ंबरे इस्लाम जनाबे सलमाने फारसी की पेशकश पर हुक़्म दिया कि मदीने के अतराफ मे खन्दक खोदी जाए जहां से दुश्मन के दाखिल होने का खतरा है। खंदक के दोनों तरफ लश्कर ठहरे हुए हैं। अरब का मशहूर जंगजू अमरू बिन अबद्वद दुश्मन के लश्कर से खंदक को पार करके शेर पढ़ता हुआ आया इमाम अली अलैहिस्सलाम ने कदम आगे बढ़ाएं दोनों में गुफ्तगु के बाद अमरू घोड़े से उतरा और तलवार से अपने घोड़े के पैर काट दिए और इमाम अली अलैहिस्सलाम पर हमलावर हुआ।
इमाम अली अलैहिस्सलाम ने दुश्मन के वार को अपनी ढाल पर रोका और अपनी एक ज़र्ब से उसको गिराकर कत्ल कर दिया।
अमरू के साथियों ने जब यह मंजर देखा तो वह मैदान छोड़कर भाग गए।
इमाम अली अलैहिस्सलाम फतेह करके वापस आए रसूले खुदा ने इनके बारे मे फरमाया अगर तुम्हारी आज की जंग को उम्मते इस्लाम के तमाम अच्छे आमाल से तोला जाए तो तुम्हारा यह अमल सबसे बढ़कर है।
पैग़ंबरे अकरम अलैहिस्सलाम ने यहूदियों के मरक़ज का मुआशरा किया इस ग़जबे में आंखों के दर्द की वजह से हज़रत अली अलैहिस्सलाम जंग में शामिल ना थे। रसूले खुदा ने दो मुसलमानों को परचम दिया और वह दोनों ही कामयाबी हासिल करने से पहले वापस आ गए।
पैग़ंबरे अकरम ने फरमाया परचम इनका हक़ नहीं था अली को बुलाओ लोगों ने अर्ज़ किया उनकी आंखों में दर्द है आपने फ़रमाया उनको बुलाओ।
अली वह हैं जिनको खुदा और उसका रसूल दोस्त रखता है और वह खुदा और उसके पैगंबर को दोस्त रखते हैं।
जब अली अलैहिस्सलाम तशरीफ लाए तो पैगंबर ने फरमाया अली क्या तकलीफ है इमाम अली अ० ने कहा आंखों और सर मे दर्द से  तकलीफ है। रसूले खुदा ने इनके लिए दुआ फरमाई और इनकी आंखों पर लोआबे-दहन लगाया। दर्द खत्म हो गया।
इमाम अली अ० ने सफैद परचम लहराया पैगंबर अलैहिस्सलाम ने हजरत अली ने फरमाया जिब्राइल तुम्हारे साथ और कामयाबी तुम्हारे आगे आगे है।
खुदा ने इनके दिलों में खौफ डाल दिया है। हज़रत अली अ० मैदान में गए पहले मरहब से सामना हुआ कुछ बातें हुईं और आखिरकार उसको ज़मीन पर गिरा दिया।
यहूदी क़िले के अंदर छिप गए और दरवाज़ा बंद कर लिया। इमाम अली अ० दरवाज़े के पीछे आए और जिस दरवाज़े को 20 आदमी मिलकर बंद करते थे उसको अकेले खोला और उस दरवाज़े को उखाड़कर यहूदियों की खंदक पर डाल दिया।
यहाँ तक के मुसलमान उस पर से गुज़रकर कामयाब हुए।
पैगंबर के बाद मुसलमानों के तमाम कामों की जिम्मेदारी रसूले खुदा ने हज़रत अली अलैहिस्सलाम को सौंप दी।
जैसे की ग़दीरे खुम 11 हिजरी को हज की अंजाम दही के लिए मक्के का इरादा किया इस सफर मे पैगंबर के साथियों की तादात 1 लाख 24 हज़ार लिखी है।वापिस पर 18 ज़िलहिज को ग़दीरे खुम नामी जगह पर पहुंचे।मनादी ने पैगंबर के हुक़्म के मुताबिक ऐलान किया। सब लोग रसूले खुदा के गिर्द जमा हो गए एक बुलंद जगह पर मिम्बर बनाया पैगंबर उस पर तशरीफ ले गए खुदा की हम्द के बाद फरमाया
" मन कुंतो मौला फहाज़ा अलियुन मौला" 
जिसका मैं सरपरस्त और वली हूं यह अली उसके सरपरस्त और वली हैं। खुदा इन के दोस्तों को दोस्त रख और इनके दुश्मनों का दुश्मन रख।
तभी यह आयत नाजिल हुई
"अलयौमा अकमलतो लकुम दीनोकुम वा आत्तमतो अलेकुम नेयमति वरज़ियतो लकुमुल इस्लामो दीना।" आज तुम्हारे दिन को मैंने कामिल कर दिया और अपनी नैमते तुम पर तमाम कर दी और तुम्हारे लिए दीन ए इस्लाम को पसंद कर लिया।
रसूले खुदा की आंख बंद होने के बाद बाज़ मुसलमान सकी़फा बनी साआदा में जमा हो गए और जो पैग़ंबर अ० ने इमाम अली अलैहिस्सलाम को अपना जानशीन बनाया था उसके खिलाफ लोगों ने हुकूमत अबू बकर के हवाले कर दी अबू बकर 31 हिजरी में 63 साल की उम्र में दुनिया से चले गए। इनकी मुद्दतें खिलाफत 2 साल 3 महीने थी। इनके बाद उमर बिन खत्ताब ने जनाबे अबू बकर के मुताबिक खिलाफत की हुकूमत संभाली और आखिरी ज़िलहिज 23 हिजरी को अबु लुलुफिरोज़ के हाथों क़त्ल हुए। इनकी मुद्दतें खिलाफत 10 साल 6 महीने और 4 दिन थी।
उमर ने अपने बाद ख़ालिफ चुनने के लिए एक कमेटी बनाई थी जिसका नतीजा उस्मान इब्ने अफ्फान के फायदे मे रहा !
उन्होंने जनाबे उमर के बाद मुहर्रम के आख़िर मे 24 हिजरी को ख़िलाफत की बागडोर सम्भाली और 35 ज़िलहिज को नाईन्साफ़ी और बेतुल माल के खुर्दोबुर्द की वजह से मुस्लमानो की एक कसीर जमात के हाथो क़त्ल कर दिए गए !
इनकी ख़िलाफत 12 साल से कुछ कम रही !
पैग़म्बर के बाद तीनो ख़ालिफ की ख़िलाफत की मुद्दत 25 बरस तक रही और इस लम्बी मुद्दत मे इमामे अली अ० इब्ने अबु तालिब ने सब्र से काम लिया !
अली जो ख़िलाफत को अपना मुसल्लम हक़ समझते थे इन लोगो के मुक़ाबिल उठे जिन्होंने इनके हक़ को पामाल किया था !
आपने एतराज़ किया जहा तक हो सका आपने उन लोगो अपनी बात समझाने की कोशिश की के ये हक़ मेरा (इमाम अली अ० ) का है !
इस्लाम की अज़ीम ख़ातून हज़रते फ़ातिमा ज़ेहरा स० ने भी इस सिलसिले मे आपकी बहुत मदद् की उन्होंने अम्लि तौर पर दूसरी हुकूमतो को ग़ैर क़ानूनी बताया !
क्योंकि इस्लाम अभी नया नया था  इसीलिए इमाम अली अ० ने तलवार उठाने और जंग की आग बढ़काने से परहेज़ किया इस अमल से इस्लाम को नुकसान पहुचता और मुमकिन था के पैग़म्बर की मेहनत पर पानी फिर जाता !
यहाँ तक आपने इस्लाम की आबरू बचाने के लिए तीनो ख़ालिफा की दीनी कामो और सियासी मुश्किलात मे हिदायत की !
जैसा की ये लोग भी आपकी इल्मी बुज़ुर्गी का एतराफ़ करते रहे है खलिफ़ाये दोवुम अक्सर कहा करते थे अगर अली ना होते तो उमर हलाक़ हो गए होते !
जनाबे उस्मान के क़त्ल के बाद अक्सरयत के इसरार और खुवाहिश पर हज़रत अली अ० ख़िलाफत के लिए चुने गए !
इमामे अली अ० ने पहले तो इस ओहदे को क़ुबूल करने से इंकार कर दिया ये इंकार इसलिए नही था के आप अपने अंदर हुकूमत की ताक़त और मसायब बर्दाश्त नही कर पाते या इनसे ज़्यादा मुनासिब असहाब के दरमियान कोई और मौजूद था !
बल्कि ये इनकार इसलिए था क्योंकि हज़रत अली अ० जानते थे इस्लामी मुआशरा पहले वाले तमाम ख़ालिफ की गलत सियासत की बिना पर इक़्तेलाफ का शिकार हो चूका था और आप देख रहे थे के जो पैग़म्बर अपनी ज़िन्दगी के लम्बे अरसे से जिन अहकाम पर अमल कर रहे थे वो भुलाये जा चुके है !
इन तमाम चीज़ों को अपनी जगह पर लाने मे मुश्किले आयेगी !
इन तमाम बातो के मद्देनज़र इमाम अली अ० ने सोचा के कण लोगो को आज़माकर देखा जाये ताकि बाद मे ऐसा न समझ बैठे के अली ने इनको ग़ाफिल बना कर इनकी इन्क़लाबी तहरीक़ का फायदा उठा लिया !
मजमाये आम मे तक़रीर और हुज्जत के बाद जब लोगो ने बहुत  ज़्यादा इसरार किया तो आपने जुमे के दिन 25 ज़िलहिज को मजबूरन ख़िलाफत क़ुबूल कर ली और लोगो ने आपकी बैयत की !
हजरत अली अ० ने कदम उठाएं उसके खिलाफ दुश्मनों का रद्दे अमल:-
हज़रत अली अलैहिस्सलाम गरीब और मजबूर लोगों के लिए खुशी का बाइस थे। इसी तरह से कुरेश के गुरूर के जज़्बे पर ज़र्बकारी थे। इसी वजह से जब सरवतमंदो और बड़े तबके के लोगों ने अपनी ज़ाति और इजतेमाई नफे को खतरे में देखा तो इमामे अली अलैहिस्सलाम से मायूस होने के बाद लोगों को बेयत तोड़ देने पर भड़काने लगे और मुख्तलिफ बहानो से आपकी हैसियत को कमजोर करने की कोशिश करने लगे। इमाम अली अलैहिस्सलाम ने अपने मुखालेफीन को तीन गिरोहों में तक़सीम किया।
जब अमरे खिलाफत के लिए मैं उठा तो एक गिरोह ने बेयत तोड़ दी।
कुछ लोग दीन से बाहर निकल गए।
एक गिरोह ने शुरू से ही सरकशी की।
नाकेसीन:- अहद तोड़ देने वाले पैसे के परस्तार लालची और तफरक़ा परवाज़ इमाम अली अ० की सियासत के मुकाबले मे आराम से नहीं बैठे और पहला फितना उन्होंने बसरा में खड़ा किया जिसमे तल्हा और ज़ुबेर भी थे यह दोनो बसरा और कूफे की गवर्नरी का मुतालेबा कर रहे थे इमाम अली अ० के सामने इन्होंने सरीही तौर पर इज़हार कर दिया के हमने इसलिए आपकी बेयत की है कि ख़िलाफत के काम मे आपके साथ शरीक रहे लेकिन इमाम अली अलैहिस्सलाम ने उनकी बात नहीं मानी और दोनो आखिर में उमराह के बहाने से मक्का छोड़कर मदीना चले गए और वहां जनाबे आयशा और जनाबे उस्मान के ज़माने के( जो मक्के के हाकीम थे) साथ मिलकर एक फौज तैयार की जिस फौज का नाम नाकेसीन पड़ा।
जनाबे आयशा की रहबरी में एक लशकर तैयार हुआ और बसरा की तरफ चल पड़े और बसरा का बचाव करने वालो पर हमला कर दिया दोनो तरफ टकराव हुआ जिसमें बहुत से लोग मारे गए और बहुत से ज़ख्मी हुए और हाकिमे बसरा को गिरफ्तार कर लिया और शहर बसरा उनके कब्ज़े में आ गया !
इमाम अली अ० शाम से जंग करने की तैयारी कर रहे थे तभी इमाम अली अ० को खबर मिली कि आयशा तल्हा और ज़ुबैर ने बसरा पर क़ब्जा कर लिया है इमाम अली अ० का लश्कर जल्दी ही मदीने से बाहर आ गया और आप के नुमाइंदे इमामे हसन और अम्मार यासिर की कोशिशो की बिना पर कूफे के हज़ारो अफराद इमाम अली अ० की मदद के लिए कूफा छोड़कर मका़मे ज़िकार में इमाम अली अ० से आ मिले।
इमाम अली अ० ने पहले इनसे सुलेह  करने की बहुत कोशिश की लेकिन कामयाब नहीं हुए क्योंकि उन्होंने जंग का पूरा इरादा कर रखा था मजबूरन इमाम अली अलैहिस्सलाम को जंग करनी पड़ी और जंग का नतीजा यह हुआ कि इमाम अली अलैहिस्सलाम के लश्कर की फतेह हुई और नाकेसीन की शिकस्त हुई बहुत से लोग क़त्ल हुए और बहुत से लोग शाम की तरफ भाग गए।
यह जंग तारीख में जंगे जमल के नाम से मशहूर है।
क़ासेतीन:- इमाम अली अ० ने जब इस्लामी मुआशरे की हुकूमत की जिम्मेदारी क़ुबूल की तो उस वक्त यह इरादा कर लिया था कि पैगंबर की सीरत को जो मुद्दत से भुलाई जा चुकी है उसे ज़िंदा करेंगे। लिहाज़ा उन्होंने अपनी हुकूमत के पहले ही दिन से यह तय कर लिया था की माविया को शाम की गवर्नरी से हटा देंगे। और मुसलमानों ने भी बार-बार माविया और माविया जैसे लोगों को गवर्नरी से हटाने की मांग की थी अब अगर इमाम अली अ० इन लोगो की बात ना मानते तो लोग इमाम अली अ० के ख़िलाफ हो जाते।
शाम मे माविया ने अपनी हुकूमत इतनी मज़बूत कर ली थी कि वह अपनी हुकूमत को छोड़ने वाला नही था और अगर इमाम अली अ० की तरफ से थोड़ी सी भी ढील हो जाती तो माविया उसको अपना हक़ समझ लेता और उन्हीं के ख़िलाफ खड़ा हो जाता। माविया मशहूर और साहिबे माल  शख्सियतों को खरीद लेता था और क़ीमत के ज़रिए से दूसरों को महरूम करके लोगों के चैनो सुकून को छीनता था और इसी तरह लोगो पर ज़ुल्म करके उसने अपनी हुकूमत को बाक़ी रखा।
माविया इमाम अली अ० को अच्छी तरह जानता था कि बहुत जल्द इमाम अली अ० उसको उसकी हुकूमत से हटा देंगे इसलिए माविया अपनी हुकूमत को मज़बूत करने के लिए मुसलमानो के हाथों उस्मान के क़त्ल का फायदा उठाने को बेहतरीन मौक़ा समझा और इसी वजह से उसने क़त्ले उस्मान को बहुत बड़ा बनाकर पेश किया कि शाम वालो के दिल लरज़ गए। माविया ने हुक़्म दिया जनाबे उस्मान के खून भरे कुर्ते और उनकी बीवी नायला की कटी हुई उंगली के साथ दमिश्क की जामा मस्जिद के मिंबर की बुलंदी पर लटकाया जाए और शाम के कुछ बूढ़ों को इसने इस कुर्ते के इर्द-गिर्द अज़ादारी के लिए आमादा किया और उनको इतना ज़्यादा बहकाया कि वह हजरत अली अ०  से इंतक़ाम के लिए आमादा हो गए।
 जनाबे आयशा,तल्हा और ज़ुबैर की साज़िशो ने भी माविया के काम को आसान कर दिया।
माविया के इर्द-गिर्द जब बेईमान लोग जमा हो गए तो माविया जंग के लिए तैयार हो गया। माविया का लश्कर सिफ्फिन में पहुंचा और फुरात के किनारे खेमाज़न हो गया। इसके साथियों ने असहाबे इमामे अली अ० पर पानी बंद कर दिया। 
इमाम अली अ० कूफे में थे जब आप को इस बात की ख़बर मिली तो आप अपनी फौज के साथ सिफ्फिन पहुंचे और इमाम अली अ० के लश्कर ने अपनी फिदाकारी से माविया के लश्कर को फरात के किनारे से हटा दिया और फरात पर क़ब्ज़ा कर लिया और इमाम अली अ० ने  बड़प्पन का सबूत दिया और माविया के लश्कर को पानी पीने दिया।
इमाम अली अ० ने सुलेह करने की पूरी कोशिश की लेकिन माविया जंग का पूरा इरादा बनाए हुए था इसके बाद दोनो लश्करो के दरमियान छोटे-छोटे हमले होते रहे इमाम अली अ० ने जब यह हाल देखा तो अपने असहाब को जंग के लिए आमादा किया और जंग के लिए तैयार हो गए।
 जंग इतनी सख़्त हुई की नमाज़े सुबह से आधी रात और आधी रात से दूसरे दिन ज़ोहर तक बग़ेर आराम किए हुए मुसलमान जंग करते रहे और दुश्मन को यह लगने लगा कि हमारी शिकस्त पक्की है और इमाम अली अ० का लश्कर फतेहयाब हो जाएगा लेकिन माविया ने धोखे से क़ुरान को नेज़े पर बलंद कर दिया जिससे इमाम अली अ० के लश्कर में इख़्तिलाफ बरपा हो गया आखिरकार लोगों के इसरार पर मजबूरन इमाम अली अ० ने अबू मूसा अशरी और अमरूआस पर छोड़ दिया
ताकि वह मुसलमानों की मसलेहत को देखते हुए फैसला करे जब हाकीमो के फैसले का वक्त आया तो दोनों ने अपना अपना नज़रिया बयान किया।
अमरूआस ने अबुमूसा अशरी को धोखा दिया और उसने हुकूमते माविया को बरक़रार रखा। इस बात ने माविया की साज़िश लोगों के सामने आ गई।
मारेक़ीन:- इस वाक़िये के बाद कुछ मुसलमान जो इमाम अली अ० के साथ थे वो इमाम अली अ० के ख़िलाफ हो गए और उन को बुरा भला कहने लगे उन लोगो को चंद दिनो बाद अपनी गलती का पता चल गया और वह शर्मिंदा हुए उन्होंने कोशिश की इमाम अली अ० अपने ओहदो पैमान को तोड़ दे लेकिन इमाम अली अ० पैमान तोड़ने वालों में से नही थे।
खुवारिज ने इमाम अली अ० के मुकाबले मे एक लश्कर तैयार कर लिया और कूफे से बाहर निकल पड़े नेहरवान में ख़ेमाज़न हो गए और बेगुनाह लोगों को क़त्ल करने लगे और लोगों में खौफ़ो वहशत तारी करने लगे।
इमाम अली अ० कोशिश कर रहे थे कि लोगो को दोबारा माविया से जंग करने के लिए आमादा किया जाए और लोगों ने भी आप की दावत को क़ुबूल कर लिया। जब आपने खुवारिज के इन क़त्लो फसाद को देखा तो खुवारिज के खतरे को माविया के खतरे से बड़ा महसूस किया।
अगर इमाम अली अ० के सिपाही माविया से लड़ने जाते तो उनको खुवारिज के हमले का सामना करना पड़ता क्योंकि खुवारिज अपने अलावा तमाम मुसलमानो को काफिर समझते थे। इसी वजह से इमाम अली अ० के सिपाही नहरवान की जानिब रवाना हुए। इमाम अली अ० ने इनके सामने हिदायत की पेशकश की लेकिन अफसोस वह नादान हटधर्म और हक़ीक़त मे से कुछ भी समझने पर आमादा ना थे। इमाम अली अ० इनकी हिदायत से मायूस हो गए और आपको यह यक़ीन हो गया कि वो लोग राहे हक़ की तरफ हरगिज़ नहीं लौटेंगे तब उन्होंने जंग की।
इमाम अली अ० ने दांये-बांये जानिब से दुश्मन पर ग़लबा हासिल कर लिया और खुवारिज के दरमियान नेजों और शनशीर ले कर टूट पड़े। अभी थोड़ी देर ही गुज़री थी कि नौ अफराद के अलावा सब को क़त्ल कर दिया !
आख़िरकार इमाम अली अ० ने 5 साल हुकूमत करने के बाद 19 रमज़ान की शब 40 हिजरी को नमाज़े सुबह की अदायगी की हालत में मस्जिदे कूफ़ा में पलीदतरीन इंसान इब्ने मुलजिम की ज़हर आलूद तलवार से (जो खवारिज मे से था) मेहराबे हक़ में ज़रबत खायी। आपका चेहरा आपके ख़ून से गुलरंग हो गया और दो रोज़ बाद रमज़ान की 21वी शब को जामे शहादत नोश किया। शहादत के बाद आपके जिस्मे अक़दस को नजफ की मुकद्दस सर ज़मीन मे सुपुर्द-ए-खाक किया गया !

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Husaini tigers72

19,21,23 Ramzan shabe qadar (Amal-e-shab-e-qadar)

 *आमाल 19,21,23वीं रमज़ान शबे कद्र,* *1:-वक्त गुरूबे आफताब गुस्ल ताकि नमाज़ मगरिब गुस्ल की हालत मे हो,* *2:-दो रकात नमाज़ जिसमे 1 बार...