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"सलाम और ख़ुदा हाफिज़"
हमारे प्यारे नबी स० ने तो सलाम पर इतना ज़ोर दिया है और इसे इतनी ज़्यादा अहमियत दी है के अगर घर मे कोई भी न हो तब भी सलाम करते हुए अंदर आओ।
आपसे स० से पूछा गया, "या रसूलुल्लाह! ख़ाली घर मे किसको सलाम करे ?"
तो आपने जवाब दिया, "अपने आपको।"
आपको पता है के दुनिया मे कितनी लड़ाइयाँ, दुश्मनिया और नफरते सलाम करने की वजह से ख़त्म हो जाती है।
हम मे से हर एक की हमेशा यही चाहत होती है कि किसी नेक, गुनाहो से पाक और मासूम सी शख़्सियत के पास जाकर दुआ करवाई जाये। जबकि खुद हमारे घर मे गुनाहो से पाक मासूम छोटे बच्चे मौजूद होते है। बच्चों की परवरिश और उनकी मासूम ज़बान से अपने हक़ मे दुआ करवाने का बेहतरीन तरीक़ा यही है कि उनको सलाम की आदत डाली जाये और खुद भी उनको सलाम किया जाये।
सुबह उठते ही सबको सलाम कीजिये। घर मे आते ही सबसे पहले सलाम कीजिये, इस तरह कही जाने से पहले ख़ुदा हाफिज़ और सोने पहले ख़ुदा हाफिज़ कहिये। सवाब का सवाब और दुआ की दुआ, सुबह शाम एक दूसरे की सलामती और ख़ुदा की हिफाज़त मे रहने की दुआ देते रहिये।
आपसे स० से पूछा गया, "या रसूलुल्लाह! ख़ाली घर मे किसको सलाम करे ?"
तो आपने जवाब दिया, "अपने आपको।"
आपको पता है के दुनिया मे कितनी लड़ाइयाँ, दुश्मनिया और नफरते सलाम करने की वजह से ख़त्म हो जाती है।
हम मे से हर एक की हमेशा यही चाहत होती है कि किसी नेक, गुनाहो से पाक और मासूम सी शख़्सियत के पास जाकर दुआ करवाई जाये। जबकि खुद हमारे घर मे गुनाहो से पाक मासूम छोटे बच्चे मौजूद होते है। बच्चों की परवरिश और उनकी मासूम ज़बान से अपने हक़ मे दुआ करवाने का बेहतरीन तरीक़ा यही है कि उनको सलाम की आदत डाली जाये और खुद भी उनको सलाम किया जाये।
सुबह उठते ही सबको सलाम कीजिये। घर मे आते ही सबसे पहले सलाम कीजिये, इस तरह कही जाने से पहले ख़ुदा हाफिज़ और सोने पहले ख़ुदा हाफिज़ कहिये। सवाब का सवाब और दुआ की दुआ, सुबह शाम एक दूसरे की सलामती और ख़ुदा की हिफाज़त मे रहने की दुआ देते रहिये।
मुल्ला नसीरुद्दीन जब भी अपने गधे के कमरे मे जाते थे तो गधे को सलाम करते थे। लौग कहते थे।,"जनाब ये तो गधा है, सलाम का इसको क्या पता ?" मुल्ला नसीरुद्दीन जवाब देते थे, "वो गधा है, लेकिन मे तो इन्सान हूँ। मै अपने इन्सान होने का सुबूत दूँगा, वह बेशक़ ना समझे।"
अगर कभी कोई आपको सलाम का जवाब ना दे या आपके अच्छे अख़लाक़ को ना समझ सके, तो परेशान ना होइये, आप अपने इन्सान होने सुबूत दीजिये, दूसरा समझे या ना समझे।
एक वाक़िया सलाम और ख़ुदा हाफिज़ से ताल्लुक़ रखता है इस वाक़िये से आप सलाम और ख़ुदा हाफिज़ की अहमियत को शायद अच्छे से समझ पाये।
एक आदमी गोश्त को फ्रीज़ करने वाली फैक्ट्री मे काम करता था।
एक बार फैक्ट्री बंद होने से पहले अकेला ही गोश्त को फ्रीज़ करने वाले हिस्से मे चक्कर लगाने गया तो ग़लती से दरवाज़ा बन्द हो गया और वो अन्दर बर्फ़ वाले हिस्से में फंस गया।
छुट्टी का वक़्त था और सब काम करने वाले लौग घरो को जा रहे थे। कोई भी नही समझ पाया के वो अन्दर फंस गया है।
वो आदमी समझ गया था कि दो या तीन घण्टो बाद उसका जिस्म बर्फ़ बन जायेगा। अब जब मौत का यक़ीन होने लगा तो वो शख़्स ख़ुदा को याद करने लगा।
अपने गुनाहो की माफ़ी माँगते हुए ख़ुदा से बोला, "ऐ यूनुस को मछली के पेट से और यूसुफ को जेल से निजात देने वाले! अगर मेने ज़िन्दगी मे कोई एक काम भी सिर्फ तेरे लिए किया है तो उसकी वजह से मुझे यहाँ से ज़िन्दा निकाल दे! वादा करता हूँ वह काम मरते दम तक करता रहूँगा" उसकी आँखों से आँसू निकलने लगे।
एक या दो घण्टे ही गुज़रे थे कि अचानक कोल्ड रूम का दरवाज़ा खुला। चोकीदार भागता हुआ आया और उसको उठाकर बाहर निकाला और गर्म हीटर के पास ले आया। जब उसकी हालत कुछ बेहतर हुई तो उसने चैकीदार से पूछा, "तुम वहाँ कैसे आये ?"
चौकीदार बोला, " जनाब मुझे 20 साल हो गए है इस फैक्ट्री मे काम करते हुए। हर रोज़ दसियों मज़दूर और ऑफ़ीसर फैक्ट्री मे आते जाते है लेकिन तुम उन कुछ लौगो मे से हो जो जब भी फैक्ट्री मे दाख़िल होते है तो मुझे मुस्कुरा कर सलाम करते है और हाल पूछते है और निकलते हुए आपका ख़ुदा हाफिज़ करना मेरे सारे दिन की थकावट को दूर कर देता है। जबकि अक्सर लौग मेरे पास से युही गुज़र जाते है कि जैसे मै हूँ ही नही, जबकि तुम वो हो जिसकी नज़र मे मेरी भी कोई हैसियत और एहतेराम है। आज भी पिछले दिनों की तरह मैने आपका सलाम तो सुना लेकिन ख़ुदा हाफिज़ कहने के लिए इंतज़ार कर रहा था। जब ज़्यादा देर हो गयी तो मै आपको ढूंढने के लिए निकल पड़ा कि कही आप मुश्किल मे ना फंस गए हो।"
एक बार फैक्ट्री बंद होने से पहले अकेला ही गोश्त को फ्रीज़ करने वाले हिस्से मे चक्कर लगाने गया तो ग़लती से दरवाज़ा बन्द हो गया और वो अन्दर बर्फ़ वाले हिस्से में फंस गया।
छुट्टी का वक़्त था और सब काम करने वाले लौग घरो को जा रहे थे। कोई भी नही समझ पाया के वो अन्दर फंस गया है।
वो आदमी समझ गया था कि दो या तीन घण्टो बाद उसका जिस्म बर्फ़ बन जायेगा। अब जब मौत का यक़ीन होने लगा तो वो शख़्स ख़ुदा को याद करने लगा।
अपने गुनाहो की माफ़ी माँगते हुए ख़ुदा से बोला, "ऐ यूनुस को मछली के पेट से और यूसुफ को जेल से निजात देने वाले! अगर मेने ज़िन्दगी मे कोई एक काम भी सिर्फ तेरे लिए किया है तो उसकी वजह से मुझे यहाँ से ज़िन्दा निकाल दे! वादा करता हूँ वह काम मरते दम तक करता रहूँगा" उसकी आँखों से आँसू निकलने लगे।
एक या दो घण्टे ही गुज़रे थे कि अचानक कोल्ड रूम का दरवाज़ा खुला। चोकीदार भागता हुआ आया और उसको उठाकर बाहर निकाला और गर्म हीटर के पास ले आया। जब उसकी हालत कुछ बेहतर हुई तो उसने चैकीदार से पूछा, "तुम वहाँ कैसे आये ?"
चौकीदार बोला, " जनाब मुझे 20 साल हो गए है इस फैक्ट्री मे काम करते हुए। हर रोज़ दसियों मज़दूर और ऑफ़ीसर फैक्ट्री मे आते जाते है लेकिन तुम उन कुछ लौगो मे से हो जो जब भी फैक्ट्री मे दाख़िल होते है तो मुझे मुस्कुरा कर सलाम करते है और हाल पूछते है और निकलते हुए आपका ख़ुदा हाफिज़ करना मेरे सारे दिन की थकावट को दूर कर देता है। जबकि अक्सर लौग मेरे पास से युही गुज़र जाते है कि जैसे मै हूँ ही नही, जबकि तुम वो हो जिसकी नज़र मे मेरी भी कोई हैसियत और एहतेराम है। आज भी पिछले दिनों की तरह मैने आपका सलाम तो सुना लेकिन ख़ुदा हाफिज़ कहने के लिए इंतज़ार कर रहा था। जब ज़्यादा देर हो गयी तो मै आपको ढूंढने के लिए निकल पड़ा कि कही आप मुश्किल मे ना फंस गए हो।"
वो आदमी हैरान हो गया की सलाम करने और ख़ुदा हाफिज़ कहने जैसे छोटे काम की वजह से आज उसकी जान बच गयी।
सिर्फ एक सलाम और ख़ुदा हाफिज़ की वजह से इस शख़्स की जान बच गयी।
सलाम और ख़ुदा हाफिज़ सुनने मे बहुत मामूली से अल्फ़ाज़ है लेकिन इन अल्फाज़ो की अहमियत बहुत ज़्यादा है इसलिए हमेशा सलाम और ख़ुदा हाफिज़ जरूर करे।
"Salam or khuda hafiz"
Hamare payare nabi s.a. ne to salam par itna zor diya hai or ise itni zyada ahmiyat di hai ke ghar me agar koi bhi na ho tab bhi salam karte hue andar aayiye.
Aapse pucha gya ya rasulullah! Khali ghar ne kisko salam kare ?
To aap s.a. ne farmaya :- apne aap ko.
Aapse pucha gya ya rasulullah! Khali ghar ne kisko salam kare ?
To aap s.a. ne farmaya :- apne aap ko.
Aapko pata hai duniya ki kitni ladaiya or dushmaniya or nafrate sirf salam karne ki vajah se khatm ho jati hai.
Hum me se har ek ki hamesha yahi chahat hoti hai. Ke kisi nek, gunaho se pak or masoom se shkhsiyat ke pas jakar dua karvayi jaye. Jabki khud hamare ghar me gunaho se pak masoom chote bacchhe mojud hote hai. Bacchho ki parvarish or unki masoom zaban se apne haq me dua karvane ka behtreen tariqa yahi hai ke unko salam ki aadat dali jaye or khud bhi unko salam kiya jaye.
Subah uthte hi sabko salam kijiye. Ghar me aatw hi sabse pahle salam kijiye, isi tarh kahi jane se pahle khuda hafiz or sone se pahle khuda hafiz kahiye. Sawab ka sawab or dua ki dua, subah sham ek dusre ki salamati or khuda ki hifazat me rahne ki dua dete rahiye.
Hum me se har ek ki hamesha yahi chahat hoti hai. Ke kisi nek, gunaho se pak or masoom se shkhsiyat ke pas jakar dua karvayi jaye. Jabki khud hamare ghar me gunaho se pak masoom chote bacchhe mojud hote hai. Bacchho ki parvarish or unki masoom zaban se apne haq me dua karvane ka behtreen tariqa yahi hai ke unko salam ki aadat dali jaye or khud bhi unko salam kiya jaye.
Subah uthte hi sabko salam kijiye. Ghar me aatw hi sabse pahle salam kijiye, isi tarh kahi jane se pahle khuda hafiz or sone se pahle khuda hafiz kahiye. Sawab ka sawab or dua ki dua, subah sham ek dusre ki salamati or khuda ki hifazat me rahne ki dua dete rahiye.
Mulla naseeruddin jab bhi apne ghade ke kamre me jate the to gadhe ko salam karte the. Log kahte the, "janab ye to gadha hai, isko salam ka kya pata ?" Mulla naseeruddin jawab dete the, "wo gadha hai, lekin me to insan hu. Me apne insan hone ka sabut dunga, wo beshaq na samjhe."
Agar kabhi koi aapke salam ka jawab na de ya aapke acchhe akhlaq ko na samjh sake, to pareshan na hoiye, aap apne insan hone ka sabut dijiye, dusra samjhe ya na samjhe.
Ek waqiya salam or khuda haifiz se talluq rakhta hai. Is waqiye se aap salam or khuda hafiz ki ahmiyat ko shayd acchhe se samjh paye.
Ek aadmi gosht ko frize karne wali fektari me kam karta tha.
Ek bar fektari band hone se pahle akela hi gosht ko frize karne wale hisse me chakkar lagane gaya to galti se darwaza band ho gaya or wo ander barf wale hisse me fas gaya.
Chutti ka waqt tha or sab kam karne wale log gharo ko ja rahe the. Koi bhi nahi samjh paya ke wo andar fas gaya hai.
Wo aadmi samjh gaya tha ke 2 ya 3 ghanto bad uska jism baraf ban jayega. Ab jab usko apni maut ka yakin hone laga to wo shakhs khuda ko yad karne laga. Or apje gunaho ki mafi mangte hue khuda se bola, "aye yunus ko machli ke pet se or yusuf ko jail se nijat dene wale! Agar mene zindagi me koi ek kam bhi sirf tere liye kiya hai to uski vajah se mujhe yaha se zinda nikal de! Wada karta hu wo kam marte dam tak karta rahunga" uski aankho se aasu nikalne lage. Ek ya do ghante hi guzre the je achanak cold room ka darwaza khula. Chokidaar bhagta hua aaya or us aadmi ko utha kar bahar nikala or garam heatar ke pas le aaya. Jab uski halat kuch behtar hui to usne chokidar se pucha ,"tum waha kaise aaye ?"
Chokidar bola, " janab mujhe 20 sal ho gaye hai is fectari me kam karte hue. Har roz na jane kitne mazdur or officer fectari me aate jate rahte hai. Lekin tum un kuch logo me se ho jo jab bhi fectari me dakhil hote the to mujhe muskura kar salam karte the or hal puchte the or nikalte hue aapka khuda hafiz karna mere sare din ki thakawat dur kar deta tha. Jabki aksar log mere pas se yuhi guzar jate hai ki jaise me hu hi nahi, jabki tum wo jiski nazar me meri bhi koi haisiyat or ahteram hai. Aaj bhi pichle dino ki tarah mene aapka salam to suna lekin khuda hafiz kahne ke liye intezar kar raha tha. Jab zayada der ho gayi to me aapko dhundhne ke kiye nikal pada ki kahi aap mushkil me na fas gaye ho."
Wo aadmi hairan ho gaya ki salam karne or khuda kahne jaise chote kam ki vajah se aaj uski jaan bach gayi.
Sirf ek salam or khuda hafiz kahne kj vajah se is shakhs ki jaan bach gayi.
Salam or khuda hafiz sunne me bahut mamuli se alfaz hai lekin in alfazo ki ahmiyat bahut zayaza hai. Isiliye hamesha salam or khuda hafiz zarur kare.
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